Friday, May 17

लेख-आलेख

*नो हार, ओन्ली जीत!* *(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)*
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*नो हार, ओन्ली जीत!* *(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)*

  डैमोक्रेसी को अपने नागपुरी भाई पहले ‘‘मुंड गणना’’ गलत नहीं कहते थे! छोटे-बड़े, ऊंचे-नीचे, अच्छे-बुरे और यहां तक कि महान और मामूली तक का, कोई ख्याल ही नहीं है। सिर्फ और सिर्फ गिनती का भरोसा। अब बताइए! मोदी जी गुजरात में रिकार्ड बना रहे हैं। रिकार्ड सिर्फ बना ही नहीं रहे हैं, खुद अपने बनाए रिकार्ड तुड़वा के भी बना रहे हैं। नरेंद्र का रिकार्ड भूपेंद्र से तुड़वाने के लिए खुद नरेंद्र भाई जी–जान लड़ा रहे हैं। पर ऐसे अद्ïभुत, अकल्पित, दिव्य दृश्य से अभिभूत होकर, अपना जन्म धन्य मानने और मोदी-मोदी पुकारने के मौके पर भी, ये डैमोक्रेसी-डैमोक्रेसी करने वाले गिनती लेकर बैठे हुए हैं। कहते हैं, सिंपल है। दो राज्य, एक नगर निगम, चुनाव कुल तीन, और तीनों में भगवाई सरकार। दो सरकारें निकल गयीं, बच गयी एक! तीन में से बचा सिर्फ एक; एक के ही बचने पर वाह-वाह कैसे करें! पर बात सिर्फ गिनती के मैदान तक ...
पश्चिम बस्तर में हिंसा, दहशत और तनाव के स्थान पर शांति की बयार विश्वास की बहाली, बच्चों की भविष्य गढऩे का मार्ग हुआ प्रशस्त   (राजीव शर्मा)
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पश्चिम बस्तर में हिंसा, दहशत और तनाव के स्थान पर शांति की बयार विश्वास की बहाली, बच्चों की भविष्य गढऩे का मार्ग हुआ प्रशस्त   (राजीव शर्मा)

जगदलपुर। दक्षिण बस्तर के बीजापुर जिले  क्षेत्र  अंतर्गत वनवासी एक दशक से भी अधिक समय तक आतंक के साये में जीने को मजबूर रहे हों उन्हें अगर कभी उस दायरे से बाहर आने और खुली हवा में सांस लेने का मौका मिल जाय तो वो उनके लिए कितना सुकून भरा हो सकता है उसे तो कोई भुक्तभोगी ही बयां कर सकता है। उस पर अगर ये आजादी सुनहरे भविष्य के संकेत लेकर आए तो उससे बड़ी खुशी और राह्त की बात और क्या हो सकती है। राजीव शर्मा ने बताया कि 17 वर्षो के लंबे काल के बाद बीजापुर जिले के पेदाकोरमा और मुरमा ग्राम पंचायत में आज जो नया सबेरा हुआ है वह छत्तीसगढ़ सरकार की किसी विशाल उपलब्धि से कम नही है। कई वर्षों तक यहां माओवादी कहर और सल्वा जुडूम अभियान ने सारी व्यवस्था ठप्प कर दी थी। लोगों के समक्ष न कोई आशा थी और न सपना। भविष्य के नाम पर अंधेरे के अलावा कुछ भी नही था लेकिन हर्ष का विषय यह है कि छत्तीसगढ़ सरकार की पहल से आ...
सफलता की कहानी
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सफलता की कहानी

