
पचराही गाँव की गोमती बैगा ने कहा कि- “वनाधिकार कानून के 20 साल बाद भी हमे अपनी जमीन पर अधिकार नहीं मिला है, हम अब भी दर-दर भटक रहे हैं। यहाँ से हम कलेक्टर ऑफिस जा कर फिर अपनी गुहार लगाएंगे।” बैगा समुदाय, जो कि एक संरक्षित एवं कमजोर आदिवासी समूह है, वनों पर पूर्णतः आश्रित है। एक तरफ उनके लिए पर्यावास अधिकारों की चर्चा चल रही है, वहीं दूसरी ओर, काबिज जमीन पर उनके अधिकार अब तक मान्य नहीं हुए है। इस संदर्भ मे छत्तीसगढ़ वनाधिकार मंच द्वारा आज कबीरधाम जिला मुख्यालय मे वनाधिकार कानून के क्रियान्वयन एवं कमजोर आदिवासी समूह के लिए चुनौती विषय पर चर्चा की गई।
सर्व आदिवासी समाज से देवन सिंह धुरवे ने बताया कि उनके गाँव ने सामुदायिक वन संसाधन का दावा 2 वर्ष पूर्व किया था, लेकिन आधे अधूरे ही अधिकार सौंपे गए और ग्रामसभा को मान्य नहीं किया जा रहा है। चोरभट्टी से आए एकता परिषद के शिकारी बैगा ने कहा कि 14 परिवारों के पास सभी दस्तावेज होने के बावजूद भी उन्हे अधिकार नहीं दिया गया।
बैठक को संबोधित करते हुए, चंद्रकांत जी ने बताया कि यह बैठक जिले मे कार्यरत संगठन, संस्था व आदिवासी समाज प्रमुखों के बीच समन्वय स्थापित करने, एवं वनाधिकार की प्रक्रिया को मजबूत करने के लिए आयोजित की गई है।
छत्तीसगढ़ वनाधिकार मंच से विजेंद्र अजनबी ने बताया कि कबीरधाम वनों के संरक्षण एवं जलवायु परिवर्तन के आसन्न खतरों के नजरिए से एक महत्वपूर्ण स्थल है और यहाँ बैगा व अन्य वन-निवासी समुदायों की आजीविका और विकास के लिए काफी चुनौतियाँ है। ऐसे मे ग्रामसभाओं को मजबूत करते हुए, सामुदायिक वनाधिकार के तहत संवर्धन, संरक्षण एवं प्रबंधन को मजबूत बनाना आवश्यक है।
दीपक कुमार ने बताया कि जिले मे 27 गाँव को संसाधन अधिकार मिले है, लेकिन, आगे कोई प्रक्रिया शुरू नहीं हो पाई है। मंच के जरिये, इन गाँव को प्रबंधन की प्रक्रिया विकसित करने मदद की जाएगी।
यह भी चर्चा की गई कि, प्रदेश के आदिवासी विभाग के पत्र अनुसार, भोरमदेव क्षेत्र मे संसाधन अधिकार दिलाने के लिए प्रयास किया जाएगा, जहां अभयारण्य के नाम पर दावों को नजरअंदाज किया जाता रहा है। जबकि, प्रदेश मे ही अन्य टाइगर रिजर्व मे संसाधन अधिकार दिये गए है।
बैठक मे जिले के 35 से अधिक विभिन्न संस्थाओं, संगठन व आदिवासी समाज के प्रतिनिधि सम्मिलित हुए। बैठक मे उपस्थित सदस्यों का धन्यवाद ज्ञापन दीपक बागरी जी द्वारा किया गया।