वन्देमातरम्
{ श्रीराम को विजय हमने दिलाई, अमिताभ ने की कांगे्रस की खिंचाई – खड़गे यानि कांग्रेस अध्यक्ष ने आजादी की लड़ाई में योगदान की तुलना करते हुए कहा कि हमने आजादी दिलाई जबकि आरएसएस का कुत्ता भी नहीं था। इस बात पर देश का अच्छा खासा वर्ग उखड़ गया। पत्रकार अमिताभ अग्निहोत्री ने एक डिबेट में खड़गे की खिंचाई करते हुए कहा कि अच्छा हुआ आपने ये नहीं कहा कि 1857 की क्रांति भी कांग्रेस ने की थी और राम रावण यु़द्ध में भी राम को विजय हमने दिलवाई। यानि भगतसिंह, सुभाष चंद्र बोस, आजाद और फांसी चढ़ने वाले गोली खाने वाले लाखांे लोगों का कोई रोल नहीं था, ये कहां गये ? दूसरी ओर कोई भी ऐसा वरिष्ठ कांग्रेसी नहीं होगा जो फंासी चढ़ा हो या जेल गया हो।}
हाथ से हाथ जोड़ो यात्रा – छत्तीसगढ़ कांग्रेस अपना झण्डा लगाएगी साथ ही अपने पदाधिकारियों का नाम भी दरवाजों पर लगाएगी। केंद्र सरकार की गलत बातों और प्रदेश कांग्रेस सरकार की जनसेवी योजनाओं की जानकारी जनता तक पहुंचाएगी। ऐसी योजना बनाकर कांग्रेसी सड़कांे पर निकले। निकले या निकलने का दिखावा किया।
इस बात को समझने से पहले इस बात को जान लीजिये कि एक बार गर्मी के दिनों में लोकसभा चुनाव में प्रचार के दौरान एक कांग्रेसी मित्र से मुलाकात हुई जो हर रोज़ प्रचार में जाता था। उसने बताया कि सुबह कांग्रेस भवन जाकर सारे कांग्रेसी नेताओं से मुलाकात करके एक आॅटो में हम तीन लोग निकल जाते हैं। एक-दो बजे तक मार्केट में या जहां अपना काम हो वहां घूमते हैं और फिर घर जाकर सो जाते हैं। शाम को फिर छह बजे फिर निकलते हैं और दो-तीन घंटा बाजार में घूमकर फिर कांग्रेस भवन पहुंच जाते हैं। यानि ये प्रत्याशी का चुनाव प्रचार हुआ। और बदले में सुबह निकलते समय ही आॅटो भाड़ा और खाने के लिये एक तय रकम उन्हें कार्यालय से ही दे दी जाती थी। इस तरह प्रत्याशी को चूना लगता था और मित्र की नेताओं के बीच पैठ बनती थी। ये बात अलग है कि कांग्रेसी नेता इस बात से भलीभांति परिचित होते हैं क्योंकि वे भी तो ऐसे दौर से गुजरे हैं।
इसी आधार पर ये कहा जा सकता है कि कांग्रेसी हाथ से हाथ मिलाने की यात्रा पर जाने का दिखावा करते हैं।
निश्चित ही कुछ लोग ‘लगकर’ काम करते होंगे पर अधिकांश प्रोफेशनल कार्यकर्ता इसी तरह काम करते हैं। साफ जाहिर है इतने दिन हो गये कोई विशेष शाबाशी लायक खबर नहीं आई है। कि छत्तीसगढ़ कांग्रेस ने कहीं पर अपनी यात्रा को यादगार बनाने लायक काम किया हो, कहीं पैर जमाए हों या कि नंबर बढ़े हों जैसे राहुल गांधी की यात्रा से राहुल के नंबर बढ़ जाने की खबरें आ रही हैं।
इस यात्रा में लगे वो ही लोग हांेगे जिन्हें टिकट चाहिये होगा या जो आगमी किसी टिकट के लिये अपने भैया की नजर में चढ़ने को उत्सुक होंगे। लेकिन लाचारी ये है कि उनके साथ चलने वाले तो वे ही प्रोफेशनल्स होंगे न जो आॅटो का भाड़ा लेकर अपने काम से घूमने और दोपहरी में घर मे विश्राम करने में विश्वास करते हैं।
इतिहास गवाह है कि यात्राओं से फायदा होता है। आजादी से पहले गांधी जी ने कई यात्राएं कीं और स्वतंत्रता की लड़ाई को भभका दिया। उनकी दाण्डी यात्रा तो इतिहास में गहरी अंकित है। लालकृष्ण आडवानी की रथयात्रा तो यात्राआंे की यात्रा में मील का पत्थर साबित हुई है। और भी कई यात्राएं हुईं जैसे मुरली मनोहर जोशी ने राष्ट्रीय एकता यात्रा निकाली थी जिसका आडवानी जी की रथयात्रा जितना तो नहीं, लेकिन लाभ पार्टी को मिला था। अब राहुल गांधी ने याात्रा निकाली। निस्संदेह उन्हें फायदा हुआ और उनके नंबर बढ़े। ये बात अलग है कि उनके राजनैतिक जीवन में इतने गड्ढे हैं कि ऐसी कई यात्राआंे के बाद भी वे इन्हें भर नहीं पाएंगे। उनका जितना कद है उससे दस गुना अधिक मोदीजी का कद है।
देश का बच्चा-बच्चा जानता है और राजनीति का ‘र’ समझने वाला भी समझता है कि राहुल के लिये दिल्ली बहुत दूर है। जब उनके संगी-साथी यानि मोदीजी के तमाम विरोधी जो एक छत के नीचे दिखने का दावा तो करते हैं लेकिन वास्तव में होते नहीं, वे सारे एकमत होकर राहुल को प्रधानमंत्री नहीं बनाना चाहते हैं। तो राहुल की यात्रा से फायदा तो हुआ है लेकिन वो उंट के मुंह में जीरे के बराबर है।
जवाहर नागदेव, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, चिन्तक, विश्लेषक
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