गैरेंटी का दौर चल रहा है। हर नेता किसी न किसी बात की गैरेंटी देकर अपना विजय स्तंभ खड़ा करना चाहता है। आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता ने गैरेंटी दी और फिर देश को रूलाया, क्रोधित किया, निराश किया।
इन लोगों ने तो ईमानदारी की परिभाषा ही बदल दी।
बहरहाल…. भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ में गैरेंटी दी। भाजपा वालों ने अपने सबसे कारगर ब्रह्मास्त्र को चलाया यानि मोदी की गैरेंटी दी।
ये पहले से प्रचलित था कि मोदी है तो मुमकिन है और भूपेश हो तो भरोसा है। इस संभावना और विश्वास पर से जनता का यकीन जब कम होने लगा तो गैरेंटी का ईजाद हुआ। गैरेंटी का प्रयोग होने लगा धड़ल्ले से।
जैसे ईमानदार के बाद केजरीवाल ने कट्टर ईमानदार का प्रयोग किया। और… कट्टर शब्द की ऐसी की तैसी कर दी।
कट्टर ईमानदार को गाली बना दिया। किसी को कट्टर ईमानदार बोलो तो सामने वाला संदेह के घेरे मे आ जाता है। उसे खुद को भी अपमान जैसा लगता है। अब थोड़े समय के बाद गैरंेटी शब्द का भी वही हाल होने वाला है जो कट्टर शब्द का हो गया है।
अपनी व्यक्तिगत गैरंेटी
पर आज मै व्यक्तिगत तौर पर एक गैरंेटी देता हूं। ये संभावना मै पहले भी कई बार व्यक्त कर चुका हूं। कई बार लिखा भी है लेकिन अब गैरेंटी दे रहा हूं। हालांकि बड़े-बड़े महारथियों के बीच मेरी गैरेंटी का कद ही कितना होगा ?
लेकिन जो मेरी गैरंेटी को पढ़ और समझ लेगा फिर उसके मिजाज और क्रियाकलापों मे बड़ा अंतर नजर आने लगेगा। कदाचित वो शैतान से साधु बन जाए।
क्योंकि ये गैरेंटी है बेईमानों के जेल जाने कीं। आज की बात नहीं दस साल पहले भी एक पत्रिका के संपादक रहते ये बात कह चुका हूं और उससे भी पहले ये कहा गया है।
पोल खुलने के खुले रास्ते
देश मंे लगातार सुधार की प्रक्रिया दिख रही है। सूचना का अधिकार लागू हो गया है जिससे बड़े-बड़े धुरंधरों की पोल खुली है। सुब्रमण्यम स्वामी जैसे असंतुष्ट नेता ने इसका भरपूर उपयोग देश के हित में किया। इससे जो मामले बने उनसे लगता यही है कि ये धुरंधर धरे जाएंगे और एक दिन इन्हें हम जेल के अंदर पाएंगे।
बेशक ये प्रचलित तथ्य है कि सूचना मिलने मात्र से या मामला बनने मात्र से किसी को सजा हो जाएगी ऐसा नहीं कहा जा सकता। लेकिन अब ये तथ्य सच से थोड़ा दूर दिखने लगा है।
दरअसल अब तक भ्रष्टाचार करने वाले ऐसे नेता जिनके हाथ में पावर होता था, यानि एमपी और एमएलए, (सांसद और विधायक) बेईमानी से माल कमा के आराम से बेखौफ रहा करते थे। क्योंकि मामला बनने और चलने में लंबा वक्त लग जाता और निर्णय आते तक तो कई बार आरोपी का ही वक्त पूरा हो जाता। यानि उसका जीवन ही पूरा हो जाता। ऐसे में भला कोई क्यों डरेगा कानून से… ?
साधारण व्यक्ति बच सकता है
सांसद, विधायक मुश्किल मे
अब मामला उल्टा हो गया है। अब तो आम आदमी बेईमानी करके मामले को लंबा झुला सकता है और सजा से बचने की संभावना भी अधिक होती है। लेकिन सांसदों विधायकों को ये सहूलियत नसीब नहीं होगी। वे मामले को खींच नहीं सकते।
ये बात तो तय है कि कुछ एक अपावादों को छोड़कर कोई भी सांसद, विधायक ईमानदारी से काम नहीं करता।
बल्कि माल कमाने के लिये ही तो नेता राजनीति करते हैं। ये बात कम ही बोली जाती है। मगर पिछले दिनों एक जवाबदार सांसद वरूण गांधी ने इस बात को खुले मंच से स्वीकार किया।
बेईमानी से माल कमाने की बात
बेईमानी से माल कमाने की बात निकली तो जगदलपुर के एक शख्स का दर्द सामने आ गया। युवक ने बताया कि पहले किसी विभाग में काम कराने जाओ या ठेका लो तो वहां की तय कमीशन देती पड़ती थी जो टोटल पचीस से तीस प्रतिशत तक होती थी।
अधिकारियों का तय हिस्सा देकर काम किया जाता था। लेकिन अब सरकारी अधिकारियों के अलावा चुने गये जनप्रतिनिधियों को भी देना पड़ता है। यानि अधिकारियों को देने वाले हिस्से में सांसदों और विधायकों का हिस्सा भी जुड़ गया है।
लिहाजा काम करना कठिन हो गया है। क्योंकि आधे के लगभग तो बांटना ही पड़ जाता है तो ठेकेदार काम क्या खाक कर पाएगा
शिक्षाकर्मी तबादले के लिये एक लाख
ऐसी ही वेदना एक शिक्षाकर्मी ने बताई कि पहले तबादले के लिये पचीस हजार खर्च किया जाता था अब तबादले के लिये एक लाख देना पड़ता है। अब सरकार अगर बदले तो शायद फिर से रेट कम हो। वाकई महंगाई बहुत बढ़ गयी है।
पीलीभीत से भाजपाई सांसद वरूण गांधी ने अपने एक भाषण में मंच से इस ओपन सीक्रेट की पुष्टि कर दी कि सांसद और विधायक कमीशन खाते हैं। उन्होंने कहा कि दुनिया जानती है एमपी एमएलए हर काम में बीस से तीस प्रतिशत कमीशन खाते हंै।
जिनके पास खाने को रोटी नहीं थी आज वो फाॅर्चुनर में चल रहे हैं… अब जब बेईमानियां सामने भी आने लगी हैं और कार्यवाही भी होने लगी है क्योंकि न खाउंगा न खाने दूंगा देश के शीर्षस्थ जन प्रतिनिधि यानि प्रधानमंत्री मोदीजी का मंत्र हो तो कोई बच कैसे सकता है।
और फिर अब तो एमपी एमएलए के मुकदमें अलग कोर्ट में चलने लगे हैं और नतीजे आने की मियाद भी तय कर ली गयी है और नतीजे जल्दी आने लगे हैं तो रिस्क बढ़ गया ।
यूपी में देख लो ….. इस फास्ट टैक कोर्ट से कौन कौन धुल गया। एक से एक धुरंधर माफिया डाॅन सब रगड़ा गये हैं। सभी का बेईमानी का साम्राज्य नेस्तनाबूत कर दिया गया है।
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जवाहर नागदेव, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, चिन्तक, विश्लेषक
मोबा. 9522170700
‘बिना छेड़छाड़ के लेख का प्रकाशन किया जा सकता है’
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