जवाहर नागदेव वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, चिन्तक, विश्लेषक mo. 9522170700
यही तो मौका होता है जब किसी को पटाने के लिये प्रयास किया जाता है। तोहफा लेकर घर पहंुचा जाता है और चरण छोटा हो या बड़ा चरणों पर लोटकर वफा का इजहार किया जाता है। नये वर्ष में नया तोहफा तो बनता है। जितना बड़ा आदमी और जितना बड़ा स्वार्थ उतना बड़ा तोहफा। खासतौर पर अधिकारियों के लिये ये मौके खास होते हैं।
‘आका के लिये है
हाथों में कीमती सामान
मतलब साधने चेहरे पर
बनावटी मुस्कान
बनावटी मुस्कान
हृदय में भरपूर कुटिलता
तभी तो भैया मतलब का माल है मिलता’
बड़ा ही धर्मसंकट होता है अधिकारियों के लिये। खासतौर पर ऐसे वक्त में जब कुछ पता नहीं चल पा रहा कि कौन पाएगा सत्ता और बैठेगा कुर्सी पर। बिचारे बड़े बौखला से रहे हैं। दोनों ही पार्टियों में टसल है। मुकाबला है। उपर से टीएस सिंहदेव साहब ने और भी ‘कन्फ्यूजन किरिएट’ कर दिया हैै। खुद सीएम नहीं बन आए तो ये टीस कायम है। उपर से अधिकारी कुछ विशेष तवज्जो भी नही दे रहे थे। लिहाजा नाराजगी स्वाभाविक है। राजा हैं। कोई छोटी-मोटी शख्सियत नहीं कि खींसे निपोर कर खड़े रहें सत्ता के गलियारे में। तो खुद तो क्षुब्ध हैं और इसी नाराजगी के चलते अधिकारियों को संशय में डाल रखा है। दोनों ही दलों की ताकत बराबर लग रही है। यानि दोनों दलों को पटाना होगा। दोहरा खर्चा। गिफ्ट देने वाले भी ढेरों हैं। ऐसे में मालदार जगह जाने के लिये पांच साल कमाने के लिये कितनी मशक्कत करनी होती है। हे राम।
सत्ता करेगी किसका वरण
किससे बनाएं नये समीकरण
इससे कितने लोग सहमत होंगे कितने असहमत नहीं कहा जा सकता लेकिन अनुभव ये बताता है कि कुमार विश्वास केजरीवाल को हर मंच से पानी पी-पीकर कोसते रहते हैं। लगातार धोते रहे हैं। यदि राज्यसभा में किसी और को भेजने का बजाए केजरीवाल कुमार विश्वास को भेज देते तो क्या विश्वास का रूख केजरी के प्रति तब भी ऐसा ही होता। कदापि नहीं। तब तो विश्वास आम आदमी पार्टी के गुण गाते और केजरीवाल को देवदूत की तरह प्रस्तुत करते। तो बस… यही होते हैं समीकरण जो स्वार्थ से सधते और बंधते हैं। नेता हो, अधिकारी हो या कवि हो यानि हर इंसान अपने समीकरण बिठाता है और उसका फल पाता है। समीकरण सधते न देख विरोधी हो जाता है। पिछले चुनावों में भाजपा का परचम लहराने की आस में जो लोग कांग्रेस से भाजपा में आए थे और धोखा खा गये। इस बार बड़े पेशोपेश में हैं।
-लगाते आरोप हंस-हंस कर
छटपटाते उसमें खुद फंसकर
चाईना का हाल बेहाल है। सबको डराने में विश्वास रखता है इस बार कुदरत ने उसे डरा दिया। कोरोना का कहर इस कदर ठेल रहा है कि बस पूछो मत। खबर है कि अस्पतालों में बिस्तर नहीं, स्टोरों में दवाएं नहीं और मर्चुरी मंे लाशें रखने के लिये जगह नहीं। डर जरूरी है सरकारों से, देश दुनिया से या फिर अंततः भगवान से……. इंसान को डरना चाहिये। कहते हैं ये कोरोना चाईना ने खुद ही बनाया और फैलाया है। बहरहाल… डर तो इन्हें भी नहीं है। आरोप लगाते हैं और जब उल्टा आरोप लगता है तो बोलती बंद हो जाती है। जब भी चाईना के मुद्दे पर कांग्रेस च्भाजपा सरकार पर आरोप लगाती है ‘राजीव गांधी फाउण्डेशन ने चाईना से करोंड़ों रूप्ये चंदा लिया है’ ये आरोप प्रमाण सहित भाजपा नेता कांग्रेस पर लगाते हैं। कंेद्र सरकार पर लगाए आरोपों को कांग्रेस साबित नही ंकर पाती लेकिन अपने उपर लगे आरोपों का कोई स्पष्टीकरण भी नहीं दिया जाता। तो भैया चुप रहो न क्यों मोदीजी डव्क्प्श्रप् पर चाईना से संबंधों का चाईना के प्रति सहानुभूति का आरोप लगाते हो ?
