{जोर का झटका धीरे से…. बोलने के ढंग से बात का अर्थ, बात का वनज और बात का भाव बदल जाता है। जैसे रूको, मत जाओ इसका अर्थ हुआ कि रूक जाओ, ठहरो। और रूको मत, जाओ। इसका अर्थ हुआ कि वहां रूकने की जरूरत नहीं है, चल दो। ये बड़ा काॅमन सा उदाहरण है। एक बार मालवीय रोड में हम चार यार घूम रहे थे, मुझे साढ़े आठ बजे कहीं बहुत जरूरी पहुंचना था। तब मैने अपने साथी से टाईम पूछा। दोस्त ने कहा ‘नौं’। नौ सुनते ही मैं पहाड़ से गिरा, मैने चीखकर उसकी ओर देखा और बोला नौं ? उसने आराम से कहा… बजने में पचास मिनट…. यानि उस समय आठ बजकर दस मिनट हुए थे।}
और अपने आम आदमी धुरंधर का कहना है कि पवन खेड़ा में पद पाने का, गोद में बैठने का, आंखों में समा जाने का गजब का गुण है। राहुल गांघी भी सोच में पड़ गये होंगे कि अच्छा ! संसद में मेरे बोलने से मोदीजी घबराते हैं… ? अच्छा हुआ पवन जी ने बता दिया। वैसे एक बार राहुल ने कहा था कि संसद में बोलूंगा तो भूकम्प आ जाएगा। जाने वो दिन कब आएगा, डर के मारे सरकार ने नया संसद भवन बनवा लिया है। पवन को उड़ने से नहीं रोकना था
भाजपा के पास कई दिग्गज, थिंकटैंक और राजनीति के मंजे हुए खिलाड़ी हैं। कांग्रेस का कभी बोलबाला हुआ करता था पर अब भाजपा भी किसी तौर कम नहीं है। फिर ये चूक कैसे हो गयी ? रायपुर में होने वाले अधिवेशन में भाग लेने के लिये पवन खेड़ा दिल्ली से निकल ही रहे थे कि उन्हें दिल्ली पुलिस ने रोक लिया और बताया कि असम पुलिस के अनुरोध पर रोका जा रहा है। जाहिर है ये सारा खेल बिना भाजपा परिवार की जानकारी होना संभव नही है। जनता ये समझ रही है कि देश और विश्व के सबसे अधिक प्रिय भाजपा के नेता और इस विशाल देश के प्रधान मोदीजी के पिता का नाम असभ्य तरीके से लेनेे के चलते पवन खेड़ा के प्रति लोगों के मन में गुस्सा है मगर जिस तरीके से उन्हे ंरोका-टोका गया जनता की सहानुभूति उन्हें मिल गयी।
अपने यहां कोई करोड़ों का गबन कर ले लेकिन पुलिस पकड़ ले या उसका देहान्त हो जाए तो जनता द्रवित हो जाती है। है न करामात की बात।
तो मोदीजी के पिता के नाम को ‘अचकचाने का भाव व्यक्त कर’ गौतम बोल देना एक व्यंग्य कम अपमान अधिक लगा। जिससे जाहिर तौर पर जनमानस को खला है आखिर मोदीजी सर्वमान्य सर्वप्रिय नेता हैं। और सब जानते हैं कि इन दिनों कांग्रेस मोदीजी को गौतम अडानी के नाम से घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है।
दिखता कुछ और है हकीकत कुछ और..
तो बात यहां अधिवेशन की करें तो ये तय है कि सक्रियता दिखने से वोट बैंक बढ़ता है लेकिन इतना अधिक बढ़ेगा कि चुनाव को पूरा प्रभावित कर ले नहीं कहा जा सकता है। जैसे यात्रा करने से राहुल गांधी के नंबर बढ़े हैं मगर इतने नहीं कि वे मोदीजी को डिफीट कर दें। यूं कांग्रेस की स्थिति कोई बहुत अच्छी है, नहीं कहा जा सकता। प्रचार-प्रसार में कांग्रेस कोई कसर नहीं छोड़ रही है इसलिये चारों ओर ऐसा परिदृश्य बन रहा है। आम प्रचलित कथन है कि ‘गांवों-गांवों में बहुत काम हुआ है’। ये डायलाॅग काफी बोला-सुना जा रहा है। लेकिन यदि गांव वालों से बात करो तो ये सौ प्रतिशत सच नही दिखता।