Friday, April 19

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हमारे देश की लोकतांत्रिक यात्रा का एक ऐतिहासिक क्षण डॉ ममता साहू
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हमारे देश की लोकतांत्रिक यात्रा का एक ऐतिहासिक क्षण डॉ ममता साहू

  हमारे देश की लोकतांत्रिक यात्रा का एक ऐतिहासिक क्षण डॉ ममता साहू* भाजपा प्रदेश महिला मोर्चा उपाध्यक्ष डॉ ममता साहू ने केंद्र सरकार द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में संसद के विशेष सत्र में प्रस्तुत किए गए महिला आरक्षण विधेयक “नारी शक्ति वंदन अधिनियम” का स्वागत करते हुए प्रदेश के महिलाओं की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभार जताया है,और कहा की आने वाली हर पीढ़ी तक इस दिवस की और इस निर्णय की चर्चा होगी। देश की संसद में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाकर मोदी सरकार ने महिला सशक्तिकरण की दिशा में अहम कार्य किया है जिसका वादा भारतीय जनता पार्टी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में किया था, ममता साहू ने कहा की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज देश सेवा में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाकर महिलाओं को एक बड़ा उपहार दिया है, निश्चित ही यह बिल नारी सशक्तिकरण की दिशा में वरदान साबित होगा,साथ ही ...
फिर-फिर थैंक यू मोदी जी! (व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)
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फिर-फिर थैंक यू मोदी जी! (व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)

अब क्या कहेंगे मोदी जी को इतिहास दोबारा लिखवाने पर ताने देने वाले! अब कहकर तो देखें कि मोदी जी तो सिर्फ ऑर्डर देकर इतिहास लिखवा रहे हैं, बल्कि पुराने लिखे हुए में ही काट-पीट करा रहे हैं, इतिहास बना तो रहे ही नहीं हैं! खुद इतिहास बनाकर या बनवाकर दिखाएं, तो हम भी मानें। तो भाइयो, अब तो मानना ही पड़ेगा। मोदी जी ने छाती ठोक के इतिहास बनवा दिया है। संसद के एक विशेष सत्र में, नन्हे से, क्यूट से विशेष सत्र में, मोदी जी ने सिंगल नहीं, डबल-डबल, बल्कि ट्रिपल-ट्रिपल इतिहास बना दिया है। अब विरोधी अगर चाहें भी तो मोदी जी के इतिहास रचने से इंकार नहीं कर सकते हैं। संसद भवन बदल कर अगर इतिहास बनाने में गिनने में किसी को हिचक भी हो, तब भी इतिहास बनने के दो मोर्चे और भी तो हैं। आगे-आगे महिला आरक्षण और अंत-अंत में रमेश बिधूड़ी। दोनों ने इतिहास बनाया है, यह तो मानना ही पड़ेगा। फिर भी मोदी जी मूड में आ गए, तो ड...
अब सीधे ऊपर से सलेक्शन! (व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)
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अब सीधे ऊपर से सलेक्शन! (व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)

