भारत और चीन दोनों ही देशों ने अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में भारत-चीन सीमा पर सेनाओं के बीच झड़प की बात स्वीकार की है. भारत और चीन दोनों ने ही एक दूसरे के इलाक़े में हस्तक्षेप करने के आरोप लगाए हैं.
भारत के रक्षामंत्री ने संसद में बताया है कि चीनी सैनिकों ने तवांग सेक्टर के यांग्त्से इलाक़े में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अतिक्रमण कर यथास्थिति को एकतरफ़ा बदलने का प्रयास किया था, लेकिन भारतीय सैनिकों ने इसे नाकाम कर दिया था.
भारतीय रक्षामंत्री के मुताबिक़ इस झड़प में किसी भी भारतीय सैनिक की मौत नहीं हुई है और ना ही कोई गंभीर रूप से घायल हुआ है.
राजनाथ सिंह ने कहा है कि इस झड़प में दोनों ही देशों के सैनिक घायल हुए हैं, लेकिन किसी की मौत नहीं हुई है.
अरुणाचल प्रदेश में भारत और चीन के बीच सीमा स्पष्ट नहीं है और दोनों ही देशों के अपने-अपने दावे हैं. चीन अरुणाचल प्रदेश में 90 हज़ार वर्ग किलोमीटर ज़मीन पर अपना दावा करता है जबकि भारत कहता है कि चीन ने पश्चिम में अक्साई चिन के 38 हज़ार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर अवैध रूप से क़ब्ज़ा कर रखा है.
भारत के बयान के बाद चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि हालात नियंत्रण में हैं और चीन भारत से अनुरोध करता है कि वो दोनों देशों के बीच सरहद के समझौतों का पालन करे.
वहीं चीन की सेना के प्रवक्ता ने कहा है कि पीएलए का वेस्टर्न थिएटर कमांड वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीनी भूभाग में रूटीन पेट्रोलिंग कर रहा था, तभी भारतीय सैनिक चीन के हिस्से में आ गए और चीन के सैनिकों को रोकने की कोशिश की.
यानी भारत और चीन दोनों ने ही एक-दूसरे पर अपने इलाक़े में घुसपैठ करने के आरोप लगाए हैं.
चीन की तरफ़ से घटना के चौथे दिन प्रतिक्रिया आई है. गलवान में जब भारत और चीन के बीच झड़प हुई थी तब भी भारत के बयान देने तक चीन ने इस बारे में कुछ भी नहीं कहा था.
चीन की तरफ़ से घटना के बारे में बयान आने में देरी की वजह बताते हुए लंदन की यूनिवर्सिटी ऑफ़ वेस्टमिंस्टर में प्रोफ़ेसर और चीन मामलों के जानकार दिब्येश आनंद कहते हैं, “चीन में कम्युनिस्ट पार्टी का मीडिया पर सख़्त नियंत्रण है और वो संवेदनशील समझे जाने वाले मुद्दों पर तुरंत रिपोर्ट नहीं करते हैं, जब किसी मुद्दे पर पार्टी की लाइन स्पष्ट हो जाती है और उस पर सहमति बन जाती है उसके बाद ही मीडिया रिपोर्ट करता है. चीन का समूचा मीडिया एक जैसी ही बात करता है.”
भारत में इस झड़प को लेकर संसद में चर्चा हुई है, विपक्ष सरकार पर सवाल उठा रहा है, मीडिया में भी ये मुद्दा छाया हुआ है, लेकिन चीन में वैसी प्रतिक्रिया नहीं है. चीन के मीडिया से ये ख़बर लगभग नदारद है. चीन में विपक्ष है नहीं, ऐसे में किसी ने सवाल भी नहीं उठाया है.
प्रोफ़ेसर आनंद कहते हैं , “चीन के भू-राजनैतिक समीकरणों में भारत इतना अहम नहीं है जितना कि भारत के लिए चीन है. यही वजह है कि इस तरह की घटनाओं पर जिस तरह की प्रतिक्रिया भारत में होती है, चीन में नहीं होती है.”
