प्रकृति ने हमें भरपूर उपहार दिया है और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील और उत्तरदायी बनना हममें से प्रत्येक का कर्तव्य है : राष्ट्रपति मुर्मु
अधिकारियों को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि वन पृथ्वी पर सभी जीवधारियों के लिए आश्रयस्थल हैं। वन आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने एवं कार्बन के बड़े अवशोषक के रूप में कार्य करने के अलावा उनकी भूमिका वन्यजीवों का आवास बनने और आजीविका स्रोत होने से भिन्न होती है। वन विश्व की कई लुप्तप्राय प्रजातियों का घर भी हैं। लघु वनोपज हमारे देश में 27 करोड़ से अधिक लोगों की आजीविका का समर्थन करते हैं। वनों का उच्च औषधीय महत्व भी है।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत वन में रहने वाले समुदायों के अधिकारों पर विशेष ध्यान दे रहा है। जनजातीय समुदायों सहित वनवासियों के साथ सहजीवी संबंध को अब व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त है और यह हमारे विकास विकल्पों में शामिल है। भारतीय वन सेवा के अधिकारियों का उत्तरदायित्व है कि वे इन समुदायों को जैव-विविधता के संरक्षण और संरक्षण के प्रति उनके अधिकारों एवं कर्तव्यों के बारे में जागरूक करें।
राष्ट्रपति ने कहा कि इन दिनों हम भारत और विश्व के विभिन्न भागों में वनों में आग लगने की कई घटनाओं के बारे में सुनते हैं। हमारे सामने न केवल वनों के संरक्षण की बल्कि जलवायु परिवर्तन से निपटने की भी बड़ी चुनौती है। आज हमारे पास शहरी वानिकी, वन जोखिम शमन, डेटा संचालित वन प्रबंधन और जलवायु-स्मार्ट वन अर्थव्यवस्थाओं की नई प्रौद्योगिकियां और अवधारणाएं हैं। उन्होंने भारतीय वन सेवा के अधिकारियों से कहा की वे भारत के वन संसाधनों के सतत प्रबंधन के लिए नवाचार करें और नए तरीके खोजें। उन्होंने कहा कि उन्हें हमारे वनों को ऐसी अवैध गतिविधियों से बचाने में प्रभावी भूमिका निभानी चाहिए जिनका नकारात्मक आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभाव पड़ता है।
राष्ट्रपति ने कहा कि देश के सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक विकास के लिए वन आवश्यक हैं। हमें अपने वनों को जीवंत एवं स्वस्थ रखना चाहिए। विकास आवश्यक है और इसके साथ स्थायित्व भी आवश्यक है। प्रकृति ने हमें भरपूर उपहार दिए हैं तथा यह हममें से प्रत्येक का कर्तव्य है कि हम पर्यावरण के प्रति संवेदनशील और उत्तरदायी बनें। हमें अपनी आने वाली पीढ़ियों को पुनर्जीवित प्राकृतिक संसाधनों और स्थायी पारिस्थितिक तंत्र के साथ एक सुंदर देश का उपहार देना होगा।