ईमान का चोला उतरने की
नाराजगी अच्छी खासी है
तभी मिजाज में हताशा
बौखलाहट, बदहवासी है
पढ़ते थे कभी ताल ठोक के
ईमानदारी, नेकी के पहाड़े
सारी दुनिया को चोर बताते
बजा के पोंगे, ढोल, नगाड़े
मासूमियत पे इनकी ‘जवाहर’
दुनिया करती थी वाह-वाह
नौटंकीबाज करने लगे
बेईमानी, छल-कपट गुनाह
सत्ता लोलुपता में
फिर दाएं-बाएं देखने लगे
बेईमानों के चैखट पे
बेहया माथा टेकने लगे
सत्ता पे काबिज ‘आप’ को
नहीं किसी का डर रहा है
फूटेगा इक दिन ये भी
के पाप का घड़ा भर रहा है