इन विपक्षियों ने अधर्मीपन की क्या हद ही नहीं कर दी! बताइए‚ खुद ईश्वर के चुनाव पर भी सवाल उठा रहे हैं। जिसे खुद ईश्वर ने चुना है‚ उसके भी कामों में मीन–मेख निकाल रहे हैं। चलो जब तक मोदी जी ने यह राज छुपाए रखा था‚ तब तक विपक्षी विरोध करते थे‚ तो बात समझ में आती थी। ईश्वर की इच्छा हर कोई थोड़े ही जान सकता है। ईश्वर की इच्छा जानने के लिए भी ईश्वर की कृपा की जरूरत होती है। लेकिन‚ अब तो मोदी जी ने खुद अपने मुंह से बता दिया है कि ईश्वर ने उन्हें चुना है। अब भी विरोध; यह डाइरेक्ट ईश्वर का विरोध नहीं, तो और क्या हैॽ हम तो कहते हैं कि इसके बाद तो चुनाव–वुनाव की बात सोचना भी अधर्म है। जब खुद ईश्वर ने अपना चुनाव कर दिया‚ उसके बाद हम इंसानों के चुनाव करने–कराने का मतलबॽ क्या हम ईश्वर की इच्छा को पलट सकते हैंॽ अगर नहीं पलट सकते हैं‚ अगर ईश्वर के कैंडीडेट का जीतना पहले से तय है, तो फिर भी चुनाव कराना ...
पं.दीनदयाल उपाध्याय की जयंती (25 सितंबर) पर विशेष, भारतबोध के प्रखर प्रवक्ता -प्रो.संजय द्विवेदी
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पं.दीनदयाल उपाध्याय की जयंती (25 सितंबर) पर विशेष, भारतबोध के प्रखर प्रवक्ता -प्रो.संजय द्विवेदी

(प्रो.संजय द्विवेदी) वे सही मायनों में भारतबोध के प्रखर प्रवक्ता थे। भारतीय राजनीति में उनके आगमन ने एक नया विमर्श खड़ा कर दिया और वैकल्पिक राजनीति को मजबूत आधार प्रदान किया। आज भरोसा करना कठिन है कि श्री दीनदयाल उपाध्याय जैसे साधारण कद-काठी और सामान्य से दिखने वाले मनुष्य ने भारतीय राजनीति और समाज को एक ऐसा वैकल्पिक विचार और दर्शन प्रदान किया कि जिससे प्रेरणा लेकर हजारों युवाओं की एक ऐसी मालिका तैयार हुयी, जिसने इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक में भारतीय राजसत्ता में अपनी गहरी पैठ बना ली। क्या विचार सच में इतने ताकतवर होते हैं या यह सिर्फ समय का खेल है? किसी भी देश की राजनीतिक निष्ठाएं एकाएक नहीं बदलतीं। उसे बदलने में सालों लगते हैं। डा.श्यामाप्रसाद मुखर्जी से लेकर श्री नरेंद्र मोदी तक पहुंची यह राजनीतिक विचार यात्रा साधारण नहीं है। इसमें इस विचार को समर्पित लाखों-लाखों अनाम सहयोगियों को भु...
वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की खरी… खरी… मर जाता है पीड़ित, मिलता नहीं है न्याय,
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वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की खरी… खरी… मर जाता है पीड़ित, मिलता नहीं है न्याय,

कहने को सद्रक्षणाय, खलनिग्रहणाय, वास्तव में धनिक रक्षणाय,मासूम निग्रहणाय देश में न्याय पाना बेहद कठिन लगभग असंभव है। पीड़ित दर-दर भटकता रहता है लेकिन उसे न्याय नहीं मिलता बल्कि और भी ज्यादा अन्याय सहना पड़ जाता है। यही कारण है कि कहीं पर तो अन्याय से मुकाबले के लिये पीड़ित हथियार उठा लेता है। यदि इतनी हिम्मत नहीं कर पाता तो फिर आत्महत्या कर लेता है। न्याय पाने के लिये कार्यवाही आगे बढ़ाने के लिये आत्महत्या तक कर लेते हैं लोग, लेकिन  अफसोस तब भी आरोपी को सजा नहीं होती। सामने वाले का जीवन समाप्त हो जाता है और सरकारी तंत्र अपनी जेब भरकर मामले का पटाक्षेप कर लेता है। मालदार के मुहाफिज़ निर्धन के लिये निर्दयी दिखाने का सरकारी सूत्र है सद्रक्षणाय खलनिग्रहणाय जबकि सरकार का वास्तविक आचरण है धनिक रक्षणाय, मासूम निग्रहणाय। कोई भी सरकारी आॅफिस हो, धनिक रक्षणाय ही उसका एकमात्र सूत्र होता है। अधिक...
अब बॉयकॉट गैंग भी…! (व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)
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अब बॉयकॉट गैंग भी…! (व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)