नई दिल्ली (IMNB). यश सोनकिया का परिवार 25 वर्ष पूर्व उनके जन्म पर बहुत खुश हुआ था लेकिन वह खुशी केवल एक दिन के लिए थी क्योंकि दूसरे दिन उन्हें पता चला कि सोनकिया को ग्लूकोमा की बीमारी है और वह देख नहीं सकता है। सोनकिया का लगातार इलाज चला और इलाज के दौरान उनका आठ बार ऑपरेशन भी हुआ। लेकिन आंखों पर लगातार दबाव बढ़ने से आठ वर्ष की उम्र में उसके आंखों की रोशनी पूरी तरह से समाप्त हो गई। जब डॉक्टरों ने पहली बार 2004 में बताया था कि वह कभी नहीं देख सकेंगे तो उनके पिता ने उन्हें एक अंध विद्यालय में भर्ती कराया, तभी उन्होंने सोच लिया था कि वह बड़े होकर सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनेंगे। बचपन से ही प्रौद्योगिकी में उनकी गहरी रुचि है। उनके पास दुनिया के लाखों लोगों का जीवन बदलने और उन्हें प्रभावित करने की क्षमता है। उन्होंनेश्री गोविन्दराम सेकसरिया प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान से हाल ही में अपनी ...
वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की बेबाक कलम ,,सीधे रास्ते की टेढ़ी चाल,,भाजपा ‘आप’ से करने लगी नैन-मटक्का ईधर कांग्रेस रह गयी हक्का-बक्का लड़ी तो कांग्रेस भाजपा से, पर ‘आप’ ने दे दिया धक्का
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वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की बेबाक कलम ,,सीधे रास्ते की टेढ़ी चाल,,भाजपा ‘आप’ से करने लगी नैन-मटक्का ईधर कांग्रेस रह गयी हक्का-बक्का लड़ी तो कांग्रेस भाजपा से, पर ‘आप’ ने दे दिया धक्का

 0 जवाहर नागदेव वरिष्ठ पत्रकार ,लेखक,चिंतक भाजपा ‘आप’ से करने लगी नैन-मटक्का ईधर कांग्रेस रह गयी हक्का-बक्का लड़ी तो कांग्रेस भाजपा से, पर ‘आप’ ने दे दिया धक्का अपने धुरंधर फेंकने में बहुत बेहतर हैं। आप कहेंगे कि आपके पिताजी ने जलती बिल्डिंग की दूसरी मंजिल से छलांग लगाकर बच्चे की जान बचाई तो वो जरूर कहंेगे कि इसमें क्या खास बात है, मेरे पिताजी ने तो पांचवीं मंजिल से कूदी लगाई, फिर उपर गये और फिर से कूदी लगाई और एक बार में चार-चार बच्चों को लेकर कूदे। अगर आप चिढ़कर कहेंगे कि एक बार मैने एक व्यक्ति को स्कूटर से ठोकर मारी तो उसने मुझे चप्पल से मारा तो धुरंधर कहेंगे ‘इसमें क्या खास बात है। मैने एक आदमी को साईकिल ठोक दी तो गांव वालों ने मुझे एक घंटे तक जूते-चप्पलों से मारा।’ गुजरात चुनाव नतीजे आते ही धुरंधर बोले कि ‘चुनाव के तुरंत बाद केजरीवाल ने मोदीजी को फोन किया और बोले ‘भाईसाहब, ठीक र...
लिखो, लिखो, जल्दी लिखो—नया इतिहास! (व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)
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लिखो, लिखो, जल्दी लिखो—नया इतिहास! (व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)

लीजिए, अब इन सेकुलरवालों को मोदी जी के शिक्षक अवतार से भी दिक्कत है। बेचारे अमित शाह ने यह कहकर मोदी जी के शिक्षक अवतार की आरती ही तो उतारी थी कि गुजरात में मोदी जी के राज ने सबक सिखाया था। मोदी जी के राज ने पक्का सबक सिखाया था। मोदी के राज ने 2002 में ऐसा पक्का सबक सिखाया था कि पूरे बीस बरस बाद 2022 तक, सबक लेने वाले भूले नहीं हैं। और अंत में यह कि, 2022 के चुनाव में जो कोई मोदी जी की खड़ाऊं पर वोट चढ़ावै, 2002 के सबक का 2027 तक के लिए पक्का एक्सटेंशन पावे! यानी किसी भी तरह से देखा जाए, शाह साहब शुद्ध रूप से सीखने-सिखाने की बात कर रहे थे और विश्व गुरु के आसन के लिए मोदी जी के पर्सनली भी दावेदार होने की याद दिला रहे थे। पर सीखने-सिखाने की बात छोडक़र, सेकुलरवाले हैं कि खून, लाशें, खून से सने हाथ, वगैरह न जाने क्या-क्या आउट ऑफ कोर्स सवाल उठा रहे हैं। वैसे ऐसा नहीं है कि सबक सिखाने में इन स...
*बाबरी मस्जिद : महाध्वंस के तीस साल* *(आलेख : राजेंद्र शर्मा)*
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*बाबरी मस्जिद : महाध्वंस के तीस साल* *(आलेख : राजेंद्र शर्मा)*

