Tuesday, October 8

वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की बेबाक कलम सीधे रस्ते की टेढ़ी चाल बेलिहाजी, बेमुरव्वत, बेकाबू है, सरकारी ऑफिस का बाशिंदा, कहलाता वो बाबू

जवाहर नागदेव, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, चिन्तक, विश्लेषक
mo. 9522170700

वन्देमातरम्

{‘जानना जरूरी है…’ कि कार की अगली सीटों में जो सर का आराम देने के लिये दो रॉड के उपर गद्दी लगी होती है वो बड़े काम की होती है। कभी अगर किसी भी ढंग से दरवाजा नहीं खोला जा सक रहा हो तो उसे यानि हेडरेस्ट को बाहर खींचकर निकाला जा सकता है और उसमें नीचे नोक होती है जिसकी मदद से कांच को तोड़ा जा सकता है। ये महत्वपूर्ण जीवनदायी जानकारी हर किसी को होनी चाहिये।}

काम के दिन कम हो गये। आराम ही आराम है। बस ये हुआ कि दिन कम होने से वर्किंग टाईम यानि काम का समय थोड़ा बढ़ा दिया गया है। पर ये सहूलियत कर्मचारियों को रास नहीं आई। क्योंकि काम का समय नहीं बढ़ता तो मजा आता। अब आदत तो आदत है। देर से आने की आदत। लिहाजा दस बजे बुलाए जाने का फरमान जारी किया गया था मगर दस बजे कोई पहुंचता ही नहीं था। कलेक्टर साहब बोल-बोल कर थक गये। मगर नतीजा वही ढाक के तीन पात। अंततः हारकर उन्होंने रोद्र रूप् दिखाया और हाजिरी रजिस्टर एक ही कमरे में रखा जाने लगा। जो भी कर्मचारी आए वहां अपनी हाजिरी लगाए और अपने कमरे में जाए। इसमें जो सबसे खतरनाक बात थी वो ये कि सवा दस बजे हाजिरी रजिस्टर बड़े अधिकारी अपने साथ ले जाने लगे।
और निगरानी भी खतरनाक। सोमवार से शुक्रवार तक हर दिन का चेकिंग का जिम्मा अलग-अलग अधिकारियों को सौंपा गया है। यानि हर दिन चौकस चौकसी। ऐसे में कर्मचारियों में हड़बड़ाहट स्वाभाविक है। बस ये प्रयोग सफल हो जाए तो फिर कर्मचारियों के सीट पर बैठकर ‘काम करने’ का लक्ष्य तय किया जाए। यानि सीट पर तो बैठे हैं लेकिन ‘काम’ भी करें। और धीरे-धीरे ये आदत  पड़ जाएगी तो फिर सबसे दुरूह और सबसे कठिन और लगभग असंभव लक्ष्य पकड़ा जाएगा।
काम करने की आदत के बाद जो कहर बरसेगा वो कदाचित् ये होगा कि बिना पैसे लियेम करवाया जाए। हालांकि इस लक्ष्य की प्राप्ति में भूचाल आने के ज्यादा चांसेस हैं। हड़कम्प मचने की आशंका है। भला ये क्या बात हुई समय पर सीट पर बैठे फिर काम भी करे उपर से पैसे भी न ले। तो फिर सरकारी होने का फायदा क्या ? किसी प्राईवेट फर्म न मुंशीगिरी कर ले ?

पुराना जोक
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि ‘मैं जब बोलता हूं तो संसद में मेरा माईक बंद कर  देते हैं।’
एक बार ये भी कहा था कि जब वे संसद में बोलेंगे तो भूकम्प आ जाएगा। शायद इसीलिये माईक बंद कर दिया जाता है । आखिर संसद भवन को बचाना जरूरी है।

गांधी के नाम पर
सुधांशू घेरते हैं नेहरू को
ये कोई पहली बार नहीं हुआ है। जब भी कांग्रेस नाथूराम गोडसे का सवाल उठाती है। भाजपा के प्रखर प्रवक्ता और बेहद ज्ञानी सुधांशू त्रिवेदी अपनी हाजिर जवाबी से मामला उलट देते हैं। बहस में वे कई बार ये प्रश्न उठा चुके हैं कि तब गांधीजी का पोस्टमार्टम् क्यों नहीं कराया गया ? इलाज में 40 मिनट की देरी क्यों की गयी ? गांधी जी के उपर दस दिन पहले भी हमला किया गया था उसे गंभीरता से क्यों नहीं लिया गया ? सबसे बड़ा प्रश्न सुधांशू त्रिवेदी उठाते हैं कि गोडसे ने गांधी को दो गोली मारी थीं। पत्रकारों ने बताया कि चार गोली लगी थी जबकि पुलिस के अनुसार तीन गोली चली थी। इन सारे प्रश्नों से इनडायरेक्ट वे पण्डित जवाहर लाल नेहरू को कटघरे में खड़ा करना चाहते हैं।

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