‘पुराने विवाद को बढ़ा रहा है चीन’
भारत के पूर्व सेना प्रमुख जनरल वीपी मलिक कहते हैं, “यांग्त्से तवांग से 25 किलोमीटर उत्तर में 11-12 हज़ार फ़ुट ऊंचाई पर है. ये पुराना विवादित इलाक़ा है. 1990 के दशक में जब भारत-चीन के अधिकारियों ने बातचीत शुरू की थी तब भी इसे विवादित इलाक़ा माना गया था.
मेरे सेना प्रमुख रहते हुए जुलाई 1999 में भी चीन ने यहां आकर बैठने की कोशिश की थी, हमने चीन का मुक़ाबला किया था और फिर वो वापस लौट गए थे. लेकिन अब गलवान की घटना के ढाई साल के बाद ये झड़प हुई है, वो भी ऐसे समय में जब दोनों देशों के बीच कूटनीतिक स्तर पर और सैन्य स्तर पर बातचीत हो रही है.
इससे ये पता चलता है कि चीन ने अपना रवैया नहीं बदला है और बॉर्डर पर उसकी चालाकी जारी है. चीन अभी भी उन इलाक़ों पर क़ब्ज़ा करना चाहता है जिन्हें वो अपना मानता है. गलवान के बाद से भारत और चीन दोनों ने ही सीमा पर तैनाती बढ़ाई है. इससे भी तनाव बढ़ा हुआ है.”
जनरल मलिक मानते हैं कि चीन आगे भी भारत पर दबाव बढ़ाने की कोशिश करता रहेगा. जनरल मलिक कहते हैं, “टैक्टिकल स्तर पर तो भारत और चीन आमने-सामने बैठे हैं. चीन भारत पर दबाव बना रहा है और आगे भी बढ़ाता रहेगा.
चीन की तरफ़ से ऐसी उकसावे की कार्रवाई होती रहेगी और भारत को प्रतिक्रिया देनी होगी. मुश्किल ये है कि ऐसी छोटी-छोटी घटनाएं भी बड़ा रूप ले सकती हैं और भारत को इसके लिए तैयार होना पड़ेगा.”
‘भारत को शक्तिशाली नहीं मानता है चीन‘
भारतीय सेना के पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल शंकर प्रसाद कहते हैं, “भारत के चीन के साथ दो ख़ास समझौते हैं जिनका मक़सद सीमा पर शांति स्थापित करना है. बावजूद इसके शांति स्थापित नहीं हो पाई. गलवान की घटना हुई, उससे पहले डोकलाम में घटना हुई और अब तवांग में हुई.
इसकी वजह ये है कि चीन भारत को कमज़ोर समझता है और उसे लगता है कि वो अपने हिसाब से सीमा को निर्धारित कर लेगा. लेकिन अब ज़माना बदल गया है. अब भारत चीन के सामने झुकता नहीं है.”
चीन अगर भारत को कहीं कमज़ोर पाता है तो वो भारतीय ज़मीन क़ब्ज़ाने की कोशिश करता है. और इस दिशा में वो धीरे-धीरे आगे बढ़ता रहता है.
वहीं अंतरराष्ट्रीय मामलों की जानकार वरिष्ठ पत्रकार और किताब ‘ड्रैगन ऑन अवर डोरस्टेपः मैनेजिंग चाइना थ्रू मिलिट्री पावर’ की सह लेखिका ग़ज़ाला वहाब कहती हैं, “भारत और चीन दोनों ही देश आपस में एक-दूसरे को प्रतिद्वंद्वी मानते हैं और एक-दूसरे से मुक़ाबला कर रहे हैं.
