इसे बिहारी में थेथरई कहते है मिस्टर प्राइम मिनिस्टर!! (आलेख : बादल सरोज)

यूं तो हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब जब मुंह खोलते हैं, तब तब कुछ ऐसा “नूतन और नवीन” बोलते हैं कि सुनने वाला कुछ विस्मय, कुछ अचरज, कुछ हैरत, कुछ क्षोभ, कुछ मलाल, कुछ ग्लानि, कुछ अविश्वास, कुछ पश्चाताप की अनुभूतियों से लाल और मालामाल दोनों हो जाता है। मगर सोलहवें सिविल सेवा दिवस पर 21 अप्रैल को विज्ञान भवन में देश भर से बुलाकर इकट्ठा किये गए प्रशासनिक अधिकारियों के बीच दिए अपने कुल जमा 33-34 मिनट के संबोधन में तो जैसे वे असत्य के साथ प्रयोग के खुद अपने ही अब तक के कीर्तिमानों को ध्वस्त करने के मूड में थे ।

अपने इस धाराप्रवाह संबोधन में उन्होंने कहा कि प्रशासनिक अधिकारी कोई भी निर्णय लेने से पहले देखें कि “जो राजनीतिक दल सत्ता में आया है, वो टैक्स पेयर्स मनी का इस्तेमाल अपने दल के हित के लिए कर रहा है या देश के हित के लिए कर रहा है। उसका उपयोग कहाँ हो रहा है, ये आप लोगों को देखना ही होगा दोस्तों … वो राजनीतिक दल अपने दल के विस्तार में सरकारी धन का दुरुपयोग कर रहा है या फिर देश के विकास में उस पैसों का इस्तेमाल कर रहा है। अपना वोट बैंक जुटाने के लिए सरकारी धन लुटा रहा है या फिर सभी का जीवन आसान बनाने के लिए काम कर रहा है … सरकारी पैसे से अपना प्रचार कर रहा है या फिर ईमानदारी से लोगों को जागरूक कर रहा है … अपने कार्यकर्ताओं को ही विभिन्न संस्थाओं में नियुक्त कर रहा है या सबको पारदर्शी रूप से नौकरी में आने का अवसर दे रहा है … वो राजनीतिक दल नीतियों में इसलिए तो फेरबदल नहीं कर रहा है, ताकि उसके आकाओं की कमाई के नए रास्ते बने।” वगैरा-वगैरा।

बिना पलक झपकाए, घनघोर आत्मविश्वास के साथ अपने आचरण के ठीक विपरीत सलाह देने के लिए हिंदी में ; “सूप बोले तो बोले, चलनी भी बोल उठी जिसमे बहत्तर सौ छेद” सहित अनेक कहावतें और मुहावरे हैं, मगर मोदी के इस भाषण के लिए यह सब मिलकर भी अपर्याप्त है। लफ्फाजी भी इसकी मारकता को व्यक्त नहीं करती। सिर्फ बिहारी हिंदी का एक शब्द सबसे सटीक बैठता है : थेथरई। उनके भाषण का यह अंश शुद्ध थेथरई था, थेथरई के अलावा कुछ नहीं था।

थेथरई क्या होती है, बिहारी अच्छी तरह जानते हैं, बाकी पाठकों की सुविधा के लिए बता दें कि थेथरई का मतलब है, ऐसी बात बार-बार बोलना जिसका सचाई से कोई संबंध नहीं हो — उसे बार-बार जस्टिफाई करना, मना करने, लानत-मलामत करने के बाद भी ऐसी बात निर्लज्जता पूर्वक बार-बार बोलते जाना ; अपने दोषों, भूलों आदि पर ध्यान न देकर सब के सामने सिर उठाकर उद्दंडतापूर्वक असंगत बात करना। अभी तक बिहार के सुशील कुमार मोदी अपनी थेथरई के लिए पूरे बिहार में वर्ल्ड फेमस थे। 21 अप्रैल को दिए अपने भाषण से सीनियर मोदी ने लफ्फाजी से थेथरई तक की इस यात्रा में इन जूनियर मोदी को इसमें भी पीछे छोड़ दिया।

जनता के पैसे को खर्चने में किफायत की बात खुद की सुरक्षा पर 500 करोड़ रूपये हर साल खर्च करने वाले, साढ़े आठ हजार करोड़ रुपये की कीमत के दो-दो विमान और 15-15 करोड़ की आधा दर्जन गाड़ियों के काफिले में चलने वाले, 8 वर्षों के अपने कार्यकाल में 239 दिन विदेश और 604 दिन देश में पर्यटन, इस तरह 843 दिन दिल्ली से बाहर रहने वाले द्वारा किया जाना थेथरई के अलावा और क्या है?

