
करीबन आठ सौ से हजार वर्षों की परतंत्रता के बाद अनेक जीवन का बलिदान देने और विभिन्न संघर्षों के बाद हमें स्वतंत्रता प्राप्त हुई है। इस संघर्ष से प्राप्त स्वतंत्रता को हमें देश की एकता, अखंडता एवं सामाजिक समरसता की शक्ति से चिरकाल तक स्थाई रूप से बनाए रखना है अब कभी स्वतंत्रता पर खतरा ना आए यह हमारे देश के दिग्दर्शकों को अपनी कर्मठ जिजीविषा से बनाए रखना होगा। स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद हमारी एकता, अखंडता एवं एकरूपता मजबूत हुई है, पर कतिपय राजनैतिक मंसूबों के कारण आज हम सांप्रदायिकता, क्षेत्रीयता, जातीयता और अलग-अलग भाषाओं के संघर्षों से गुजर रहे हैं। हम आज मंदिर ,मस्जिद, गुरुद्वारा और चर्च के विवाद को लेकर विवाद ग्रस्त हो जाते हैं । कभी हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू, पंजाबी,मराठी,तेलगु,और कभी असमी भाषा के असमंजस में फंस कर एक दूसरे का विरोध जताना शुरू कर देते हैं। मूलतः हमें राष्ट्रीय अखंडता को बनाए रखने के लिए सांप्रदायिकता के विद्वेष, ईर्ष्या, जलन और सीमा तथा भाषाई विवाद से परे हटकर देश में अखंडता, सांप्रदायिक सद्भावना का एक शुद्ध वातावरण समाज में तैयार करना होगा, जिसके फलस्वरूप हम विकास की मुख्यधारा में अपना व्यक्तिगत योगदान राष्ट्र के प्रति दे संके। डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ने कहा था कि “भारत संपूर्ण विश्व में एक अकेला ऐसा राष्ट्र है जहां मंदिरों ,मस्जिदों, गिरजाघरों और गुरुद्वारों का एक एकात्मक सह अस्तित्व कायम है”।
वर्तमान समय में वैश्विक स्तर पर आतंकवाद शांति सद्भावना एवं किसी भी राष्ट्र की अखंडता एकता एकरूपता के लिए सबसे बड़ा खतरा है। आतंकवादी कभी अमेरिका और कभी भारत के दिल्ली, मुंबई और अनेक प्रदेशों को अपना निशाना बनाकर आतंक फैलाने का प्रयास करते हैं और आतंकवाद ने कई राज्यों में अपार जनहानि तथा संपत्ति की क्षति पहुंचाई है। इसके अतिरिक्त अलगाववादियों ने भी राष्ट्रीय एकता अखंडता को भंग करने का पुरजोर प्रयास किया है। राजनीतिक पार्टियों के मंसूबों तथा उनकी महत्वाकांक्षाओं के कारण भी अलग-अलग जातियों संप्रदाय तथा पूजा के पवित्र स्थानों को लेकर समाज को अलग करने का बीजारोपण भी किया है। राजनीतिक पार्टियों के चंद राजनेता वोट बैंक बनाने के लिए कभी अल्पसंख्यकों में अलगाव के बीच बोलने का प्रयास करते हैं। कभी आरक्षण के नाम पर पिछड़े वर्गों को देश की मुख्यधारा से बहकाने का प्रयास करते हैं, और कभी किसी विशेष जाति प्रांत या भाषा के हकदार बन कर देश की एकता, अखंडता को खंडित करने का पुरजोर प्रयास करते हैं। यह अत्यंत निंदनीय एवं चिंतनीय सामाजिक पहलू है, जिस संदर्भ में हमें गहन विचार करने की आवश्यकता भी है। सामाजिक स्तर पर हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई एवं अन्य वर्ग सुचारू रूप से भाईचारे में अखंड विश्वास रखते हैं एवं सामान्य जीवन करने में विश्वास रखते हैं। पर राजनैतिक मंसूबों के कारण कुछ राजनेता इन सभी संप्रदायों को आपस में लड़वाकर अपना उल्लू सीधा करने का प्रयास करते हैं। पर यह एक अत्यंत विचारणीय पहलू है कि राष्ट्रीय अखंडता एकता तथा सहयोग को बनाए रखने के लिए केवल राजनेता या प्रशासनिक अधिकारियों का कार्य न होकर हम सबका यह कर्तव्य भी है कि हमें एकजुट होकर राष्ट्र सर्वोपरि की भावना को सदैव बनाए रखने का सतत प्रयास करना चाहिए। हम यदि ऐतिहासिक रूप से देखें की अनेक धर्मो जातियों और अनेक भाषाओं वाला भारत देश पूर्व में अनेक विसंगतियां के बावजूद सदैव एकता के सूत्र में बंधा रहा है। भारत देश में पूर्व में भी अनेक विदेशी जातियां आई और धीरे-धीरे भारत की मूल धारा में समाहित होती गई। भारत में आगमन के साथ इन्हीं जातियों की परंपराएं, विचारधाराएं, संस्कृति, संस्कार भारत की मुख्य धारा में एक रूप हो गई
और भारत की सांप्रदायिक सौहार्द की भावना आज भी वैसी की वैसी ही है। भारत के जिम्मेदार नागरिक होने के कारण हमारी बड़ी नैतिक जिम्मेदारी है कि हम इस देश की अखंडता एकता समरूपता और परंपरा को मजबूत बनाकर विश्व के सामने एक मिसाल के रूप में पेश करें। यह सार्वभौमिक सत्य है कि कोई देश यदि संगठित एक रूप और शक्तिमान होता है तो सारा विश्व उसकी इस ऊर्जा शक्ति को चिन्हित कर उसका सम्मान करता है। और उस पर आक्रमण या किसी भी तरह के प्रतिबंध लगाने से भयभीत रहता है। जब तक हम एकता के सूत्र में बंधे तब तक हम मजबूत एवं शक्तिशाली हैं और जब हम खंडित या विघटित हुए तब तब देश कमजोर हुआ है। अब हमें इन विघटनकारी ताकतों और विध्वंस कारी शक्तियों को नियंत्रण में लाकर इन्हें देश से बाहर भगाना होगा और इन पर प्रभावी नियंत्रण कर के देश की संप्रभुता एकता को बनाए रखना होगा। इसके लिए देश के संचार माध्यम, मीडिया, साहित्यकारों, कलाकारों को राष्ट्रीय एकता के लिए अपने को समर्पित भाव से सामने लाकर देश की सेवा करनी होगी।
संजीव ठाकुर, स्तंभकार,चिंतक, वर्ल्ड रिकॉर्ड धारक लेखक, रायपुर छत्तीसगढ़, 9009 415 415,
कविता,
संजीव-नी।
मैं किनारे लहरों में डूबता उतरता रहा।
चेहरे पर दर्द तस्वीर बन उभरता रहा,
दर्द बीमार की दवा बन संवरता रहा।
सफर में छोड़ रुखसत हो गए सब,
रातों का जुगनु बन टिमटिमाता रहा।
तनकर खड़ा होता तोड़ दिया जाता,
लताओं सा सबके सामने झुकता रहा।
जमाने में न जाने कितने रंग बदले,
बिखरा नहीं जमाना तंज कसता रहा।
सारा शहर रोशन होता रहा रात भर,
घर मेरे दिन में भी अंधेरा डसता रहा।
चतुर लोग आज कहां से कहां पहुंचे,
मैं जिंदगी को हौले-हौले गढ़ता रहा।
लोग नदिया पार गए कश्ती के सहारे,
मैं किनारे लहरों में डूबता उतरता रहा।
संजीव ठाकुर, रायपुर छत्तीसगढ़, 9009 415 415,