अतीक ने जिस हद तक जुल्म किया वो किसी भी तरह से क्षम्य नहीं है। कभी कोई भी सत्ता उसे माफ नहीं कर सकती और उसे कठोर सजा मिलनी चाहिये थी। लोगबाग उसके लिये फांसी की मांग कर रहे थे। लेकिन फांसी नहीं मिलनी चाहिये थी। उसे कुछ लोगों ने गोलियां मार कर मार डाला। इससे तो उसे मुक्ति मिल गयी। अब उसे क्या पता कि उसेक साथ क्या हुआ। जो ज़िंदा हैं उसके परिजन, वो जानते हैं कि उसका हश्र क्या हुआ। जो ज़िदा हैं वे ही दुखी हैं। खून के आंसू रो रहे हैं। मगर अतीक खुद तो मुक्त हो गया। अगर उसकी हत्या नहीं होती तब भी उसे कानूनी सजा में सजा ए मौत नहीं मिलनी चाहिये थी। अतीक को ज़िन्दा रखना चाहिये ताकि औरों को सबक मिले।
ऐसे किसी भी दुर्दान्त अपराधी को एक काल कोठरी में मरने तक बंद रखना चाहिये। तीन महीने में एक बार बैरक से बाहर निकाला जाना चाहिये, उसे तीन महीने में एक बार टीवी पर सारी दुनिया के मनोरंजक कार्यक्रम और उसका घर-शहर दिखाया जाना चाहिये। उसे ये दिखाया जाना चाहिये कि जिस शहर में वो सभ्यता से परिवार के साथ खुशी और सम्मान के साथ रह सकता था वहां पर उसे लोग घृणा की दृष्टि से देख रहे हैं। उसे ये पता चलना चाहिये कि वो क्या खो रहा है।
किसी भी ऐसे जालिम को ये अहसास दिलाया जाना चाहिये कि उसकी पैसों और पावर की हवस ने उसका सुख-चैन और परिवार सबकुछ ंतबाह कर दिया। इन सब बातों का अहसास करा कर उसे मानसिक प्रताड़ना मिलनी देनी चाहिये। साथ ही ये सारी बातें प्रचारित की जानी चाहियें जिससे अन्य माफियाओं मे भय व्याप्त हो।
फांसी सजा नहीं मुक्ति है…
जवाहर नागदेव, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, चिन्तक, विश्लेषक
MO. 9522170700
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