
रायपुर दक्षिण का उपचुनाव, यूपी के 9 उपचुनाव, और महाराष्ट्र के चुनावांे से विपक्ष की सांसेें सुस्त हो गयी हैं और भाजपा की एनर्जी में बेतहाशा वृद्धि हुई है। हरियाणा से सौगात मिलने का सिलसिला जारी है। हां झारखण्ड में जरूर भाजपा को आशा अनुसार परिणाम नहीं दिखे।
प्रायः ऐसा होता है कि एकाध चुनाव जीतकर या कोई एकाध नया मुद्दा मिलने पर विपक्ष, खासतौर पर कांग्रेस और जाहिर है राहुल गांधी का मनोबल बेहिसाब बढ़ जाता है। कारण और वास्तविकता को समझे बिना। और फिर उनके व्यवहार मे, डायलाॅगबाजी में अति आत्मविश्वास झलकने लगता है।
वो ये नहीं समझ पाते कि वास्तविक लड़ाई तो भाजपा और जनता के बीच है। जनता जब भाजपा से खुश होती है सर पर बिठा देती है और जब थोड़ी नाराज होती है तो नीचे उतार देती है। जब नीचे उतारती है तो सत्ता कांग्रेस के करीब दिखने लगती है। ये स्वाभाविक सी बात है।
ये उतार-चढ़ाव, ये रूठना-मनाना, ये उपेक्षा और पुचकार भाजपा और जनता के बीच का आपसी मामला है। इसमें राहुल गांधी, कांग्रेस या विपक्ष की कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं होती।
तो इन्हें भाजपा की हार को अपनी जीत और भाजपा की जीत को अपनी हार के रूप में लेने की गलती नहीं करनी चाहिये, लेकिन ये हर बार यही करते हैं। ं
- राहुल गांधी का फिर जगा
अति आत्मविश्वास
25 से शीतकालीन स़त्र चालू होने वाला है। धमाका बड़ा होने के आसार हैं। लेकिन जैसी की उम्मीद है हाथ केवल धुंआ ही आएगा। सबको पता है हर बार कोई न कोई नया मुद्दा कांग्रेस और विपक्ष लाता है और मुद्दा अंत मे टांय-टांय फिस्स हो जाता है।
- दिलचस्प है कि कई बार मामला कोर्ट भी गया। वहां पर ठहरा ही नहीं बल्कि सरकार को क्लीन चिट मिल जाने से छवि और निखरी और कांग्रेस की ‘बोले तो’ राहुल गांधी की छवि खराब हुई। जो थोड़ी बहुत धाक बाकी है वो कम हो गयी।
अंजाम जो भी हो
मोदी की नीयत पर शक नहीं
इस बार उम्मीद है कि अडानी का मामला जोर मारेगा। अडानी के विरूद्ध अमेरिका में जुर्म दर्ज किया गया है लिहाजा ये बम जरूर फटेगा मगर इसका अंजाम भी धुआं-धुआं हो जाएगा।
ये कोई मोदीभक्ति नहीं और न ही अतिशयोक्ति है। दरअसल पिछले तीन दशकों में जनता समझने लगी है कि मोदी कभी गलत नहीं हो सकते।
यदि कभी किसी मामले में गलत हो भी गये तो भी उनकी नीयत, उनका इरादा, उनका लक्ष्य, उनकी मंशा कभी भी गलत नहीं होती। यानि वे नेक इरादे से काम करते हैं। कुदरतन गलत हो जाए तो बात अलग है। इसलिये जनता उनसे नाराज नहीं होती। नाराज हो भी जाए तो विमुख नहीं होती।
भगवान कृष्ण की शिक्षा है कि छल का आशय देखा जाता है। यदि छल किया गया है और उसका लक्ष्य, आशय, मकसद धर्म है तो छल भी स्वीकार्य है।
ऐसा की कुछ मोदी के बारे में कहा जा सकता है।
‘शठे शाठय्म समाचरेत्’ यािन दुष्ट के साथ दुष्टता का ही व्यवहार किया जाना चाहिये। ठेठ भाषा में कहंे तो जो जिस भाषा में समझे उसे उसी भाषा में समझाना ठीक रहता है। हमारे देश के विद्वान विचारकों महाभारत काल के मंत्री विदूर और आचार्य चाणक्य का भी यही मत है।
रागा का उल्टा दांव
आजकल सोशल मीडिया पर एक डायलाॅग अक्सर सुनने को मिलता है कि ‘ये दुख पीछा क्यांे नहीं छोड़ता यार’। कुछ ऐसा ही राहुल गांधी पर लागू होता है। हर बार ताल ठोककर संसद में चैलेंज देते हैं, हर बार खुलेआम मोदी को कोसते, अपशब्द बोलते हैं मगर हर बार ही हासिल आता है शून्य।
मोदी को फिर अपशब्द
अभी हाल ही में कहा कि अडानी के पीछे मोदी खड़े हैं और अडानी जिस दिन जेल जाएंगे मोदी को भी जाना पड़ेगा।
अब यहां प्रश्न ये खड़ा होता है कि क्या जनता ने रागा की बात को सच मान लिया और क्या रागा के इस बयान से नमो के नंबर घट गये या कि रागा के नंबर बढ़ गये ?
सरकारें कांग्रेस की
मगर आरोप भाजपा पर
कांग्रेस का आरोप है कि ग्रीन एनर्जी को ठेका लेने के लिये अडानी ने रिश्वत दी। रिश्वत भारत में दी गयी लेकिन बौखला अमेरिका गया क्योंकि अमेरिकी नागरिकों के शेयर थे इसमें।
देश ये समझने की कोशिश कर रहा है कि ये आरोप रागा ने मोदी सरकार पर लगाए हैं या अपनी ही सरकारों पर…. क्योंकि जहां रिश्वत दी गयी वो राजस्थान, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, तेलंघाना, आंध्रप्रदेश और उड़ीसा है।
हास्यास्पद यह है कि इसमें तो कहीं भी भाजपा की सरकार ही नहीं थी। बल्कि यहां पर तो उड़ीसा छोड़कर उस समय हर जगह खुद कांग्रेस की सरकार थी। इसका मतलब आपके ही मंत्री भ्रष्ट हैं और रिश्वत ली है।
तो आप ये ‘उल्टा चोर कोतवाल को डांटे’ वाला व्यवहार क्यों कर रहे हैं।
ताज्जुब इस बात का है कि जनता को इतना नासमझ क्यों समझते हैं ? कदाचित् जनता उनके इतने बड़े उल्टे आरोप पर यकीन न करे।
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जवाहर नागदेव, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, चिन्तक, विश्लेषक
मोबा. 9522170700
‘बिना छेड़छाड़ के लेख का प्रकाशन किया जा सकता है’
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