देख लीजिए, बहनों-भाइयों, सॉरी परिवारजनों, अब विरोधियों का बायकॉट गैंग भी मैदान में उतर गया। सिर्फ एक गरीब के बेटे की कुर्सी हिलाने के लिए, ये सारे इकट्ठे हो गए हैं गैंग बनाकर, बेचारे गोदीसवार एंकरों का बायकॉट करने। पहले आजादी-आजादी करने वाला टुकड़े-टुकड़े गैंग भेजा। फिर एवार्ड वापसी गैंग उतार दिया। और भी कई छोटे-मोटे गैंगों को भेजा। आखिर में भारत जोड़ो गैंग को आगे कर दिया। और अब ये बायकॉट गैंग ले आए। ये भारत माता के खिलाफ हमला है। ये हिंदू, सॉरी सनातन धर्म के खिलाफ हमला है। मेरे प्यारे परिवारीजनों, ये तुम्हारे परिवारी जन यानी हमारे परिवार के खिलाफ हमला है। क्या इस हमले से आप अपने इस परिवार-जन की रक्षा नहीं करेंगे? इन गिरोहों के सामने क्या अपने परिवार-जन को अकेला छोड़ देंगे? कभी नहीं। मेरा पक्का विश्वास है कि आप हर कीमत पर अपने परिवार-जन को बचाएंगे, अपने परिवार को बचाएंगे। परिवार तो भारतीय ...
मुंह में जाति शोषितों का सम्मान, बगल में मनु की दुकान : भागवत की नई भागवत (आलेख : बादल सरोज)
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मुंह में जाति शोषितों का सम्मान, बगल में मनु की दुकान : भागवत की नई भागवत (आलेख : बादल सरोज)

आरएसएस सरसंघचालक मोहन भागवत ने अपने ताजा बयान से एक नयी भागवत कथा की शुरुआत कर दी है । हाल ही में एक आयोजन में उन्होंने कहा कि "हमने साथी मनुष्यों को सामाजिक व्यवस्था के तहत पीछे रखा। उनकी जिंदगी जानवरों जैसी हो गई, फिर भी उनकी परवाह नहीं की। ये सब 2000 साल तक जारी रहा। जब तक हम उन्हें समानता प्रदान नहीं करते, तब तक कुछ विशेष उपाय करने होंगे और आरक्षण उनमें से एक है। इसलिए हम संविधान में दिए गए आरक्षण को पूरा समर्थन देते हैं।" वे यहीं तक नहीं रुके - इसके आगे जाकर उन्होंने कहा कि "समाज में भेदभाव मौजूद है, भले ही हम इसे देख न सकें। समाज के जो वर्ग 2000 साल तक भेदभाव से पीड़ित रहे, उन्हें समानता का अधिकार दिलाने के लिए हम जैसे लोगों को अगले 200 साल तक कुछ परेशानी क्यों नहीं झेलनी चाहिए।" उन्होंने यह भी कहा कि "आरक्षण सिर्फ आर्थिक मसला नहीं है यह सम्मान देने का सवाल है।" इस नई भागवत कथा ने...
वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की खरी… खरी… मोदीजी दें ध्यान, धंधे में ‘रेल्वे’ बेईमान
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वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की खरी… खरी… मोदीजी दें ध्यान, धंधे में ‘रेल्वे’ बेईमान

