वरिष्ठ पत्रकार चंद्रशेखर शर्मा की बात बेबाक

अक्सर टीवी पर आने वाला ब्रुक बाण्ड ताज़ा चाय के विज्ञापन की पंच लाइन “जानती हो हम कौन है जानती हो क्या ? जल्दी करो ” के डायलॉग पर रिसेप्शनिस्ट चाय की चुस्की ले अनाउंस करती है कि “यात्री कृपया ध्यान दे कि ये महाशय नही जानते कि ये कौन है ? अगर आप इनकी ये जानने में मदद कर सकते है तो बड़ी मेहरबानी होगी ” कह कर यात्री शर्मिंदा कर देती है , ठीक वैसे ही हालात जिले में चल रहे IPS के रुतबा ए रुआब को देख कर लगने लगा है बात बात पर ” मैं IPS हूँ , मेरी नौकरी अभी 30 साल बाकी है , मैं IG , DGP बन जाऊंगा , मुझे क्या समझते हो देख लूँगा ” का डायलाग शहर में चर्चा का विषय बना हुआ है । वैसे भी जो IPS है वो एक न एक दिन IG , DIG भी बनेगा ये तो सरकारी प्रक्रिया है ।अब इसमें घमंड किस बात का समझ से परे है । जिस IPS के कांधे पर कानून व्यवस्था और शान्ति बनाये रखने की महती जिम्मेदारी हो जब वही बात बात पर अपने IPS होने का दम्भ भरे और लहजे में धमकी वाला रुआब हो तो शहर का भगवान ही मालिक है ।
अपनी ईमानदारी का राग आलापने वाले वर्दीधरियो को यातायात थाने के सामने सड़क पर खुद के अवैध कब्जे नही दिख रहे । नेताओं की रैलियों में उड़ती कानून की धज्जियां नही दिख रही । सटोरिये के काले शीशे चढ़े गाड़ी में घूमते अफसर भी नही दिखते । दिखते तो प्रमुख मार्गों की सड़कों पर कब्जा किये व्यापारी भी नही । दिखते है तो सिर्फ गरीब ठेले वाले , 100 – 200 रुपये लेकर बाजार निकला आम आदमी जिसकी जेब मे रखे रुपये से ज्यादा का चालान काट दिया जाता है । शराब पीकर गाड़ी चलाती वर्दीधारी नही दिखता , दिखता है सिर्फ शराब पीकर गाड़ी चलाता आम आदमी ।
कहने को लोकतंत्र में सभी को समान अधिकार प्राप्त है न कोई बड़ा न कोई छोटा होता है किंतु यदि आप वर्दीधारी या खद्दरधारी है तो आपको कुछ ज्यादा ही अधिकार मिल जाते है कुछ घोषित तो कुछ अघोषित ताकि जिस जनसेवा के लिए आप नौकरी या राजनीति में आये है उस जिम्मेदारी को ईमानदारी (कहने को) से निभा व लोगों की सेवा कर सके । सरकारी नुमाइंदे हो या जनप्रतिनिधि हो यदि अपने कर्तव्यों का निर्वहन देशहित व जनसेवा के लिए करते हैं तो उन्हें VVIP मानने में कोई हर्ज नहीं है। लेकिन यदि मैं अधिकारी हुँ , जनप्रतिनिधि हुँ जो चाहूंगा वो करूंगा सोचे और समझे कि मैं जनता के लिए नहीं, बल्कि जनता मेरे लिए है , मेरे पास अधिकार है , पॉवर है, कुर्सी है, पद है । मुझे VVIP माना जाए तो घमंड का रूप यह भावना, सोच व दृष्टि सिविल सेवा आचरण संहिता व लोकतंत्र के लिए बेहद गंभीर व खतरनाक है ।

चलते चलते :-

गोबरहिंन टुरी :- कैसे लपरहा आज उदास क़ाबर हस । आज कमाई नई हुइस का ।
लपरहा टुरा :- कमाई तो हुइस ओ पर आज के कमाई इंट्री फीस में चल दिस ।
गोबरहिंन टुरी :- ये इंट्री फीस का होथे जी ?
लपरहा टुरी :- कोनो ल बताबे झन गाड़ी चलाना हे तो ईमानदार वर्दी वाले साहब मन ल जो चढ़ोत्तरी गाड़ी वाला मन देथन ओला इंट्री फीस बोलथे ।

और अंत में :-

तुम आस्तीन की बात करते हो ग़ालिब ,
हमने तो दिल में नागिन पाली थी।

 

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