Friday, July 26

14 अप्रैल‌ 2024: सतनामी योद्धा,वीर सरहा जोधाई जन्म स्मृति दिवस (शोध कर्ता लेखक कुमार लहरे)

वीर सरहा और वीर जोधाई जयंती

सतनामी आंदोलन के महानायक व प्रमुख सेनापति, महान प्रतापी, राजा गुरु, गुरु बालकदास जी के निजी सुरक्षा दस्ता के प्रमुख वीर सरहा और वीर जोधाई दोनों जुड़वा भाइयों के जन्म के स्मृति में, सार्वजनिक आयोजन का दूसरा वर्ष…

*14 अप्रैल‌ 2024: वीर सरहा जोधाई जन्म स्मृति दिवस*

पर वीर सरहा-जोधाई जन्म दिवस प्रचार प्रसार समिति [VSJJDPPS] छ.ग. राज्य की ओर से

 

वीर सरहा और जोधाई के जन्म के 200 साल से भी अधिक वर्षों के बाद पिछले अनेक वर्षों से उनका जन्म दिवस मनाने का प्रयास कुछ व्यक्तियों व संगठनों के द्वारा किया जा रहा था. सन 2023 को आखिर लंबे इंतजार के बाद तय किया गया कि इस वर्ष सार्वजनिक रूप से जन्म दिवस आयोजन का शुरूआत किया जाए. इस तरह उनके जन्म के पूरे 218 साल बाद पहली बार ऐतिहासिक रूप से बिलासपुर, रायपुर सहित कुछ अन्य स्थानों में छिटपुट रूप में 14 अप्रैल 2023 को जन्म दिवस मनाया गया.

2024 में यह दूसरा वर्ष होगा जब जन्म दिवस सार्वजनिक रूप से मनाया जाएगा. वीर सरहा-जोधाई के संबंध में संक्षिप्त जानकारी इस प्रकार है;-

आप दोनों वीर सरहा और जोधाई का जन्म सतनामियों के तत्कालीन मुख्यालय या राजधानी भंडार [जिसका उल्लेख *M. Lawlor (1868:103)* ने इन शब्दों के साथ किया है; *”The head-quarters of the “SUTNAMEE” Sect are at Bhundar about 25 miles N.E. or Raepore…”* हिंदी भावार्थ;- “सतनामी संप्रदाय का मुख्यालय रायपुर के लगभग 25 मील उत्तर पूर्व भंडार में है…”] में हुआ माना जाता है. आप दोनों जुड़वा भाई थे, जिसमें सरहा पहले और जोधाई बाद में एक ही दिन एक जनश्रुति के अनुसार 14 अप्रैल सन 1805 ई. को जन्म हुआ. आप दोनों गुरु बालकदास जी के बचपन के साथी और युद्ध कला में पारंगत उस समय के श्रेष्ठ खड़ैतों [लड़ाकों/योद्धाओं] में से और गुरु बालकदास जी के बारह प्रमुख निजी अंगरक्षकों में शामिल थे. आप दोनों सहित उनके बारह प्रमुख अंगरक्षकों के नाम इस प्रकार है, 1. सरहा, 2. जोधाई, 3. लल्लू , 4. जगधर, 5. अमरसिंघ, 6. गुलाली उर्फ गुल्ली, 7. शोभित, 8. पतंगा, 9. वीरसिंघ, 10. रजई, 11. चंदा और 12. बराती.

गुरु बालकदास जी को अपने इन अंगरक्षकों के प्रतिभा, साहस और युद्ध कला पर इतना भरोसा था कि उन्होंने उस समय गांव-गांव और लगभग हर सतनामी परिवारों में प्रशिक्षित खड़ैत होने के बावजूद अपने सुरक्षा के लिए अधिक सावधानी और प्रयास नहीं किया. इस पर एक ब्रिटिश भारतीय अधिकारी *J. W. Chisholm (1868:47)* ने टिप्पणी करते हुए अपने प्रतिवेदन, “Belaspore Land Revenue Settlement Report” में लिखा है; *”…, and so few the precautions he look against private assassination, that his enemies, at last found an opportunity.”* [हिंदी भावार्थ; “…, और निजी हत्या के विरुद्ध उसने इतनी कम सावधानियां बरतीं कि उसके दुश्मनों को अंततः एक अवसर मिल गया.”] इन बारह अंगरक्षकों में गुरु बालकदास जी के निजी सुरक्षा दस्ते में सरहा को प्रमुख का जिम्मेदारी प्राप्त था. इसका पालन आप दोनों भाइयों ने अपने अंतिम समय तक किया.

