विदित हो कि स्वतंतता संग्राम सेनानी सुखदेव पातर हल्बा के पिता का नाम रघुनाथ हल्बा था, इनका जन्म वर्ष 1892 में गांव राऊरवाही कांकेर में हुआ था। वर्ष 1932 में उन्होनें स्वतंत्रता संग्राम सेनानी इंदरू केंवट और कंगलू कुम्हार से मित्रता करने के बाद गांधीजी अनुयायी बन गए। इनके पिताजी रघुनाथ जी राउरवाही से भेलवापानी में बस गए, यहीं से उनकी राजनीतिक और स्वतंत्रता की भूमिका में रूचि बढ़ गई। सुखदेव पातर के नेतृत्व में स्वतंत्रता शंखनाद के लिए खण्डी नदी के पास पातर बगीचा में एक सभा बुलाई गई, जिसमें लगभग दो हजार लोग चरखे युक्त तिरंगा झंडा लिए मौजूद थे। इस बैठक में सुखदेव पातर, कंगलू कुम्हार और इंदरू केंवट ने लोगों को आजादी के प्रति प्रेरित किया। वर्ष 1944-45 में उन्होंने भू-राजस्व (लगान) में वृद्धि के खिलाफ ब्रिटिश शासन के खिलाफ आंदोलन किए। 1974 में उन्होंने सुरूंगदोह और गोटुलमुंडा गांव में आजादी का खम्बा गाड कर चरखे युक्त तिरंगा फहराया और 09 जनवरी 1962 को वीरगति को प्राप्त हो गये। समाज ने सुखदेव पातर की शहादत दिवस हर्षोल्लास से मनाया इस अवसर पर प्रकाश दिवान, भागीरथी नाग, पून्नू राम प्रधान, प्रशांत देहारी, नेमू कृषान, विजय कुमार नाग, डॉ नरेनद्र राना, राम कुमार देहारी, गिरवर गुरूवर, नरेन्द्र भण्डारी, कोमल नाग, डॉ. जेएल नाग, प्रकाश भण्डारी, जोहन नाग, राजेन्द्र राना, यशवंत देहारी, विजय नाग, नेहरू लाल घरत, जनक राम गुरू, मुकेश राणा, पुनित राम राना, भरत राउतिया, जी आर सोम, जग्गु राम राना, कंकेश नाग, शत्रुधन समरथ, रंजित कश्यप, कुबेर प्रधान, लक्ष्मण प्रधान, अनिल नाग, अमेन्द्र नाग, चुम्मन नाग, नोहर नाग, प्रेमलाल नाग, गांडाराम नाग, राजा गावस्कर, असवन्ती भोयर, संध्या भोयर, बासन प्रधान, यसोदा प्रधान सहित समस्त हल्बा समाज उपस्थित थे।