
9425522015
रंग को रंग न जानिए , इनमें भी होत जान ।
इन्ही से अरदास है , है इन्ही से अजान ।।
राजनीति और रंग एक दूसरे के पर्याय होते जा रहे है । समझदार होते आदमियों ने अपनी सुविधानुसार रंगों की भी जाति, धर्म , पार्टी और लिंग निर्धारित कर लिए है । हरे रंग की बात करो तो मुस्लिम नाराज , भगवे रंग की बात करो तो हिन्दू नाराज , नीला रंग हो गया बहुजन, गुलाबी जोगी कांग्रेस , भगवा हो गया तो भाजपाई , पिंक या पर्पल हो तो लड़की वाला रंग यानि स्त्रीलिंग और काला रंग तो विरोध प्रदर्शन का प्रतीक ही बन गया है । काले रंग की बात सुनते ही नेताओ का ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है , फिर जनता और विरोधियों की शामत आ जाती है ।
जैसे जैसे चुनाव नजदीक आता है वैसे वैसे रंगों की उपयोगिता भी बढ़ने लगती है । भले ही हम 21 वी. सदी में सफर करते चांद तक पहुंच चुके है मंगल से लेकर सूरज तक का सफर कर रहे है किंतु आज भी रंगो की दहशत इस कदर हावी है कि अब महिलाओं की चोली , बच्चियों की काली चुनरी तक से नेता अफसर डरने लगे है ।
किसी नेता की सभा या कार्यक्रम तय हुआ और कही किसी विरोधी या छपास रोगी छुटभैये नेता ने अपनी राजनीति की दुकानदारी चमकाने काले झंडे दिखाने की बात बोल दी तो मुसीबत जनता जनार्दन और मां बहनों की हो जाती है । खाकी की नजर में औरतों की काली चोली और बच्चियों की काली चुन्नी काला झंडा नज़र आने लगती है । जो चोली और चुन्नी महिलाओं और बच्चियों की शर्म और लाज का पर्दा है उसे बड़ी बेदर्दी से उतारा जाता है । स्वामिभक्ति की आड़ में बेहया होती राजनीति ,अफसरों की काले रंग की दहशत सैकड़ो माँ बहनों की शर्मोहया लाज शरम की चोली और चुन्नी जरूर उतरवा देती है । काले रंग की दहशत से लगने लगा है अब रैलियों और समारोहों के लिए भी ड्रेस कोड लागू हो जाना चाहिए या आमंत्रण पत्र फ्लेक्स बैनर में स्पष्ट लिखा हो कि समारोह या रैली में काले रंग के कपड़े पहन कर आना निषेध है काले कपड़े वाले दूर दूर तक नजर न आएं ।
और अंत में :-
मोदी पांसे चले , भूपेश चले दांव ,
रमण हूँकार भरे , होवत कांव-कांव ।
जात पाँत भाषा और धर्म, ने बाँट दिए इंसान ,
वोटर लिस्ट में सिमट गई ,अब जनता की पहचान ।
#जय हो 30 सितम्बर 2023 कवर्धा (छत्तीसगढ़)