एक सज्जन ने एक सवाल किया कि जब बाईक पर तीन सवारी चलते हैं तो सरकार चालान बना देती है। जुर्माना भरना पड़ता है। दो की ही व्यवस्था है तीन नहीं चल सकते। ऐसे में जब रेल्वे एक जनरल डिब्बे में तय संख्या से अधिक यात्रियों को भर लेती है तो उसका जुर्माना क्यांे नहीं होना चाहिये ? 72 के या 80 के जनरल डब्बे मे सौ से अधिक यात्री भरे होते हैं। लेकिन इतिहास में कभी उसे कानून के उल्लंघन की तरह नहीं देखा गया। ये एक सामान्य बात है। जबकि जो नियम एक दोपहिया पर और बसों पर लागू होता है वही रेल्वे पर भी क्यों नहीं होना चाहिये। बस में भी संख्या निर्धारित है। अधिक सवारी भरने पर जुर्माना लगता है। रेल्वे को छूट क्यों ? क्या सिर्फ इसलिये कि वो सरकारी है। रेल्वे को ईमानदार व्यवसाय करे लालचभरी दुकानदारी नहीं ईधर रेल्वे का रवैया एक प्रोफेशनल की तरह हो गया है। इसे काॅमर्शियल तो माना ही जाता है लेकिन काॅमर्शियल ...
विशेष सत्र : मोदी जी की वाहवाही के लिए! (आलेख : राजेंद्र शर्मा)
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विशेष सत्र : मोदी जी की वाहवाही के लिए! (आलेख : राजेंद्र शर्मा)

संसद के रहस्यमय विशेष सत्र का रहस्य, इस सत्र की पहली बैठक से ही काफी हद तक खुल गया लगता है। ऐसा नहीं है कि तमाम संसदीय नियम-कायदों तथा जनतंत्र के तकाजों के विपरीत, मोदी मंडली ने अब भी सांसदों से भी इसकी जानकारी छुपाने की कोशिश खत्म कर दी हो कि पांच दिन के इस विशेष सत्र में, आखिर विशेष क्या होगा? हैरानी की बात नहीं है कि विशेष सत्र से ठीक पहले, संसद में प्रतिनिधित्व-प्राप्त सभी पार्टियों की बैठक के बाद भी, राज्य सभा में आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह, बहुत मुखर होकर इसकी शिकायत कर रहे थे कि इस बैठक तक में, विभिन्न पार्टियों के नेताओं को यह नहीं बताया गया कि सत्र में ठीक-ठीक, क्या-क्या होने जा रहा है। दोनों सदनों के संदर्भ में जिन कतिपय विधेयकों के लिए जाने की जानकारी आयी है, उनके अलावा भी कुछ है, जो अभी नहीं बताया जा रहा है, इस धारणा को मोदी मंडली अब भी सायास बल दे रही है। और तो और, सत्र ...
महिला खेतिहर मज़दूरों की उपेक्षित दुर्दशा (आलेख : विक्रम सिंह)
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महिला खेतिहर मज़दूरों की उपेक्षित दुर्दशा (आलेख : विक्रम सिंह)

कई लोग ऐसा मानते है कि कृषि के अविष्कार से महिलाएं करीब से जुड़ी रही है। कई सामाजिक वैज्ञानिक तो यहां तक मानते है कि महिलओं ने ही कृषि की खोज की होगी। लेकिन बाद के दौर में कृषि को केवल पुरुषों के पेशे के तौर पर पेश किया गया। हालांकि खेतों में महिलाएं पुरुषों के बराबर काम करती हैं। विश्व में 40 करोड़ से अधिक महिलाएं कृषि के काम में लगी हुई हैं, लेकिन 90 से अधिक देशों में उनके पास भूमि के स्वामित्व में बराबरी का अधिकार नहीं हैं। हमारे देश में भी ऐसे ही हालात हैं। महिलाओं को मेहनत करने के बावजूद न तो पहचान मिलती है और न ही अधिकार। मैरीलैंड विश्वविद्यालय और नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च के द्वारा 2018 में जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार भारत में कृषि में कुल श्रम शक्ति का 42 प्रतिशत महिलाएं हैं, लेकिन वह केवल दो प्रतिशत से भी कम कृषि भूमि की मालिक हैं। 'सन ऑफ द सॉइल' शीर्षक से वर्ष 2...