लेकिन चीन भारत को अपने मुक़ाबिल नहीं मानता है, चीन को लगता है कि भारत के अंदर चीन का मुक़ाबला करने की शक्ति नहीं है, लेकिन भारत का नज़रिया ये है कि हम शक्तिशाली हैं और हमें दक्षिण एशिया की प्रमुख शक्ति माना जाये.
चीन इस स्थति को स्वीकार नहीं करता है. चीन को लगता है कि वो दुनिया की सबसे बड़ी ताक़त अमेरिका से मुक़ाबला कर रहा है, ऐसे में भारत से उसका मुक़ाबला कैसे हो सकता है. यही वजह है की चीन अपने आपको भारत से श्रेष्ठ साबित करने की कोशिश करता रहा है.”
जनरल वीपी मलिक कहते हैं, “ऐसा लग रहा है कि चीन जान-बूझ कर और सोच-समझ कर ये कर रहा है. जब तक सीमा विवाद नहीं सुलझेगा आगे भी ऐसा होता रहेगा. चीन एलएसी को नक़्शे पर मार्क नहीं करना चाहता है, जब तक चीन एलएसी को स्वीकार नहीं करेगा, झड़पों की गुंजाइश बनी रहेगी.”
ग़ज़ाला वहाब कहती हैं, “ये चीन की योजना का हिस्सा है, चीन बिना योजना के कोई काम नहीं करता है, चीन की नीति है कि अपने विरोधी के ख़िलाफ़ पूरी तैयारी से जाएं, वो आक्रोश में या किसी उकसावे में कुछ नहीं करता है, ऐसे में चीन ने जो कुछ किया होगा, सोच-समझ कर ही किया होगा.”
वहीं दिल्ली की जवाहर लाल यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर और चीन मामलों की जानकार अलका आचार्य की राय इससे अलग है.
अलका आचार्य कहती हैं, “मुझे नहीं लगता कि घटना के समय का कोई ख़ास महत्व है. पिछले 15 सालों में कोई ना कोई घटना होती रही है. हर चीज़ में साज़िश देखना या समय के बारे में सोचना सही नहीं है. ‘लाइन ऑफ़ कंट्रोल’ को लेकर दोनों देशों में मतभेद है, वहां गश्त होती है, ऐसे में दोनों देश आमने-सामने आएंगे ही और ऐसी झड़प कभी भी होने की आशंका बनी रहेगी.”
चीन में राष्ट्रपति शी जिनपिंग अपनी ज़ीरो कोविड पॉलिसी के चलते विरोध का सामना कर रहे हैं और बैकफ़ुट पर नज़र आते हैं. ऐसे में ये भी माना जा रहा है कि बॉर्डर पर तनाव के पीछे मक़सद आंतरिक मामलों से ध्यान हटाना हो सकता है.
लेकिन विश्लेषक इस तर्क को ख़ारिज करते हैं. प्रोफ़ेसर दिब्येश आनंद कहते हैं, “हमें इसके पीछे शी जिनपिंग की कोविड को लेकर प्रदर्शनों की वजह से परेशानी को देखने के आसान निष्कर्ष से बचना चाहिए. सीमा पर बढ़ रहा सैन्यीकरण और स्थानीय और क्षेत्रीय स्तर पर फ़ैसले लेना इसकी ज़्यादा वाजिब वजह हो सकती है.”
पूर्व लेफ़्टिनेंट जनरल शंकर प्रसाद कहते हैं, “ये घटना अचानक नहीं है. इसके पीछे योजना है, चीन योजना और आकलन के बाद ऐसा करता है. अगर उसे कहीं भारत कमज़ोर नज़र आता है तो वो भारत की ज़मीन पर क़ब्ज़ा करने की कोशिश करता है. वो धीरे-धीरे आगे बढ़ता रहता है.
लेकिन अब समय बदल गया है. अब भारत के पास सर्विलांस तकनीक है, सैटेलाइट तस्वीरें हैं, ऐसे में चीन की हरकत भारत की पकड़ में आ जाती है और फिर इस तरह की घटना होती है.
