Saturday, July 27

चुनावी हल चल बस्तर में 19 को पता चलेगा, कौन बीस है कश्यप् और कवासी मे 0 वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव

 

छत्तीसगढ़ का सबसे पहला चुनाव यहीं होगा। बस्तर मे 13 लाख मतदाता हंै। इस लोकसभा की पूरे हिंदुस्तान में चर्चा होती है। आदिवासी क्षेत्र है।

किसी समय में इनकी मासूमियत और निष्कपटता की मिसाल दी जाती थी। पर अब यहां वातावरण में चतुराई और नक्सलवाद घुल गया है।
हालांकि यहां के आदिवासी अब भी सोचते हैं कि इनकी संस्कृति कैसे सुरक्षित रहे। सावधानी बतौर ये लोग बाहरी लोगों को जल्दी स्वीकार नहीं करते।

बस्तर लोकसभा से भाजपा ने महेश कश्यप को उतारा है तो कांग्रेस ने कवासी लखमा को, जो कोंटा विधानसभा सीट से वर्तमान में विधायक हैं।

हम गंगाजल वाले नहीं
देसी महुआ वाले हैं

कभी स्कूल नहीं गये कवासी लखमा ने पिछले दिनों अपने प्रत्याशी बनाए जाने पर दिलचस्प टिप्पणी की कि मैं तो बेटे के लिये डौकी लेने गया था पार्टी ने मुझे ही डौकी दे दी।
लखमा के कहने का तात्पर्य ये है कि वे अपने बेटे के लिये लोकसभा का टिकट चाहते थे जिसके लिये दिल्ली चक्कर लगा रहे थे लेकिन वहां पर उनके बेटे के बदले उन्हें ही लोकसभा का प्रत्याशी बना दिया गया।

यूं भी अपनी बेबाक टिप्पणियों के लिये जाने जाते हैं वे। विधानसभा में उन्होंने इस बात को स्पष्टरूप से स्वीकारा कि वे गंगाजल वाले नहीं बल्कि देसी महुआ वाले हैं। इसके अलावा लखमा मानते हैं कि दारू बंद करना बेवकूफी है।

लखमा ने अपने क्षेत्र में इतनी पकड़ बनाई है कि वे पिछले सात बार से वहां कांेटा विधानसभा से विधायक बनते चले आ रहे हैं।

बताया जाता है कि विधानसभा चुनाव के भी कई महीने पहले से वे लगातार बकरा-भात का आयोजन करते चले आ रहे थे। उनकी इलाके पर बेहतर पकड़ बनी रही।

हालांकि 2023 के विधानसभा चुनाव में वहां से उनकी जीत कोई विशेष उल्लेखनीय नहीं कही जा सकती। वे मात्र 1981 वोट से जीते थे।

धर्मान्तरण की खिलाफत के लिये
लोकप्रिय हैं महेश कश्यप

दूसरी ओर भाजपा प्रत्याशी महेश कश्यप इससे पहले केवल सरपंच के पद पर रहे हैें। अपनी उम्मीदवारी से बेहद उत्साहित कश्यप् का कहना है कि एक समय था जब बस्तर जाने को कालापानी समझा जाता था, पर बाद में माननीय अटल बिहारी बाजपेई द्वारा अलग छत्तीसगढ़ बनने के बाद लगातार विकास किया।

पिछले पांच साल में कांगे्रस ने जंमकर लूटा।
धर्मान्तरण पर बोलते हुए विश्व ंिहंदु परिषद के कर्णधार कश्यप् ने कहा कि मेरे जैसे कार्यकर्ता को इतना बड़ा जवाबदारी सौंपी है।

ज्ञातव्य है कि महेश कश्यप् बस्तर सांस्कृतिक मंच के सर्वेसर्वा हैं आरएसएस से गहरे जुड़े कश्यप धर्मान्तरण के प्रबल विरोधी हैं।

जमीन से जुड़े कार्यकर्ता हैं। बेहद ईमानदारी से पार्टी का काम करने वाले नेता के रूप् में प्रसिद्ध हैं। इतने बड़े क्षेत्र आठ विधानसभाओं में वे कैसे पहुंचेंगे और कैसे जनसंपर्क करेंगे के प्रश्न पर उन्होंने पूरा भरोसा कार्यकर्ताओं पर जताया।

इतिहास और स्थिति

वर्तमान में 3 विधानसभा सीटों बीजापुर, कोंटा और बस्तर पर कांग्रेस का कब्जा है। शेष 5 भाजपा ने जीतीं। ये तीनों सीटें मामूली अंतर से कांग्रेस जीत पाई।

इतिहास को खंगालें तो प्रारम्भ में बस्तर लोकसभा में कांग्रेस का कब्जा रहा और धाकड़ नेता बलिराम कश्यप ने सबसे पहले कांग्रेस से मुक्त किया बस्तर को। वे मजबूत पकड़ वाले धाकड़ नेता थे जिनके बड़े बेटे दिनेश कश्यप भी यहां से सांसद रहे।

कालांतर में भाजपा के ही बोदूराम कश्यप् यहां से सांसद रहे।

दीपक ने छीनी सीट

उसके बाद कांग्रेस के दीपक बैज ने बोदूराम कश्यप् को हरा कर कांग्रेस का कब्जा करवा लिया।
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज भी इस सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन उन की जगह कवासी लखता को टिकट देकर सबको आश्चर्य में डाल दिया। जबकि कवासी अपने बेटे हरीश लखता के लिये ये सीट चाहते थे।

यहां से कांग्रेस नेे कोंटा, बीजापुर और बस्तर विधानसभा जीती है और इसके मुकाबले भाजपा ने पांच सीटें जीती हैं।
दीपक बैज को ईसाई समुदाय के पक्ष में अधिक दिखते हैं जिससे आम लोग इनसे जाहिर है कांग्रेस से खफा हैं।
बस्तर लोकसभा मे दंतेवाड़ा, बस्तर, बीजापुर, जगदलपुर, चित्रकूट, बस्तर, नारायणपुर और कोंडागांव विधानसभा सीटें हैं।
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जवाहर नागदेव, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, चिन्तक, विश्लेषक
मोबा. 9522170700
‘बिना छेड़छाड़ के लेख का प्रकाशन किया जा सकता है’ IMNB news Agency
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