“अरे भंग का रंग जमा हो चकाचक ,
फिर लो पान चबाय ।
अरे ऐसा झटका लगे जिया पे ,
पुनर जनम होई जाय ।।”
अमिताभ बच्चन पर अभिनत फ़िल्म डॉन का यह गीत आज अनायास ही महाशिवरात्रि को याद करते करते याद आ गया । महाशिवरात्रि हो और भोलेनाथ का प्रसाद भांग वाली ठंडाई की चर्चा न हो ऐसा कैसे हो सकता है । भांग और शराब दोनों ही नशे के सामान है । भले ही भांग नशे की वस्तु है अपितु इसकी तुलना शराब से नही की जा सकती । शराबी जहां उपद्रवी होते है हुड़दंग करते है वही भांग का नशा शांति चाहता है । भांग का नशा करने वाला व्यक्ति उपद्रव नहीं करता अपने आप में ही मस्त रहता है। इसके अपने आयुर्वेदिक औषधीय गुण भी है जबकि शराब के नुकसान ही नुकसान ।काफी दिनों से मन में प्रश्न उमड़ घुमड़ रहा है कि आखिर शराब के आगे भांग बेचारा क्यों है ?
शराब बंदी की बात करते करते सत्ता पर काबिज हुई दाऊ जी की सरकार शराब बंदी को भूल गद्दीदार ( दुकानदार ) बन बैठी । शराब बंदी के दावों वादों के बावजूद हर गली-नुक्कड़ नेशनल हाइवे पर शराब की वैध अवैध दुकान/बार दिख जाया करते है । शराब दुकानों को लेकर लोगो का विरोध भी शराब की कमाई और चखना सेंटर की अवैध कमाई के आगे बे असर रहता है । चहेतों के फायदे का ख्याल और चखने की कमाई शासन प्रशासन को अंधा गूंगा और बहरा भी बना देती है। शराब की दुकानों पर अब सरकारी गद्दीदार है। सरकार धूम्रपान मदिरापान के हर दृश्य पर ‘चेतावनी’ दिखाने का नियम बना सकती है परन्तु दारु-शराब पर “ऐ गणपत दारू पिला” , ‘हमका पीनी है पीनी है ‘ और ‘गिलासी’ जैसे गानों के खुले आम बजने पर कोई आपत्ति नहीं। बस रोक है तो बेचारे भांग पर!
हमारे देश में भांग को ‘भोले की बूटी’ कहा जाता है। भांग की महिमा में कई भजन और गीत भी रचे गए हैं, तुलसीदास जी ने तो रामायण में एक चौपाई भी लिखी है –
“नाम राम को कलपतरु, कलि कल्याण निवास,
जो सुमिरत भयो भांग ते, तुलसी तुलसीदास ”
वैसे देखा जाय तो समाज में भांग को सम्माननीय दर्ज़ा प्राप्त है । अक्सर होली के समय कई परिवारों में ठंडाई , पेड़े और आइसक्रीम में भांग खाई व खिलाई भी जाती है । जबकि इसके विपरीत शराब को नीची व घृणा की नज़र से देखा जाता है और शराबी को तो नरक का कीड़ा तक कहा जाता है । बाबा भोले भंडारी का प्रिय भोग और उनके भक्तो का प्रसाद भांग सरकार के दो पूत (बेटों ) शराब और भांग में भांग बेचारा बना हुआ है और शराब दुलरुवा कमाऊ पूत । शराब की कमाई के लालच के मोहपाश में बंधी दाऊ जी की सरकार भी चाउर वाले बाबा की तर्ज पर गद्दीदार बन बैठी । चाउर वाले बाबा की टीम अब सवाल उठाये तो दाऊ के टीम भी रटारटाया तकिया कलाम 15 साल किये क्या ? चेप देते है । ऐसे में कमाऊ पूत (शराब) की कमाई के लालच के बीच बाबा बर्फानी भोलेनाथ का प्रसाद भांग बेचारा सा बन कर रह गया है क्योंकि भांग सरकार को शराब जैसे मुनाफे कमा कर नहीं दे सकता इसीलिए इसकी सरकारी दुकान हर गांव तो छोड़ो हर जिले में नही मिलती प्रदेश में एक्का दुक्का ही दुकानें है।
वैसे सरकार चाहे तो शराब की जगह आयुर्वेदिक भांग के ठेके खोल दे तो उससे शराब की तरह आबकारी शुल्क मिलेगा ,सरकारी ख़जाने को लाभ होगा साथ ही साथ शराब से होने वाले नुकसान से भी लोगों को बचाया जा सकेगा और सरकार का शराब बंदी का वादा भी आहिस्ता आहिस्ता पूरा हो सकता है । खैर सरकार में बैठे लोगों के साथ साथ मंत्रालयों में बैठे समझदार और होशियार अफसरान ज्यादा अच्छे से जानेंगे समझेंगे कि जनता और सरकार के हित मे क्या अच्छा और क्या बुरा है । आम जनता में इतनी समझ थोड़े न होगी ।
शराब और भांग की चर्चा के बीच गोबरहीन टुरी कहे बिना रह नही पाई और पूछती है महराज तै गांजा ल त भुला गेस । चल तय ये बता कवर्धा ले बाहर जावैया गांजा बोड़ला अउ चिल्फी वाले साहब बपुरा मन पकड़ लेथे इनाम घलो पाथे त जिला में बिकईया गांजा काबर नई पकड़य । गोबरहीन टुरी की बात में दम तो है हमारी चर्चा के बीच लपरहा टुरा बीच मे कूद टांट कसता है तहू पगली हस गोबरहीन साहब मन अपन सेटिंग के माल ल कैसे पकड़ही हफ्ता बन्द नही हो जाहि । अउ महराज तै तो बड़े पत्रकार बने फिरथस गांव गांव मा गांव वाला अउ बरतिहा मन ल दारू गांजा आसानी से मिल जाथे बस साहब बपुरा मन पता नई चले काबर अउ तहु ल कुछ पता हावय कि तहू सेट हो गेस नई छापस।
गोबरहीन टुरी और लपरहा टुरा की बातों ने दिमाग का दही करके रख दिया । खैर जलहना लोग तो ऐसे ही आरोप लगाते रहते है हमारे ईमानदार अफसर थोड़ी सी अवैध कमाई के लिए कोई अपना ईमान धरम थोड़ी न बेच देंगे ।
सब स्वस्थ रहे मस्त रहे भोलेनाथ की कृपा सदा बरसती रहे इन्ही कामनाओं के साथ –
अंत में :-
होठों से लग कर जहन में उतर जाती हूँ ,
दिलों की बातों को नैनो से कह जाती हुँ ।
भांग हूँ जनाब ,
ईश्क की तरह चुपके से चढ़ जाती हूँ ।।
#जय_हो 18 मार्च 2023 कवर्धा 【छत्तीसगढ़】
चंद्र शेखर शर्मा 【पत्रकार】9425522015