महागठबंधन की सफलता देश के लिये लाभदायक
आज महागठबंधन आईएनडीआईए की बैठक है मुम्बई में…..
एक बेटे ने अपने पिता से कहा ‘पापा मैं राजनीति करना चाहता हूं। मुझे भी सिखाईये’। पहले तो पिता टालते रहे पर ज्यादा जिद करने पर पिता ने बेटे को छत पर भेजा और कूद जाने को कहा।
बेटा हिचकिचाया, पिता ने फिर जोर दिया, बेटा फिर हिचकिचाया। तब पिता ने कहा ‘बेटा मैं हूं न। तुम्हारा बाप हूं। गिरोगे तो थाम लूंगा, मुझ पर भरोसा रखो, कूद जाओ’।
पिता की बात पर भरोसा करके बेटा कूद गया। पर ये क्या…. ? पिता आराम से दूर जाकर खड़ा हो गया। बेटा गिरा, चोट आई। रोने लगा। पिता को कोसने लगा ‘आपने तो कहा था, पकड़ लेंगे, आप तो दूर हो गये’।
पिता ने कहा ‘बेटा ये राजनीति का पहला सबक है। ये पहला सबक ये है कि राजनीति में अपने बाप पर भी भरोसा मत करना’।
तो महागठबंधन आईएनडीआईए की 28 पार्टियो के 62 नेताओं की बैठक हो रही है मुम्बई में….. और सभी दलों के सभी नेताओं ने अपने पिताओं से राजनीति का पहला सबक सीखा हुआ है।
नेताओं को ये सबक अच्छी तरह पता है कि राजनीति में भरोसा किसी पर मत करना, बाप पर भी नहीं। तो आपसी अविश्वास पर टिके इस गठबंधन का सबब केवल अपना अस्तित्व बचाए रखना है।
सांप और नेवले जैसा वैमनस्य होने के बावजूद एक ही मंच पर विराजमान हैं तो खुद को बचाए रखने के लिये।
संदेह से घिरा विपक्ष का घेरा
सबसे पहला धमाका तो इस बात पर हुआ कि संबंधित एक बैनर में अरविंद केजरीवाल को स्थान नहीं दिया गया। जबकि राहुल गांधी को सबसे आगे रखा गया था। कदाचित् कांग्रेस को केजरीवाल के प्रधानमंत्री के लिये नाम आगे बढ़ाने के कारण आम आदमी पार्टी पर संदेह होने लगा। यही हाल सारे दलों का है।
पहले महागठबंधन की बैठक हुई पटना मे, जहां पर ये जाहिर हुआ कि क्षेत्रीय दल सिरमौर होंगे। क्षेत्रीय नेता मसलन नीतिश कुमार हेड बने रहे। लालू का हाथ थामकर।
फिर हुई बैंगलुरू में। यहंां नजारा बदल गया, धीरे से नीतिश कुमार का पत्ता साफ कर दिया गया। यहां कांग्रेस ने मेजबानी क्या ली,,, लगाम ही अपने हाथ में ले ली। जता दिया कि कांग्रेस ही इसे चलाएगी।
इस बैठक में सोनिया गांधी ने शिरकत की और लाईमलाईट में आ गयीं। जबकि पटना में वे नहीं थीं।
लड़ाई सरकार बनाने की नहीं
अस्तित्व बचाने की
अब मुम्बई में कल से नेताओं का जमावड़ा हो रहा है। महाविकास अघाड़ी की मेजबानी में तीसरी बैठक चल रही है। इसमें कांग्रेस का सर्वेसर्वा होना साफ जता दिया गया है और इसमे से अरविंद भैया का पत्ता पूरी तरह साफ कर दिया गया है, बैनर मे फोटो न लगाकर।
हालांकि बाद में उनकी भी फोटो लगाई गयी लेकिन जो संदेश जाना था वो चला गया। जो अविश्वास दिखना था वो दिख गया।
कुल मिलाकर हवा में अविश्वास है… ‘कड़वा-कड़वा थू… थू… मीठा-मीठा गप… गप’ वाली बात चरितार्थ होती दिख रही है। एक ही बात है जो इन्हें जोड़े रख रही है वो है ‘मोदी का डर’। लेकिन इन नेताओं को ये भी मंजूर नहीं है कि मोदी के डर से उनका अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाए।
टिकट बंटवारे पर घमासान संभव
एक बात और, चुनिंदा ही रणक्षेत्र ऐसे हैं जहां पर भाजपा को हराया जा सकता है और सारे लोग उसी पर खुद को स्थापित करना चाहते हैं और चाहते हैं कि उन सीटों पर विपक्ष उन्हें एकजुट होकर सपोर्ट करे।
अब सारे ही ऐसा चाहेंगे मगर मिलेगी किसी एक को, तो असंतोष होगा और फिर जाने क्या होगा रामा रे….. ? शाम तक पर्दे पर गलबहियां का सीन दिखेगा मगर पर्दे के पीछे खिंची तलवारों का परिदृश्य बाद में पता चलेगा।
जरूरी है गठबंधन मजबूत होना
बहुत सी बातें सरकार की ऐसी हैं जिन्हें लोकतंत्र के लिये खतरा कहा जा सकता है। इनमें कुछ अच्छी हैं और थोड़ी सी खराब भी हैं लेकिन यदि निरंकुशता बनी रही तो यकीन मानिये ‘पावर आलवेज़ करप्ट्स’, शक्ति भ्रष्ट बनाती है।
यदि अच्छे इंसान पर भी अंकुश न हो और वो निरंकुश रूप् से शक्तिशाली हो तो उसके द्वारा मनमानी करने की आशंका बढ़ जाती है इसनिये देश के लिये महागठबंधन का सफल होना भी अति आवश्यक है।
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जवाहर नागदेव, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, चिन्तक, विश्लेषक
मोबा. 9522170700
‘बिना छेड़छाड़ के लेख का प्रकाशन किया जा सकता है’
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