सरकारी धन के दुरुपयोग और उसका इस्तेमाल अपने दल के प्रचार के लिए न करने की थेथरई उस सरकार के मुखिया कर रहे थे, जिसने आजाद भारत के बाद जनता के पैसे का सबसे ज्यादा दुरुपयोग अपने प्रचार और अपने संविधान विरोधी एजेंडे को आगे बढाने के लिए किया है। खुद इनकी सरकार ने लोकसभा में दिए अपने लिखित जवाब में बताया है कि “वित्त वर्ष 2014 से 7 दिसंबर 2022, के बीच 6491 करोड़ रुपए विज्ञापन पर खर्च किए। इस तरह मोदी सरकार ने हर महीने करीब 62 करोड़ रुपए तथा हर रोज विज्ञापन पर करीब 2 करोड़ रुपए खर्च किये हैं। मगर यह भी पूरा सच नहीं है। भाजपा शासित प्रदेश सरकारों के मोदीमय विज्ञापन इससे अलग है। इन प्रदेश सरकारों ने यह विज्ञापन सिर्फ अपने राज्यों में ही नहीं दिए, पूरे देश में दिए हैं। योगी की छोटी और मोदी की बड़ी तस्वीरों वाले विज्ञापनों से दिल्ली पटी हुयी है। अभी हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने जन्मदिन पर जब मध्य प्रदेश में नामीबिया से लाकर चीते छोड़े थे, तब मध्य प्रदेश सरकार ने इसके विज्ञापन दिल्ली के मेट्रो स्टेशन और बस स्टेशनों पर लगाए थे। ऐसे ही कोरोना वैक्सीन के समय दिल्ली में, यूपी सरकार, उत्तराखंड सरकार और हरियाणा सरकार द्वारा ‘धन्यवाद मोदी’ के पोस्टर लगाए गए थे। बाकी प्रदेश भी इस धन्यवाद प्रदर्शन में जनता का पैसा फूंकने में पीछे नहीं रहे थे। भाजपा सरकारों ने प्रचार का कोई मौका नहीं गंवाया — याद होगा कि कोरोना आपदा के समय बांटे गए राशन से ज्यादा कीमती वे थैले थे, जिन पर मोदी जी का फोटो चिपका हुआ था।

प्रचार के नए-नए जरिये खोजने की धुन में मध्यप्रदेश सरकार ने हद ही कर दी थी और स्वच्छ भारत मिशन में बनाए जाने वाले शौचालयों में लगने टाइल्स में एक पर मोदी और दूसरी पर शिवराज की तस्वीरें छपवा दी थीं। यह सब टैक्स पेयर्स मनी का इस्तेमाल अपने दल के हित के लिए कर, सरकारी पैसे से अपना प्रचार करने की जिस प्रवृत्ति को रोकने की थेथरई की जा रही थी, उसका एक निर्लज्ज उदहारण है। टैक्स पेयर्स बहुमत आम जनता है, जो जब भी जेब से एक रुपया निकाल रही होती है, तो उसका एक बड़ा हिस्सा मोदी सरकार के खजाने में जमा कर रही होती है। भाजपा सरकारें उस गाढ़े पसीने की कमाई को अपने और अपने नेताओं के प्रचार में फूंक देती है।