  "अगर हिंदू राष्ट्र बन जाता है, तो बेशक इस देश के लिए एक भारी खतरा पैदा हो जाएगा। हिंदू कुछ भी कहें, पर हिंदुत्व स्वतंत्रता, बराबरी और भाईचारे के लिए एक खतरा है। इस आधार पर लोकतंत्र के अनुपयुक्त है। हिंदू राज को किसी भी कीमत पर रोका जाना चाहिए।'' डा. आंबेडकर की उक्त चेतावनी अब, बाबरी मस्जिद के ध्वंस के तीस साल पूरे होने पर, एकदम अचूक भविष्यवाणी साबित होती नजर आ रही है। बाबरी मस्जिद के ध्वंस के बाद यानी उन्मादी भीड़ेें जुटाकर और देश भर में अभियान चलाकर, चार सौ साल से ज्यादा पुरानी मस्जिद के ढहाए जाने के बाद गुजरे इन तीन दशकों में बेशक, दो काम हुए हैं। पहला तो यही कि मस्जिद ढहाकर, ''उसी'' जगह पर अस्थायी मंदिर तो अगले ही दिन कायम किया जा चुका था; पर ''वहीं बनाएंगे'' का लक्ष्य पूरा होने के बाद अब, ''मंदिर भव्य बनाएंगे'' का लक्ष्य पूरा होने के करीब है। सारे अनुमानों के अनुसार, 2024 म...
*गुजरात चुनाव और ‘2002 का सबक’!* *(आलेख : राजेंद्र शर्मा)*
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*गुजरात चुनाव और ‘2002 का सबक’!* *(आलेख : राजेंद्र शर्मा)*

  आखिरकार, अमित शाह ने सार्वजनिक रूप से 2002 के गुजरात के मुस्लिम-विरोधी नरसंहार के कर्ता या प्रायोजक के नाते, मोदी की भाजपा के लिए गुजरात के लोगों से वोट की मांग कर ही डाली। गुजरात के चुनाव के लिए प्रचार के अखिरी चरण में, मोदी के निर्विवाद नंबर-दो और देश के गृहमंत्री, अमित शाह ने खेड़ा जिले के महुधा शहर में एक चुनावी रैली में इसके श्रेय का दावा किया कि 2002 में मोदी जी के राज में ‘‘सबक सिखाया गया था’’, जिसके बाद से ‘उन’ तत्वों ने ‘वह रास्ता छोड़ दिया। वे लोग 2002 से 2022 तक हिंसा से दूर रहे। इस तरह मोदी के राज ने ‘गुजरात में स्थायी शांति कायम की है!’ कहने की जरूरत नहीं है कि वह इस ‘गर्वपूर्ण’ रिकार्ड के बल पर, दिसंबर के पहले सप्ताह में होने जा रहे मतदान में मोदी की भाजपा को एक बार फिर जिताने की गुजरात के लोगों से अपील कर रहे थे, ताकि 2002 के ‘‘सबक’’ से कायम हुई शांति को पांच साल औ...
वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की बेबाक कलम ,,,सीधे रस्ते की टेढ़ी चाल,,कुमारी शैलजा को कांग्रेस ने प्रभारी बनाया है। यानि कि चुनाव की पूरी तैयारी। छत्तीसगढ़ ही एकमात्र उम्मीद। यदि यहां हार गये तो पूरे देश ही नहीं, विश्व भर में कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगी कांग्रेस
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वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की बेबाक कलम ,,,सीधे रस्ते की टेढ़ी चाल,,कुमारी शैलजा को कांग्रेस ने प्रभारी बनाया है। यानि कि चुनाव की पूरी तैयारी। छत्तीसगढ़ ही एकमात्र उम्मीद। यदि यहां हार गये तो पूरे देश ही नहीं, विश्व भर में कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगी कांग्रेस