अब ऐसा नहीं होगा कि चीन अचानक तवांग में घुस जाएगा, अब अगर वो ऐसी कोशिश करेगा तो उसे भारत से मुंहतोड़ जवाब मिलेगा. भारत की सेना, राजनीतिक नेतृत्व, सेना की ऊंचाई पर लड़ने की क्षमता सब बहुत मज़बूत हुए हैं. चीन निश्चित रूप से योजना के तहत आया था, लेकिन भारत ने उसे जवाब दिया और चीन के सैनिकों को हानि ज़ख़्मी कर भेजा.”
भारत और चीन के बीच जब भी इस तरह की घटना होती है, भारतीय मीडिया में ये दावा किया जाता है कि भारत ने चीन को मुंहतोड़ जवाब दिया. ये दावे किए जाते हैं कि चीन भारत की बढ़ती ताक़त से घबरा रहा है.
पत्रकार ग़ज़ाला वहाब कहती हैं, “लेकिन ये दावा सही नहीं है कि चीन भारत से घबरा रहा है. भारत अमेरिका के भरोसे चीन को चुनौती दे रहा है, इस नीति का नुक़सान भारत को ही उठाना पड़ सकता है क्योंकि भारत के पास चीन का मुक़ाबला करने के लिए ज़रूरी आर्थिक ताक़त, तकनीक और सैन्य ताक़त नहीं है.
भारत तकनीक और सैन्य ताक़त के लिए दूसरे देशों पर निर्भर है. अर्थव्यवस्था भी भारत की चीन जितनी मज़बूत नहीं है. ऐसे में भारत के चीन को चुनौती देने से तनाव बढ़ेगा ही.”
भारत और चीन दोनों ही एशिया के अहम देश हैं और सैन्य रूप से शक्तिशाली हैं. दोनों देशों के बीच दक्षिण एशिया में प्रभाव बढ़ाने को लेकर प्रतिद्वंद्विता भी है.
भारत का अधिकारिक पक्ष है कि जब तक सीमा पर तनाव शांत नहीं होगा दोनों देशों के बीच रिश्तें भी सामान्य नहीं होंगे.
जून 2020 में गलवान में भारत और चीन के सैनिकों के बीच झड़प के बाद से ही दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ा हुआ है. सीमा पर दोनों देशों ने सैन्य मौजूदगी भी बढ़ाई है.
विश्लेषक मानते हैं कि भारत और चीन के बीच तनाव और भी बढ़ सकता है.
जनरल वीपी मलिक कहते हैं, “टैक्टिकल स्तर पर तो भारत-चीन आमने-सामने बैठे हैं. चीन भारत पर दबाव बना रहा है और आगे भी बढ़ाता रहेगा. चीन की तरफ़ से ऐसी उकसावे की कार्रवाई होती रहेगी और भारत को प्रतिक्रिया देनी होगी. मुश्किल ये है कि ऐसी छोटी-छोटी घटनाएं भी बड़ा रूप ले सकती हैं और भारत को इसके लिए तैयार होना पड़ेगा.”
भारत और चीन दोनों में ही राष्ट्रवाद भी ज़ोर पकड़ रहा है. घरेलू राजनीतिक कारण भी सीमा पर तनाव को और हवा दे सकते हैं. विश्लेषक मानते हैं कि हालात सामान्य करने के प्रयासों में ईमानदारी की भी कमी है.
प्रोफ़ेसर दिब्येश आनंद कहते हैं, “दोनों देशों के बीच में सामान्यीकरण में अक़्सर ईमानदारी की कमी होती है और ये हालात तब तक नाज़ुक रहेंगे जब तक तनाव कम करने के ठोस क़दम नहीं उठाए जाएंगे. दोनों देशों में प्रखर राष्ट्रवाद की वजह से सामान्यीकरण और भी मुश्किल है.”
