00 मुनिश्री महर्षि प्रभ सागर जी एवं साध्वी श्री जी सम्यक्प्रज्ञा श्रीजी के नाम से जाने जायेंगे
00 गुरुवार सुबह परमात्मा की दीक्षा शोभायात्रा, मध्य रात्रि को अधिवासना-अंजनविधान होगा
00 दो और मुमुक्षु के लिए निकला दीक्षा मुहूर्त
रायपुर। धर्मंनाथ जिनालय एवं जिनकुशल सूरी दादाबाड़ी प्रतिष्ठा महोत्सव के अंतर्गत जैन भगवती प्रवज्या संपन्न हुआ। दोनों मुमुक्षु के सांसारिक सुखों का त्याग कर जैन भगवती दीक्षा अंगीकार कर संयम के मार्ग पर निकल पडऩे का समय काफी मार्मिक था, रत्नपुरी नगरी में जैन समाज का अपार समूह इस क्षण का साक्षी बनकर अपने को धन्य समझ रहा था। सुबह 4 बजे से ही लोग एकत्रित हो गए थे। संदीप कोचर (37 वर्ष) एवं कु. प्रज्ञा कोचर (23 वर्ष) को गच्छाधिपति आचार्य भगवंत श्री जिनमणि प्रभ सूरीश्वर जी म.सा. ने संयम और संसार जो अच्छा लगे वह चुनने का अंतिम अवसर का निर्णय लेने बोला ताकि वापस मन किसी दुविधा में न पड़े। दोनों मुमुक्षु ने संयम का मार्ग अपना कर आचार्य भगवंत से औघा ग्रहण किया। दोनों दीक्षार्थी ने आचार्य श्रीपियूष सागर सूरी जी से आशीर्वाद ग्रहण किया और अब दोनों अपने नए नाम मुनिश्री महर्षि प्रभ सागर जी एवं साध्वी श्री जी सम्यक्प्रज्ञा श्रीजी के नाम से जाने जायेंगे।
इसके पश्चात बाल मुमुक्षु समर्थ सुनील जी लेछा एवं मुमुक्षु कु. सुषमा रतन चंद जी कवाड के लिए दीक्षा का मुहूर्त सकल संघ के सामने प्रदान किया गया, जो आगामी तय तिथि पर दीक्षा ग्रहण करेंगे। जैन धर्म में कोई भी दीक्षा स्वयं की, माता पिता एवं मुख्य रिश्तेदारों की आज्ञा होने पर ही दी जाती है। गुरुवार सुबह परमात्मा का दीक्षा वारगोड़ा, मध्य रात्रि को अधिवासना – अंजनविधान होगा। कल ही मंदिर जी की ध्वजा एवं परमात्मा की प्रतिष्ठा करने वाले परिवारों का सम्मान होगा।
गुरु भगवन्तो ने बताया कि भगवान मिलने के बाद स्वंय भगवन बनने की कोशिश के मार्ग पर गुरु भगवन्तो द्वारा बताये रास्ते पर चलना ही भगवान की आगम अनूप पूजा है। जिन मंदिर की ध्वजा साधना के शिखर पर उपासना का स्वर्ण कलश चढ़ता है, तब आत्म मंदिर के ऊपर परमात्मस्वरूप परमानन्द ध्वजा फहरती है। सकल संघ को यह शुभ ध्यान करना चाहिए की हमारी छाया हमारा छत्र हमारा उजाला हे प्रभु आप ही बने रहो।
गच्छाधिपति आचार्यभगवन्तो ने अपने हितोपदेश में बताया कि भौतिक ऐश्वर्य वैभव का त्याग कर अरिहंत परमात्मा इस पावन भूमि पर भारण पक्षी की तरह अप्रमत्त बन कर शेर की तरह विचरण करते हैं। संयम पालन करते समय कर्म सत्ता के सामने परिषह की सेना को जीतते हैं। उपसर्ग कैसा भी क्यों ना आए अंश मात्र भी विचलित नहीं होते। अहर्निश शुभ ध्यान में खड़े रहते हैं, निद्रा का सर्वथा त्याग कर संयम साधना में अटल रहकर घाती कर्मों को हराकर आत्मा के अनंत गुण रूप केवल ज्ञान को प्राप्त करते हैं, इसे ही केवल ज्ञान कल्याणक कहते हैं। देवता समोसरण की रचना करते हैं, त्रिपदी का दान करके गणघरों की स्थापना करते हैं।
गुरुवार का कार्यक्रम
2 मार्च गुरुवार को परमात्मा की दीक्षा विधान प्रात: 5.30 बजे दादाबाड़ी में होगा। रत्नपुरी नगरी साइंस कालेज में सर्वप्रथम परमात्मा की दीक्षा कल्याणक की शोभायात्रा निकाला जायेगा। 10 बजे गच्छाधिपतिश्री का मंगलमय सम्बोधन, 02 बजे वैराग्य से वीतरागता की ओर – प्रभु द्वारा सांवत्सरिक दान, कुलमहत्तरा, माता-पिता, भाई-बहन द्वारा आशीर्वचन, केश लुंचन विधी,मन: पर्यवज्ञान की प्राप्ति। 06.30 बजे – संध्याभक्ति, आरती – मंगलदीपक। 07 बजे गुरुभक्ति – गुरु की महिमा कोई ना जाने (दादावाडी में) जिसे प्रस्तुत करेंगे प्रसिद्ध गायक आशीष मेहता और समूह। (शुभमुहूर्त में अंजन निर्माण एवं पू. गुरुदेव को अंजन वोहराना)। मध्यरात्रि के शुभमुहूत्र्त में-अधिवासना-अंजनविधान, समवसरण रचना, केवलज्ञान कल्याणक विधान, प्रथम देशना। सभी गुरु भगवन्तो द्वारा पूरी रात मंत्रोच्चार द्वारा परमात्मा प्रतिमा में प्राण प्रतिष्ठा का विधान किया जायेगा।
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