Saturday, September 7

Tag: Thakur’s lathi pounces on saying ‘Thakur’s well’ (Article: Badal Saroj)

‘कुआं ठाकुर का’ बताने पर लपकते ठाकुर के लठैत (आलेख : बादल सरोज)
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‘कुआं ठाकुर का’ बताने पर लपकते ठाकुर के लठैत (आलेख : बादल सरोज)

सांसद मनोज झा ने संसद में दिए अपने भाषण में एक कविता क्या पढ़ी, दंभी जाति श्रेष्ठता के वर्चस्व का इन्द्रासन ही डोल उठा। जाति के अप्रासंगिक हो जाने का पाखण्डी दावा और सहिष्णु बनने का नाटक करने वाली मनु के लठैतों की पूरी फ़ौज जैसे जाग उठी। हड़बड़ाहट ऐसी थी, जैसी घुप्प अंधेरी गुफाओं में सदियों से उल्टी लटकी चमगादड़ों की तब होती है, जब वहां भक्क से सूरज की रोशनी पहुँच जाये। बिलबिलाहट ऐसी थी, जैसे केंचुओं के ऊपर नमक छिड़क दिया जाये, बिच्छू की दुम पर जूता रख दिया जाए। ओमप्रकाश वाल्मीकि की "ठाकुर का कुआं" शीर्षक वाली कविता पर खड़ी की गयी वितंडा के असली मकसद पर आने से पहले इस छोटी, मात्र 56 शब्दों की कविता, जिसने स्वयंभू 56 इंची सीने वाले के कुनबे पर मूंग दल दी, को पढ़ना ठीक होगा। कविता कुछ यूं है : चूल्हा मिट्टी का मिट्टी तालाब की तालाब ठाकुर का। भूख रोटी की रोटी बाजरे की बाजरा खेत का खेत ...