वहीं प्रोफ़ेसर अलका आचार्य कहती हैं, “हाल ही में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था कि जब तक सीमा पर सामान्य स्थिति बहाल नहीं होगी तब तक दोनों देशों के बीच रिश्ते सामान्य नहीं होंगे. ये तो स्पष्ट है कि दोनों देशों के बीच सीमा पर विवाद है.
तवांग की घटना से दोनों देशों के बीच ऐसे तनाव नहीं बढ़ेगा जैसे गलवान के बाद बढ़ा. गलवान में भारत ने ज़मीन गंवाई है, लेकिन तवांग में ऐसा नहीं है. तवांग में दोनों देशों के गश्ती दल भिड़े और बाद में शांति स्थापित हो गई. तवांग में चीन ने भारत की ज़मीन पर कोई क़ब्ज़ा नहीं किया है.”
चीन की ‘लाल रेखा‘ को नहीं मानता भारत
ग़ज़ाला वहाब कहती हैं, “चीन ने अपनी कई लाल रेखाएं तय की हैं जिन्हें कहीं ना कहीं भारत पार कर रहा है. चीन का मुख्य मुद्दा है ‘वन चाइना पॉलिसी’ यानी चीन तिब्बत और ताइवान को अपना हिस्सा मानता है.
चीन ने भारत से सार्वजनिक तौर पर कहा कि वो चीन की इस नीति का सम्मान करे, भारत ने ऐसा नहीं किया. इसके अलावा भारत क्वाड में शामिल होकर सैन्य अभ्यास कर रहा है. चीन इसे अपने ख़िलाफ़ मानता है.
भारत ने लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश घोषित करके तिब्बत से उसकी सीमा निर्धारित कर रखी है. ऐतिहासिक रूप से इस इलाक़े में सीमा निर्धारित नहीं है. ये ऊंचाई का इलाक़ा है जिसमें ब्रितानी शासन के दौरान भी सीमा तय नहीं हो पाई थी. चीन को लगता है कि लद्दाख की सीमा निर्धारित कर भारत ने उसके इलाक़ों पर दावा ठोका है.”
विश्लेषक मानते हैं कि दोनों देशों के बीच तनाव की एक बड़ी वजह ये भी है कि चीन दक्षिण एशिया में भारत के प्रभाव को बढ़ने से रोकना चाहता है.
ग़ज़ाला वहाब कहती हैं, “भारत दक्षिण एशिया सहयोग संगठन (सार्क या दक्षेस ) का अहम सदस्य है, लेकिन अब सार्क की वो अहमियत नहीं रह गई है जो थी. चीन भी सार्क का हिस्सा बनने की कोशिश कर रहा था, पाकिस्तान जैसे कई देश चीन को सार्क में शामिल कराने की कोशिश कर रहे थे.
इस स्थिति में भारत ने सार्क को नज़रअंदाज़ करके अपने नए द्विपक्षीय संबंध बनाने शुरू कर दिए. जैसे बांग्लादेश से भारत के रिश्ते बहुत अच्छे हैं. श्रीलंका से भी भारत के रिश्ते बेहतर हैं. भारत म्यांमार से भी रिश्ते बेहतर करने की कोशिश कर रहा है. भारत अफ़ग़ानिस्तान में भी अपना प्रभाव बढ़ा रहा है. भारत की पूरी कोशिश है कि इस क्षेत्र में देशों के साथ उसके द्विपक्षीय रिश्ते बेहतर रहें.”
ग़ज़ाला कहती हैं, “भारत जब भी कोई संगठन बनाने की कोशिश करता है तो चीन बीच में आ जाता है. चीन के पास आर्थिक शक्ति बहुत है, सैन्य ताक़त भी है और तकनीक भी. भारत अपनी कूटनीति से चीन की इस शक्ति का मुक़ाबला करने की कोशिश कर रहा है.
