छत्तीसगढ़ में अधिकारियों की जवाबदेही…. एक भ्रम है, मंत्रियों और हाईकोर्ट तक को…. छलते हैं अधिकारी वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की खरी… खरी….

 

दो खबरें लगभग साथ-साथ आईं। इन खबरों से हंसी छूट गयी।
एक खबर ये कि जिलाधीश महोदय ने कहा है कि कर्मचारी समय पर कार्यालय पहुंचे और दूसरी ये कि माननीय हाईकोर्ट ने राज्य शासन को दिये निर्देश में कहा है कि जिला प्रशासन, नगर निगम, नगर पालिका और नगर पंचायतों को कड़ाई से आदेश दें कि सड़कों पर जानवर न पाए जाएं।
यदि सड़क पर जानवर मिले तो जवाबदारी संबंधित अधिकारी की होगी और अधिकारी के विरूद्ध कार्यवाही की जाएगी।

पहले भी ऐसी खबरें आती रही हैं पर इस बार की विष्णुदेव साय सरकार के रूख को देखते हुए ये खबरें मात्र खानापूर्ति नहीं लग रही हैं। शायद कुछ हो ही जाए।

बहरहाल… दोनों खबरें पढ़कर हंसी आ गयी। पहली खबर थी कि किसी भी कार्यालय में कोई भी कर्मचारी टाईम पे नहीं आता जिसके लिये जिलाधीश महोदय ने चेतावनी दी है कि कर्मचारी समय पर आॅफिस नहीं पहुंचेंगे तो उन्हें दण्डित किया जाएगा।

दुखद पहलू ये है कि एक-दो बार नहीं कईयों बार अलग-अलग जिलाधीशों ने ऐसी कई चेतावनियां दी हैं लेकिन ये सर्वविदित तथ्य है कि ऐसे अधिकारियों को अंततः शर्मिन्दा ही होना पड़ता है।
कारण साफ है कि कर्मचारियों को समय पर न आना है न आएंगे। ‘बड़ा बेमुरव्वत, बेकदर, बेकाबू है, इक आॅफिस का अधिकारी, इक आॅफिस का बाबू है’।

अधिकारियों को सजा…. एक दिवास्वप्न

सबको पता है कि हमारे देश मे घूसखोरी से सबकुछ संभव है। विरले ऐसा होता है कि कोई सरकारी आदमी नौकरी से विलग हो जाए। इतिहास बताता है कि जब भी कभी कोई अधिकारी/कर्मचारी सस्पेण्ड होता है तो थोड़े ही समय के बाद वापस नौकरी पर आ जाता है।

और फिर हमारे प्रदेश में तो हर सरकारी आदमी ने एक न एक राजनैतिक संरक्षक बनाकर रखा है जिसका रसूख सत्ता में डोलता है। जब भी कोई सरकारी आदमी किसी गलती में पकड़ाता है तो उसका संरक्षक उसे उबारने के लिये तत्पर रहता है।

न जानवर हटेंगे, न कर्मचारी समय पर आएंगे

जहां तक जानवरों द्वारा सड़क घेरकर बैठने की बात है तो गांव हो, नगर हो या महानगर हो। हर जगह हर सड़क पर ये दृश्य देखने को मिल जाता है। हाईकोर्ट में लगी एक याचिका में ये निवेदन किया गया कि रायपुर-बिलासपुर रोड पर जानवरों से दुर्घटना के चलते 50 से ज्यादा लोग सिधार चुके हैं और कई घायल हुए हैं।

ये कोई आजकल की बात नहीं है। कई दशकों से ये मंजर देखा जा सकता है। सड़कों पर हजारों लोग पूरे प्रदेश में असमय काल कवलित हो रहे हैं।

अब जाकर शासन ने ये कड़ा कदम उठाया है वो भी माननीय हाईकोर्ट के निर्देश पर।
लेकिन इस बात को अधिकारी गंभीरता से लेंगे इसमें अभी भी संशय है।
क्योंकि अनुभव बताता है कि कुछ एक अपवादों को छोड़कर अधिकारियों ने कभी भी हाईकोर्ट के दिशानिर्देशों का पालन गंभीरता से नहीं किया है।

हाईकोर्ट की अवज्ञा के मामलों में बहुत बार हाईकोर्ट ने नाराजगी जताई है। कुछ एक बार कुछ अधिकारियों को दण्ड की चेतावनी भी दी है। लेकिन फिर भी सरकारी आदमी पर इसका असर पड़ता नहीं दिखता।
अंदाजा तो यही है कि न कर्मचारी समय पर कार्यालय पहुंचने वाले हैं और न ही सड़कें जानवरों से मुक्त होने वाली हैं। सरकार के इस कड़े कदम का कदाचित् यही हश्र होगा….
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जवाहर नागदेव, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, चिन्तक, विश्लेषक
मोबा. 9522170700
‘बिना छेड़छाड़ के लेख का प्रकाशन किया जा सकता है’
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