गुरु बालकदास शहादत दिवस स्मारिका 2018 के पृष्ठ संख्या 9, में सरहा और जोधाई के संबंध में इस तरह का उल्लेख मिलता है; *”गुरु बालकदास जी मध्य भारत के वर्तमान छत्तीसगढ़ राज्य के मुंगेली जिला मुख्यालय से 8-10 किलोमीटर दूर ग्राम औराबांधा में तारीख’ … ‘मार्च सन 1860 ई. की रात को रात्रि विश्राम कर रहे थे कि अचानक सैकड़ो की संख्या में हथियारबंद समूह ने उनको जान से मारने के उद्देश्य से प्राण घातक हमला कर दिया, सुरक्षा में तैनात सुरक्षा दस्ता ने हमलावरों के विरुद्ध मोर्चा संभाल लिया रात कई घंटे तक उनके अंगरक्षकों ने हमलावरों को मुंहतोड़ उत्तर दिया स्वयं गुरु बालकदास ने भी उनका डटकर मुकाबला किया. हमलावरों ने सुनियोजित व संगठित होकर गुरु बालकदास जी को लक्ष्य बनाकर हमला किया था. औराबांधा गांव किसी दो छोटे देशों के बीच भयंकर युद्ध क्षेत्र की तरह हो चुका था. गुरु बालकदास के सुरक्षा दस्ते के प्रमुख सरहा और जोधाई सहित सभी अंगरक्षकों ने अपने पूरे क्षमता और युद्ध कौशल से हमलावरों को छ्ठी का दूध याद दिल दिया. चूंकि दुश्मनों की संख्या बहुत ज्यादा था और उनका लक्ष्य सिर्फ गुरु बालकदास था, हमला कई बार किया गया, गुरु बालकदास लड़ते-लड़ते घायल हो चुके थे.”*

इस संघर्ष में सरहा और जोधाई भी घायल हो चुके थे, इसके बावजूद उन्होंने गुरु बालकदास जी को भंडार [भंडारपुर] ले जाने का प्रयास किया लेकिन बाद में उन्हें लगा कि ज्यादा दूर होने के कारण यह कठिन होगा, इसलिए वे नवलपुर-बेमेतरा की ओर बढ़ने लगे. रास्ते में कोसा नामक स्थान पर’ … ‘मार्च सन 1860 ई. को गुरु बालकदास जी ने अंतिम सांस लिया. तब तक नवलपुर से खड़ैत आ चुके थे, उन्होंने उनके पार्थिव शरीर को अपने साथ ले गए. इसके बाद सरहा और जोधाई के संबंध में ज्यादा जानकारी नहीं है. कुछ लोगों के अनुसार वे दोनों भाई 28 मार्च 1860 ई. को संघर्ष के दौरान हुए गंभीर घांव के कारण शहादत को प्राप्त हुए. यह बात सत्य प्रतीत होता है, क्योंकि J. W. Chisholm [1868:47] ने अपने बिलासपुर प्रतिवेदन में इस घटना का संक्षिप्त जिक्र करते हुए लिखा है; कि इस हमले में गुरु बालकदास की मृत्यु हो गई और उनके अनेक अनुयाई घायल हुए थे. उनके ही शब्दों में; *”Here a party of men, …, attacked and Killed him at the same time wounding the followers who accomiany him.”* [हिंदी भावार्थ; “यहां लोगों के एकदल ने, …, उन पर हमला किया और उनकी हत्या कर दी, साथ ही उनके साथ आए अनुयायियों को भी घायल कर दिया. यह वर्ष 1860 में हुआ था.’] इस तरह आप दोनों वीर भाइयों का जन्म और शहादत भी एक साथ हुआ.

शोध कर्ता, लेखक ,चिंतक,कुमार लहरे                                         अतः आप सभी से आग्रह है कि इस वर्ष सन 2024 में 14 अप्रैल को इन महान योद्धाओं का जन्म दिवस [जिन्होंने गुरु के सुरक्षा के लिए अपने प्राणों का परवाह नहीं किया और गुरु के अनुयाई इनका जन्म दिवस मनाने के लिए पूरे 218 साल तक इंतजार करते रहे] क्योंकि सन 2023 से उनके सार्वजनिक रूप से जन्म दिवस मनाने का शुरुआत हो चुका है, इसलिए अपने घरों, गांव व प्रभाव वाले क्षेत्रों में अपने क्षमता के अनुसार बिना किसी अतिरिक्त व्यय या दिखावा के बनाएं. साथ ही दो दीप जलाकर इनका सम्मान व स्मरण करें.*

 

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