वरिष्ठ पत्रकार,चिंतक, लेखक             जवाहर नागदेव  सीधे रस्ते की टेढ़ी चाल अवसरवादी नेता विचलित, बड़े बेकरार किसे मिले शिकस्त, किसे गले पड़ेंगे ‘हार’ कुमारी शैलजा को कांग्रेस ने प्रभारी बनाया है। यानि कि चुनाव की पूरी तैयारी। छत्तीसगढ़ ही एकमात्र उम्मीद। यदि यहां हार गये तो पूरे देश ही नहीं, विश्व भर में कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगी कांग्रेस। किसी समय यत्र-तत्र सर्वत्र छाए रहने वाली कांग्रेस को एक-एक स्टेट बचाने के लिये भारी जद्दोजेहद करनी पड़ी है, फिर भी वो नाकामयाब है। आश्चर्य है कि ऐसी स्थिति मंे भी अपनी बची-खुची साख बचाने के लिये कांग्रेस ‘उतनी’ एक्टिव नहीं हो पा रही है ‘जितनी’ होनी चाहिये। पुराने ढर्रे में सुधार ‘उतना’ नहीं हो पा रहा है ‘जितना’ होना चाहिये। निस्संदेह छत्तीसगढ़ में कई अच्छे काम वर्तमान कांग्रेस सरकार ने किये है और इनका भरपूर प्रचार भी किया है। यहीे कारण है कि ...
ढाई दिन की बदशाहत क्या बदशाहत नहीं होती! (व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)
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ढाई दिन की बदशाहत क्या बदशाहत नहीं होती! (व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)

देखा ना, मोदी विरोधियों की एंटीनेशनलता खुलकर सामने आ ही गयी। इनसे दुनिया पर भारत की बादशाहत तक नहीं देखी जा रही। उसमें भी पख लगाने लगे। बताइए, जब तक जी-20 की अध्यक्षता नहीं आयी थी, तब तक तो कह रहे थे कि अपना नंबर कब आएगा। इंडोनेशिया तक का नंबर आ गया, अपना नंबर कब आएगा? और अब मोदी जी दुनिया की बादशाहत ले आए हैं, तो भाई लोग कह रहे हैं कि जी-20 की अध्यक्षता तो इकदम्मे टेंपरेरी है। अग्निवीर से भी ज्यादा टेंपरेरी -- सिर्फ एक साल के लिए। और वह भी रोटेशन से। आज टोपी एक के सिर, तो कल वही टोपी किसी और के सिर। टोपी मत देखो, टोपी के नीचे का सिर देखो, जो हर साल बदलता रहता है। वह भी अपने आप। न ज्यादा जोश से सिर लगाने से टोपी, उसी सिर से चिपकी रह जाएगी और न लापरवाही से पहनने से, टैम पूरा होने से पहले उडक़र टोपी किसी और के सिर पर जाकर बैठ जाएगी। अव्वल तो टोपी है, उसे किसी का बादशाहत मानना ही गलत है। फिर भ...
*राम जी अकेले ही भले*  *(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)*
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*राम जी अकेले ही भले* *(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)*

  विरोधियों ने क्या हद्द ही नहीं कर दी। कह रहे हैं, बल्कि भगवा-भाइयों से पूछ रहे हैं और अकेले-दुकेले में नहीं, सारी पब्लिक को सुनाकर पूछ रहे हैं कि सीता जी को क्यों भुला दिया? जय सिया राम में से सिया को बाहर का रास्ता क्यों दिखा दिया? सिया को हटाकर, सिर्फ राम को ही जैकारे के लायक कैसे बना दिया! पहले तो हमेशा जुगल जोड़ी का ही जैकारा होता था, जोड़ी तोडक़र राम जी को अकेला क्यों करा दिया? और यह भी कि अगर सीता को बाहर ही करना था, अकेले-अकेले राम जी को ही याद रखना था, तो भी श्रीराम ही क्यों? मुसीबत में राम को ही पुकारना है, तो गांधी की तरह, हे राम कहकर क्यों नहीं पुकारते! जब यूपी वाले पाठक जी और मौर्या जी ने एक ही बात कही है, तो उनका जवाब तो एकदम मुंहतोड़ ही होगा। फिर जवाब देने वाले सिर्फ पाठक जी और मौर्या जी ही थोड़े ही हैं, राम जी की अपनी यूपी के डिप्टी सीएम लोग हैं। और दो डिप्टी मिल...