मन से बड़ा कोई धाम न मिलेगावि
भीषण अगर बन भी गए,
तो अब राम ना मिलेगा ।
देश की विडम्बना है कि कुर्सी की चाहत में अपने भी बेगाने हो जाते है जो मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ के साथ हुए अन्य राज्यो के विधानसभा चुनाव परिणामो में दिखा था जिसका असर लोकसभा के चुनाव में भी दिखने लगा है । पार्टी की नैया डूबती देख मतलब परस्त पार्टी से किनारा कर नए आशियाने की तलाश में है । सत्ता व सरकार गंवाने के साथ साथ ईडी का शिकंजा शराब , कोयला घोटाले को लेकर साल 23 – 24 छत्तीसगढ में कांग्रेस के लिए हताशा भरा रहना है 15 साल सत्ता की मलाई खा 5 साल वनवास भोगने वाली भाजपा का वनवास 2024 आते आते खत्म हुआ । वैसे वर्ष 2024 चुनावी वर्ष रहने वाला है इस दौरान लोकसभा नगरीय निकाय और उसके बाद पंचायती राज के चुनावों का दौर रहेगा ।
छत्तीसगढ़ में सत्ता से बाहर हुई कांग्रेस सन्नपात की स्थिति में है हालात ये है कि कार्यकर्ताओ की नाराजगी से बचने और चापलूसों के कर्मो के भंडा फोड़ होने के दहशत के चलते समीक्षा बैठक तक नही हो पाई पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश के सामने मंचो पर कार्यकर्ता अपनी पीड़ा निकाल नेताओ को खरीखोटी सुनाते पोष्टर छाप मतलब परस्त नेताओ के खिलाफ अपनी भड़ास निकाल रहे है । विधानसभा चुनाव के बाद से कांग्रेसी कार्यकर्ता अपने आपको अनाथ महसूस करने लगे है । कवर्धा नगरपालिका अध्यक्ष के वायरल आडियो के बाद हुई पार्टी की छीछालेदर से उनकी उनकी कुर्सी तो गई ही साथ ही साथ अकबर का साम्राज्य भी ध्वस्त हो गया आज हालात ये है कि हार के बाद से उन्होंने क्षेत्र की ओर पलट कर देखना भी मुनासिब नही समझा ।
अधिकारी राज से त्रस्त जनता ने चापलूसों की फौज से घिरी कांग्रेस को सत्ता से उतारकर हकीकत के धरातल पर उतार दिया है चापलूस और पौआ छाप ठेकेदार कम नेता जिधर बम उधर हम की राजनीति के चलते दलबदल कर भाजपा में बैनर पोष्टर के सहारे अपनी दुकानदारी सेट करने में व्यस्त है। राजनीति की इस उठा पटक के बीच अब भूले बिसरे कार्यकर्ताओ की भी याद आने लगी है जिनकी अब बारातियो सरीखी पूछ परख भी बढ़ेगी । राजनीति के दंगल में जातिगत आधार पर राजनीतिक रोटियां सेकते भ्रष्ट्राचार की सर्वत्र होती जय के बीच घिसे पीटे नारो के जरिये फिर से जनता की भूख और गरीबी को विकास के दावों और वादों की लोरियां सुनाएंगे । वरना आज तक क्यों जनता के मुद्दे सिर्फ भाषणों की ताली बजाऊ चंद लाईने बन कर रह गये है । क्या ये हकीकत नहीं है कि हमारे नेताओं ने रोटी , कपड़ा, मकान, नौकरी, पढाई, स्वास्थ्य को चुनाव के अलावा भी कभी किसी भाषण का हिस्सा बनाया है ? असल में ये हमारे बीच जाति, धर्म, संप्रदाय , क्षेत्रवाद की बाते छेड़ कर हमारे रहनुमा नेता जरूर बन जाते हैं । जनसेवक बनते ही जनता जनार्दन की सेवा का राग अलापते खतरे मोल लेने के दावे वादे करते है पर लेते क्या है ? लेते हैं एक्स , वाय , जेड , जेड प्लस सुरक्षा , मोटी तनख्वाह और पेंशन , लग्ज़री गाड़ियां, विलासिता की ज़िन्दगी । हमारी ज़िन्दगी तो साइकिल से बुलेट तक आते आते आधी उम्र गुजा़र देती है। इनकी ज़िन्दगी 5 बरस में ही गाव की गलियो के धूल और गोबर की मनमोहक खुशबू से निकल शहर की आलिशान कोठी, महकते कमरे और फार्महाउस होते हुए पैदल से चार्टेड प्लेन तक का सफ़र तय कर जाती है ।
चलते चलते :-
चिल्फी बैरियर में लठैतों के राज की खबर और अवैध वसूली का हिस्सा ऊपर तक पहुंचाए जाने की चर्चा सच है या कोरी अफवाह ?
और अंत में :-
अगर राजनीति में होता है देश का उद्धार ,
तो यहां सबसे ज्यादा क्यों मिलते है गद्दार।
#जय_हो 4 अप्रैल 24 कवर्धा ( छत्तीसगढ़)