मगर यह भी जनता के पैसे के दुरुपयोग की सिर्फ एक मद है। पी एम केयर फण्ड इसकी दूसरी मद है, जिसमे न जाने कितने दसियों हजार करोड़ रुपये सार्वजनिक क्षेत्र, जनता से लिए पैसे, कर्मचारियों के वेतन से जबरिया कटवाए गए दान से जमा किये। वे कितने हैं, उन्हें कहाँ खर्च किया गया, न इसका कोई हिसाब किताब है, ना ही किसी को उसे जानने का अधिकार है। इलेक्टोरल बांड्स का गुप्त चुनावी चन्दा तीसरी मद है, जिसमें दानदाताओं के नाम ही गोपनीय नहीं है, बाकी सब भी रहस्यमय है। इन बांड्स का 80 प्रतिशत भाग भाजपा के खाते में गया है। ऐसा ही एक भारी दुरुपयोग जनता द्वारा चुनी गई सरकारों को गिराने के लिए की गयी खरीदारी में नकद लेन-देन के अलावा दिये जाने वाले दलबदल पैकेज के रूप में होता है, जैसे मध्यप्रदेश में विधिवत बने मंत्रियों के अलावा मंत्री का दर्जा पाए कोई दो-ढाई सौ लालबत्ती धारी पाए जाते हैं। महाराष्ट्र, कर्नाटक, गोवा सहित बाकी जगहों की संख्या अलग है ।

यही थेथरई दोपहर में भ्रष्टाचार के बारे में बोलने और सुबह कर्नाटक में मिस्टर 40 परसेंट के नाम से विख्यात और भ्रष्टाचार के लिए अपनी ही पार्टी और संघ के कार्यकर्ता पाटिल की मौत के कारण बनने के चलते एक साल पहले इस्तीफा देने वाले ईश्वरप्पा से स्वयं वीडियो कॉल कर मान-मनुहार करने में दिखती है। जिस हेमंत बिश्वसर्मा के खिलाफ गला फाड़ भाषण दिए गए थे, उनके कारनामों के पर्चे स्वयं अमित शाह ने गली-गली बांटे थे, उनका उनके असम के मुख्यमंत्री के रूप में अभिषेक में सामने आता है। सूची बहुत लम्बी है – अभी इतना ही।

अडानी और अम्बानी की तिजोरियों को भरते रैंप पर हर रोज नए भांति-भांति के नए महंगे परिधानों को धारण कर कैटवॉक करते हुए खुद की गरीबी और गरीबों की पीड़ाओं की दुहाई देना, अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व अपने यहाँ शून्य करने और दलित आदिवासियों को राजनीतिक-सामाजिक परिदृश्य से बाहर धकेलने, दिन-दिन भर मौके-बेमौके भाषण देने मगर हाथरस से कठुआ तक, दंगों और हिंसा, अपने ही सांसद के यौन शोषण की शिकार जन्तर मन्तर पर बैठी लड़कियों पर चुप साध जाने की थेथरई नयी नहीं है — यह गोयबल्स की आजमाई हुई विधा है, जिसे नरेंद्र मोदी 21 अप्रैल के अपने संबोधन में एक बार फिर से, मगर इस बार कुछ ज्यादा ही दीदा दिलेरी के साथ दोहरा रहे थे ।

इधर वे प्रशासनिक अधिकारियों से कह रहे थे कि वे देखें कि कोई राजनीतिक दल “अपने कार्यकर्ताओं को ही विभिन्न संस्थाओं में नियुक्त कर रहा है या सबको पारदर्शी रूप से नौकरी में आने का अवसर दे रहा है”। उधर वे खुद देश की सारी संस्थाओं में काबिल-नाकाबिल अपनों को बिठा चुके थे। मध्यप्रदेश में उनकी सरकार द्वारा आरएसएस के कारकूनों की गैरकानूनी भर्तियों का घोटाला ताजा-ताजा है। यही थेथरई है जो पुलवामा पर अपने ही राज्यपाल के ठोस और तथ्यपूर्ण सवालों पर मौन रहकर भी खुद को एकमात्र सच्चा राष्ट्रवादी बताने के प्रहसन तक ले जाती है ।

समस्या यह नहीं है कि भाजपा के एकमात्र नेता यह सब बोल-कह रहे हैं — समस्या यह है कि यह थेथरई अब दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला बन गए देश के प्रधानमंत्री के पद पर बैठे व्यक्ति द्वारा की जा रही है। एक ख़ास मकसद से की जा रही है। उस मकसद को समझकर झूठ और पाखंड के इस कुहासे को तोड़ना होगा। इसका जरिया वही है, जो करीब तीन हजार वर्ष पहले गौतम बुद्ध कह गए हैं : तथ्य से तक पहुंचना होगा, सवाल उठाने होंगे। इसी के साथ खुद मोदी द्वारा किये “झूठे वादों से सत्ता हासिल करने वाले नेताओं से सतर्क रहने” का सलीका आम अवाम में पैदा करना होगा ।

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