ढोल, गंवार शूद्र, पशु, नारी
ये सब ताड़न के अधिकारी
एक पति ने मज़ाक में पत्नी से कहा ‘ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी ये सब ताड़न के अधिकारी’ इसका अर्थ समझती हो या समझाएं। पत्नी ने जवाब दिया ‘इसके अर्थ तो बिल्कुल ही साफ हैं, इसमें एक जगह मैं हूं, चार जगह आप हैं’। मज़ाक में कही गयी बात आज के जमाने मे बेहद सटीक उतर रही है। गंवार, शूद्र और पशु को तो प्रताड़ना किसी हालत में नहीं दी जा सकती कि कानून इस बात की इजाजत नहीं देता। मगर पति का ढोल जरूर पीटा जाता है। पति बिचारा ढोल की तरह बजता रहता है। बजाने का काम सबसे अधिक उसकी पत्नी करती है।
विवाह क्या-क्या दिखाता है
आखिर कौन सिखाता है
एक शख्स बड़ा परेशान था। जब भी कभी वो कोई नयी बात घर में करता जो पत्नी को पसंद नहीं आती तो वो कहती है ये सब पाठ इसकी मां इसे पढ़ाती है, वही समझाकर भेजती है’। और जब वो बात मां को पसंद नहीं आती तो मां कहती ‘ये सब इसके कान मे इसकी बीबी भरती है, वही समझाकर भेजती है’। बिचारा जाए तो जाए कहां ?
उपर कानून का डण्डा, महिला आयोग। सारे चौकस चौबन्द। महिला की रक्षा के लिये। पति के पिटने से इन्हें कोई सारोकार नहीं। पत्नी को कुछ नहीं होना चाहिये। इस बात का महिलाएं जमकर फायदा उठाती हैं। हालांकि बहुत सारे ‘पत्नी पीड़ित संघ’ भी बनाए गये हैं लेकिन फायदा कुछ भी नजर नहीं आता। क्यांेकि कानून ने पहले ही अबला नारी को संबल दे दिया है और इससे पुरूष निर्बल हो गया है।
-एक घंटे की उड़ान
तीन घंटे की थकान
ट्रेन मे सफर करने की सभी लोगों की इच्छा होती है। मध्यम वर्ग को जीवन में कम से कम एक बार हवा में उड़ने की इच्छा ंजरूर होती है। लेकिन हम जैसे लोगों को हवाई जहाज में सफर करने में मजा नहीं आता। हम लोगों को ट्रेन में रिजर्ववेशन करा कर सफर करने मंे अधिक आनंद आता है। चार दोस्त या परिवार हो और टिकट कन्फर्म हो। गाते-बजाते, खाते-पीते, बतियाते यानि ट्रेन में पिकनिक मनाते चले। जबकि एक घंटे सफर के लिये प्लेन में बोर से बिताने के लिये आजकल तीन घंटे पहले पहुंचने का फरमान जारी कर दिया गया है। यानि एक घंटे का सफर और तीन घंटे स्टेशन पर। ट्रेन का क्या है ऐन टाईम पर पहुंचे तब भी पता है कि टाईम से पहले छूटेगी नहीं,आराम से चढ़ा जा सकता है।