भोरमदेव महोत्सव के 30 बरस के सफ़र में समय के साथ साथ आदिवासियों के पारंपरिक मेले का सरकारी करण होने से छत्तीसगढ़ी लोक संस्कृति ,लोक नृत्य , शास्त्रीय संगीत के साथ साथ मुम्बईया ठुमके भी लगने लगे । आदिवासियो का पारंपरिक मेला आज भोरमेदेव महोत्सव के रूप में भले ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुका है । परंतु रंगबिरंगी लाईटो , डीजे आर्केस्ट्रा की धुन और मुम्बईया ठुमके के बीच आधुनिकता की दौड़ व विकास की चकाचौंध के आगे टिमटिमा रही आदिवासी संस्कृति व सभ्यता अपनी पहचान खोती जा रही है ।
खानापूर्ति बन चुके भोरमदेव महोत्सव कुछ वर्षो से प्रशासन व जनप्रतिनिधियों के मनमानी के चलते मूलरूप रंग और ढाल के विपरीत आधुनिक तौर तरीको से आयोजित करने की परम्परा शुरू हुई । महोत्सव पर हावी अफसर शाही के चलते तीन दिन होने वाला महोत्सव दो दिन कर दिया गया । महोत्सव हर साल किसी ना किसी कारण से चर्चा मे रहता ही है । कभी आम जनता पर लाठीयाँ भांजी जाती है तो कभी निर्वाचित जनप्रतिनिधियो को मंच से हाथ पकड़ कर उतार दिया जाता है कि क्या यहाँ फ़ीता काटने आये हो ? प्रशासनिक दुर्व्यवहार से समाज के चौथे स्तम्भ कहे जाने वाले पत्रकार भी नहीं बच पाये थे । जिम्मेदारों को अफसरों के यहाँ की काम वाली बाई का चेहरा तो याद रहता है परंतु जिले की निर्वाचित जनप्रतिनिधियों व पत्रकारों का नहीं ।
भोरमदेव महोत्सव के इन 30 साल के इस सफ़र में महोत्सव को राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्री स्तर पर पहचान दिलाने कितनी ईमानदारी से प्रयास हुए साथ ही छत्तीसगढ़ी सभ्यता और संस्कृति को बचाने कितना प्रोत्साहन मिला और इसे बचाने कितनी कोशिशे हुई ये तो अनुसन्धान का विषय है । परंतु बीते कुछ सालों से महोत्सव के स्वरूप को जिस तरह से अंतरराष्ट्रीय स्तर से जिला स्तर में समेटने का प्रयास हो रहा वह सोचनीय व चिंतनीय होते जा रहा है हांलाकि कबीरधाम जिला 20 सालों से कभी मुख्यमंत्री का कभी दबंग मंत्री का कभी उप मुख्यमंत्री के गृहजिले होने व वर्तमान में दो विधानसभा सीट वाले जिले की माटी ने 4 दबंग नेता दिए है जिनमें डॉ रमण सिंग व धर्मजीत सिंह भले ही विधायक अन्य जिले से है किंतु कबीरधाम गृह जिला है वही वर्तमान में उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा व भावना बोहरा जैसे दबंग नेताओ की कर्मभूमि व गृह क्षेत्र है राजनीति के शिखर में दबंग नेताओ की जननी कबीरधाम का रुतबा भोरमदेव महोत्सव के अस्तित्व को बचाने संघर्ष करना पड़ रहा है । महोत्सव की अनदेखी करते जनप्रतिनिधियों व फंड की कमी का रोना रोते अधिकारीयो की फौज को तातापानी , मैनपाट , जाजल्यदेव , खैरागढ़ , रायगढ़ महोत्सव व राजिम कुंभ को देखने जाना चाहिए कि आयोजन कैसे होते है जहां मेट्रो शहरो से लोग भी कार्यक्रम देखने जाने विवश हो जाते है ।
अबके बरस तातापानी महोत्सव देखने का सौभाग्य मिला जहां जनता का अथाह सागर शीतलहर वाली कड़कड़ाती ठंड में भी अलाव जलाकर कार्यक्रम देखेंने उत्साहित नजर आ रहे थे दोपहर से ही सड़के जाम थी । कर्यक्रम में अफसरों का सहयोगात्मक रुख पब्लिक को बिना हुज्जत बाजी के नियंत्रित करती पुलिस का कार्य काबिले तारीफ दिखा था ।
भोरमदेव महोत्सव में घटती हुई भीड़ का सबसे बड़ा कारण है अफसरशाही और संक्रमित होता सिस्टम जिन्होंने महोत्सव को सफल बनाने का कभी दिल से प्रयास ही नही किया , आयोजन को मजबूरी मान खनापूर्ती करते , आसानी से कम पैसो में उपलब्ध कलाकारों की खोज भी एक बड़ा कारण है । भोरमदेव महोत्सव के लिए हमेशा से ही फण्ड की कमी का रुदाली रुदन देखते आ रहे है । राजनीति के बड़े बड़े मंचो में फोटोग्राफी कराने व फकेक्स बैनर के सहारे अपनी छवि चमकने वाले नेताओं व जनप्रतिनिधियों की उदासीनता और अरुचि भी महोत्सव के गिरते स्तर , अच्छे व भीड़ जुटाओ कार्यक्रमो के चयन की कमी भी एक बड़ा कारण है । घिसे पीटे चेहरों के कर्यक्रम को देखने पब्लिक की रुचि कितनी है खाली कुर्सियां इसकी गवाह है । 30 साल में पहली बार आचार संहिता के बहाने भोरमदेव महोत्सव निराशा का महोत्सव बन कर रह गया । जिस महोत्सव को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाने की ख्वाब देख रहे वह सरस मेले के स्तर का भी नही हो पा रहा।
चलते चलते :-
8 – 10 पौवा शराब पकड़ने वाली पोलिस व आबकारी को ट्रक की ट्रक बार्डर पार होता मोलासिस ( गुड़ फैक्ट्री से निकलता शराब का कच्चा माल ) नही दिख रहा । इनकी मुखबिरी कमजोर हो गई या हो जाती है जेब गरम आजकल है चर्चा में ? क्या आबकारी मंत्री देंगे इस ओर ध्यान पूछ रही जनता ?
और अंत में :-
खातिर से या लिहाज से मैँ मान तो गया ।
झूठी कसम से आपका ईमान तो गया ।।
#जय_हो 07 अप्रैल 2024 कवर्धा (छत्तीसगढ़)