भारत ने इस क्षेत्र में चीन के प्रभाव को स्वीकार नहीं किया है और दोनों देशों के बीच तनाव की यही बड़ी वजह है. यदि भारत चीन के प्रभाव को स्वीकार कर ले तो ये तनाव कम हो सकता है.”
तनाव के बावजूद जारी है कारोबार
भारत और चीन के बीच भले ही सरहद पर तनाव हो, लेकिन दोनों देशों के बीच कारोबार लगातार बढ़ रहा है. भारत अभी भी चीन से सबसे अधिक चीज़ें आयात कर रहा है. साल 2021- 2022 में भारत ने चीन से 94.2 अरब डॉलर का आयात किया, जो कि भारत के कुल वार्षिक आयात का 15 फ़ीसद रहा.
भारत के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के आंकड़ों से यह साफ़ तौर पर ज़ाहिर होता है कि भारत की चीन के आयात पर निर्भरता लगातार बढ़ रही है.
मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2021-22 में दोनों देशों के बीच क़रीब 115 अरब डॉलर का व्यापार हुआ जो कि पिछले साल की तुलना में बढ़ा है. पिछले साल यह 86 अरब डॉलर था.
तनाव के बावजूद कारोबार बढ़ने की वजह समझाते हुए अलका आचार्य कहती हैं, “चीन और भारत के बीच विवाद पहले भी था, बावजूद इसके भारत ने चीन के साथ अपने रिश्तों को आगे बढ़ाया है. भारत ने ये चाहा है कि रिश्ते बेहतर बनेृ रहें. सीमा पर शांति बनाए रखने के लिए दोनों देशों ने समझौते भी किए हैं.”
अलका आचार्य कहती हैं, “यही वजह है कि भारत और चीन के बीच आर्थिक रिश्ते मज़बूत हुए. लेकिन गलवान के बाद भारत ने अपना स्टैंड बदला है. हालांकि दोनों देशों के बीच कारोबारी रिश्ते अब ऐसे हैं जिन्हें बंद नहीं किया जा सकता.
दोनों ही देशों को एक-दूसरे की ज़रूरत है. ऐसा भी नहीं है कि भारत चीन के साथ आर्थिक रिश्तों को अब बढ़ावा दे रहा हो, लेकिन जो पहले से कारोबार है वो अपनी जगह है और आगे भी रहेगा.”
भारत और चीन के बीच कारोबारी रिश्ते अब ऐसे हैं जिन्हें बंद नहीं किया जा सकता. दोनों ही देशों को एक-दूसरे की ज़रूरत है.
प्रोफ़ेसर दिब्येश आनंद मानते हैं कि भारत और चीन ने अपने कारोबारी रिश्ते तो बरक़रार रखे हैं, लेकिन सीमा पर तनाव को कम करने के लिए लचीलापन नहीं दिखाया है.
प्रोफ़ेसर आनंद कहते हैं, “भारत और चीन दोनों ही कारोबार पर ध्यान देते हैं और सीमा विवाद को सुलझाने में दोनों ही देशों ने सीमित रचनात्मकता दिखाई है. भारतीय सरकार के दावों के बावजूद, अगर आप कारोबार और निवेश के ट्रेंड को देखेंगे तो तनाव के बावजूद इस पर बहुत सीमित प्रभाव नज़र आएगा. दोनों ही देशों ने समाधान के लिए ज़रूरी लचीलापन नहीं दिखाया है.”
प्रोफ़ेसर आनंद कहते हैं, “आर्थिक रूप से एक-दूसरे पर निर्भर होने का मतलब ये नहीं है कि राजनीतिक सौहार्द हो, ख़ासकर जब भू-राजनैतिक गतिशीलता हो, क्षेत्रीय तनाव हो और सीमा विवाद की वजह से दोनों देशों में दूरी हो और अक़्सर प्रतिद्वंदिता हो.”