Sunday, September 8

रूको, झुको या… ठुको छत्तीसगढ़ शासन की चेतावनी वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की खरी… खरी…

पुराने जमाने की फिल्मों में आपने सोल्जर्स को देखा होगा जिनकी कैप में घासफूस लगी होती थी और आज भी सोल्जर्स की पोशाक का रंग हरा घास के रंग से मेल खाता होता है। मकसद ये कि छिपना चाहें तो झाड़-झंखाड़ में खो जाएं और दूर से न दिखें।
इस मकसद से नक्सलियों ने भी बारिश मे पेड़-पौधों की बीच छिपने के लिये ऐसी पोशाक बनवाई है जिसमें पत्ते और फूल लगे हैं और झाड़ियों के बीच खड़े होने से दूर से कोई ये नहीं भांप सकता कि कोई इंसान है। ऐसे कुछ सूट फोर्स ने बरामद भी किये हैं।
इसमे कोई संदेह नहीं कि वक्त के साथ-साथ नक्सली अपडेट होते जाते हैं और अत्याधुनिक हथियार और अत्याधुनिक तकनीक के चलते वे कोई बड़ा संग्राम पैदा कर सकते हैं। नक्सलियों की ऐसी तैयारियों से हमारी फोर्स निपट नहीं पाती,ऐसा नहीं है। हमारे जवान न सिर्फ इन्हें मुंहतोड़ जवाब दे सकते हैं वरन् किसी भी प्रकार के हमले में बीस पड़ सकते हैं।
इस वर्ष नक्सलियों पर लगातार हमलों ने इस बात को साबित कर दिया है।

सरकार की सद्भावना के साथ धमकी
रूको, झुको या ठुको

ये एक अच्छी बात है कि एक तरफ सरकार सर्च आॅपरेशन चला रही है और ठोक रही है दूसरी तरफ प्रदेश के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और गृहमंत्री विजय शर्मा सम्पूर्ण सद्भावना के साथ नक्सलियों को समझाने का प्रयास भी कर रहे हैं। उन्हें आत्मसमर्पण के लिये आमंत्रित कर रहे हैं।
राज्य में नक्सली समस्या समाप्त हो तो क्षेत्र में विकास की असीम संभावनाएं हैं। विकास से इन नक्सलियों को भी बड़ा फायदा मिल सकता है।
निरंतर हमले झेल रहे और सरकार की मानसिकता समझकर नक्सलियों को समझौते और समर्पण में ही भलाई लग रही है लिहाजा वे भी एक ठहराव के लिये तैयार हैं। हालांकि इस दिशा में कोई ठोस पड़ाव अभी नजर नहीं आया है बल्कि हमले जारी हैं दोनों ओर का नुकसान हो रहा है।
बड़ी तादाद में नक्सली मारे जा रहे हैं और हमारे कुछ जवान भी शहीद हो रहे हैं। लेकिन सरकार बड़े प्रयास में कामयाब दिख रही है। सबसे बड़ी बात सरकार की नीयत की है।

पहले नीयत कमजोर थी

नक्सली समस्या का निराकरण बरसों पहले किया जा सकता था। नही हो पाया तो उसका सबसे बड़ा कारण नीयत में कमी थी। कहा जाता है कि नक्सली समस्या से निपटने के लिये करोड़ों का फण्ड हर साल केन्द्र से राज्य को दिया जाता है अनकाउन्टेड। यानि बिना किसी हिसाब-किताब के। इस फण्ड का इस्तेमाल मुखबिरी के लिये किया जाता है ऐसा कहा जाता है। इस फण्ड का हिसाब कभी पूछा नहीं जाता। क्योंकि ये सीक्रेट होता है। यदि ये फण्ड कहां खर्च किया जा रहा है ये जाहिर कर दिया जाएगा। नक्सली सतर्क हो जाएंगे और मुखबिरों की जान को तो बेहद खतरा होता ही है।
कुल मिलाकर सरकार इस दिशा में बेतहाशा खर्चा करती है प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष। खबर ये है कि कई बड़े अधिकारी इसमें हाथ साफ करते रहते हैं। इस कमाई के चलते ये इच्छा बलवती होती है कि समस्या कायम रहे और धन आता रहे। जिसका कोई हिसाब नहीं देना पड़ता।

करोड़ों के बैरक बनावा दिये
फर्जी आदेश से

ठस समस्या से जूझने के लिये सरकार इस कदर तत्पर रहती है कि कुछ दिन पहले खबर मिली कि कुछ बड़े लोगों के संरक्षण और शह पर फर्जी आदेश तैयार कर लिया गया और नक्सली प्रभावित क्षेत्र में करोड़ों के बैरक बनवा लिये गये।
छोटे-बड़े अधिकारी और कर्मचारियों ने मिलकर ठेकेदार से सांठगांठ कर निर्माण करा लिया और खूब मलाई खाई। खबर है कि इसमें निर्माण कार्य और भुगतान भी पहले ही हो गया और आदेश की खानापूर्ति बाद में जाकर बैक डेट में कर दी गयी।
ठसी तरह के करोड़ों के फर्जीवाड़े सालों से जारी हैं। जाहिर है समस्या का समाधान हो जाने पर ये कमाई के रास्ते बंद हो जाएंगे लिहाजा कुछ लोग किसी भी हालत में समाधान नहीं चाहते।
थ्वष्णुदेव सरकार ने किसी भी स्तर तक जाकर इस समस्या को नस्तनाबूत करने का रूख जाहिर किया है आशा है कि जल्द ही राज्य
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जवाहर नागदेव, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, चिन्तक, विश्लेषक
मोबा. 9522170700
‘बिना छेड़छाड़ के लेख का प्रकाशन किया जा सकता है’
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