भिलाई. छत्तीसगढ़ में ‘स्टील सिटी’ भिलाई के मध्य भाग में घूमने पर एक सुंदर आवासीय कॉलोनी दिखती है, जो 1970 के दशक के अंत में रूसी नागरिकों के लिए बसाई गई थी. दोनों ओर कतारबद्ध हरे-भरे पेड़-पौधों से युक्त चौड़ी सड़कों के मध्य स्थित ‘रूसी कॉम्प्लेक्स’ नामक आवासीय परिसर अब भी मजबूती से अपनी मौजूदगी दर्शाता है, जो भारत और रूस के बीच के बंधन का प्रतीक है. हालांकि, वहां अब कोई रूसी नहीं रहता है.
राजधानी रायपुर से 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस परिसर का इतिहास भिलाई इस्पात संयंत्र (बीएसपी) से जुड़ा है, जो 1950 के दशक में तत्कालीन सोवियत संघ के सहयोग से देश में स्थापित पहली एकीकृत इस्पात इकाइयों में से एक है. भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने 1959 में अविभाजित मध्य प्रदेश के भिलाई में इस इस्पात संयंत्र का उद्घाटन किया था, जो अब छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में स्थित है.
बड़ी संख्या में बिहार, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश सहित अन्य राज्यों से लोग इस संयंत्र में नौकरी के लिए आर्किषत हुए, जिसके चलते एक महानगरीय संस्कृति के साथ ही कई अन्य सुविधाओं से लैस ‘भिलाई क्षेत्र आवासीय परिसर’ का उदय हुआ. बीएसपी के सेवानिवृत्त अधिकारियों ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि संयंत्र के निर्माण में रूसी प्रौद्योगिकी की मदद ली गई थी, ऐसे में उस देश के तकनीशियन और विशेषज्ञ भी यहां चार दशकों से अधिक समय तक रहे और संयंत्र में काम किया.
उन्होंने बताया कि फरवरी 1955 में भारत और तत्कालीन सोवियत संघ के बीच भिलाई में एकीकृत लौह एवं इस्पात संयंत्र के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किये गये थे और तब से यहां रूसी नागरिकों का आगमन शुरू हुआ. बीएसपी से 2010 में कार्यकारी निदेशक (सामग्री प्रबंधन) के रूप में सेवानिवृत्त हुए किरण कपूर ने कहा कि शुरुआती दिनों के दौरान, रूस के इंजीनियर और विशेषज्ञ अपने भारतीय समकक्षों के साथ दुर्ग र्सिकट हाउस में रुके थे, जहां उनके ठहरने के मद्देनजर टेंट भी लगाये गये थे.
कपूर ने बताया कि बाद में रूसियों को ‘भिलाई निवास’ में स्थानांतरित कर दिया गया, जिसे अब ‘भिलाई होटल’ के नाम से जाना जाता है. उन्होंने बताया कि 1970 के दशक के अंत में उनके लिए भिलाई के सेक्टर-7 में विशाल रूसी परिसर बनाया गया, जिसमें 153 घर थे.
कपूर ने कहा, ‘‘रूसी कॉम्प्लेक्स में मेरे बहुत सारे दोस्त थे. हमने कभी बाहरी लोगों की तरह महसूस नहीं किया, क्योंकि वे हमारे साथ घुलमिल गए थे और यहां तक कि भारतीय त्योहार भी मनाते थे. मेरी तरह संयंत्र में काम करने वाले दूसरे भारतीय भी वहां रूसियों के साथ समय बिताते थे.’’
उन्होंने बताया कि वर्ष 1984-85 तक कई रूसी विशेषज्ञ संयंत्र में काम करते रहे, लेकिन बाद में संयंत्र के विस्तार के दौरान जर्मनी, कनाडा और आॅस्ट्रिया जैसे अन्य देशों से प्रौद्योगिकियों की शुरुआत के साथ उनकी उपस्थिति कम होने लगी. कपूर ने कहा कि रूसियों के इस परिसर में नहीं रहने के बावजूद इसका नाम कभी नहीं बदला गया और यह अब भी भारत और रूस के बीच सौहार्दपूर्ण संबंधों का प्रतीक है. लुडमिला मुखर्जी (59) उन रूसी महिलाओं में से हैं, जिन्होंने भारतीयों से शादी की और भिलाई में बस गईं. रूसी परिसर से जुड़ी यादें अब भी उन्हें खुशी देती हैं.
उन्होंने कहा, ‘‘मैं 1980 में यूक्रेन में सुब्रतो मुखर्जी से मिली थी, जब वह इंजीनियंिरग करने के लिए वहां गए थे. हमारी शादी 1985 में हुई और मैं उनके साथ 1986 में यहां आई थी.’’ लुडमिला मुखर्जी ने कहा कि उन्होंने शुरुआत में रूस की तरफ से भिलाई इस्पात संयंत्र में एक महाप्रबंधक के सचिव के रूप में काम किया और बाद में एक दुभाषिया के रूप में भी काम किया.
उनके पति 2019 में संयंत्र से सेवानिवृत्त हुए. वह अब भिलाई में एक बुटीक चलाती हैं और रूसी कॉम्प्लेक्स के करीब बसे सेक्टर-10 में रहती हैं. लुडमिला ने कहा, ‘‘अब मैं रूसी कॉम्प्लेक्स में नहीं रह रही, लेकिन भिलाई में मेरे शुरुआती दिन इसी परिसर में गुजरे. मैं कभी-कभी बीएसपी में कार्यरत कुछ रूसी लोगों की पत्नियों को पढ़ाया भी करती थी. मैं उन दिनों को कभी नहीं भूल सकती.’’