Friday, May 17

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विदा, 2022 के बेशर्म रंग! (व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)
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विदा, 2022 के बेशर्म रंग! (व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)

शुक्र मनाएं, 2022 खत्म हो रहा है। उसके साथ ही बेशर्म रंग पर मचा हुड़दंग भी खत्म हो रहा है। क्या हुआ कि जोशी जी वाले सेंसर बोर्ड को अपने धक्के से खत्म करने के बाद, बेशर्म हुड़दंग खत्म हो रहा है; कम से कम खत्म तो हो रहा है? हुड़दंग, भगवा बिकनी उतरवाने पर भी खत्म नहीं होता, तो ही मोदी जी किस नरोत्तम मिश्रा या साध्वी प्रज्ञा, वगैरह को टोकने वाले थे! और उससे कम में तो भगवा भावनाओं के घाव भरने वाले थे नहीं! बिकनी उतरवाने के बाद, भगवा भावनाएं अगर ‘‘पठान’’ हटवाने पर अड़ जातीं तो? शुक्र है, सेंसर बोर्ड के साथ बेशर्म हुड़दंग खत्म तो हो रहा है। हर खत्म होने वाली चीज का शोक ही नहीं मनाते, कुछ का शुक्र भी मनाते हैं -- 2022 का भी। खैर! पठान फिल्म में हीरोइन के बेशर्म रंग तो अब नहीं दिखाई देेंगे, पर 2022 ने जो तरह-तरह से और रंग-रंग के बेशर्मी के रंग दिखाए हैं, उनका क्या? निम्मो ताई ने तो सिलक की साडिय़...
भारत मे साइंस व तकनीकी की उच्च शिक्षा के संसाधनों का दुरुपयोग हो रहा है :- लेख विजय गोयल
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भारत मे साइंस व तकनीकी की उच्च शिक्षा के संसाधनों का दुरुपयोग हो रहा है :- लेख विजय गोयल

  वर्तमान में भारत मे साइंस व तकनीकी की उच्च शिक्षा (Post Graduation) व PHD का पूर्ण दुरुपयोग हो रहा है । लोग पोस्ट ग्रैजुएशन कर क्लार्क ,डेटा ऑपरेटर , सॉफ्टवेयर कंपनियों की फ्रंट लाइन टीम में , फील्ड सुपरवाइजर ,सेल्स मैन, मार्केटिंग ,IAS ,IPS ,IRS बैंको में जॉब इत्यादि कर रहे यह पूर्णत: सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग है । इस पर लगाम लगाने की जरूरत है अतः जो विधार्थी रिसर्च के कार्य व शिक्षण के कार्य मे जाना चाहते है उनसे कम से कम 3 वर्ष का बॉन्ड भरवाकर ही सरकारी कॉलेजो से साइंस विषय मे पोस्ट ग्रेजुएशन करने हेतु एडमिशन देना चाहिये । पोस्ट gradution में कुछ विषय BEd की जोड़े जाने चाहिए । *वर्तमान में सरकारो को अपना फोकस केवल उद्यमशीलता /जॉब /स्किल डवेलोपमेंट / स्वरोजगार ओरिएंटेड ही सरकारी स्कूल व कॉलेज में शिक्षा दी जावे करने की जरूरत है* ताकि हम अपने संसाधनों का इफेक्टिव उपयोग कर...
अब परिवर्तन के इस दौर में 2023 में अच्छा करने का सबसे अच्छा मौका,,,,,, लेख विजय गोयल
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अब परिवर्तन के इस दौर में 2023 में अच्छा करने का सबसे अच्छा मौका,,,,,, लेख विजय गोयल

अब परिवर्तन के इस दौर में 2023 में अच्छा करने का सबसे अच्छा मौका व समय है कि पिछड़े लोग जो मुख्य धारा से जुड़ने में पिछे छूट गए है उनको मुख्य धारा में लाने के लिये मेरे व्यक्तिगत विचार में आरक्छन ही एक टूल है जिसके द्वारा उन्हें मुख्य धारा में लाया जा सकता है। परंतु उन्हें विशेष शिक्षा व ट्रेनिंग की भी जरूरत है उन्हें अलग से कोचिग व विषय कि एक्स्ट्रा क्लास की सुविधा दे कर उनके नीव को भी मजबूत किया जाना अतिआवश्यक है। साथ ही जो वास्तव में आरक्छन के हक दर है उन्हें उनका हक दिलाने के लिये *जिसकी एक पीढ़ी की आरक्छन का लाभ मिल गया उसकी दूसरी पीढ़ी की आरछण का लाभ कदाचित नही दिया जाना चाहिए* *यह वर्तमान समय की जरूरत है।* *वर्तमान व्यवस्था के कारण एक बार आरक्छन प्राप्त अधिकारी के बच्चे को पुनः आरक्षण के पात्र होने के कारण आरक्छन का लाभ कुछ 2 - 3 लाख परिवारों तक सिमट के रह गया है । ज...
वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की बेबाक कलम ,सीधे रस्ते की टेढ़ी चाल,,,जिस के लिये राहुल ने फटा कुर्ता दिखाया आज कोर्ट ने उस बात को सही ठहराया
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वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की बेबाक कलम ,सीधे रस्ते की टेढ़ी चाल,,,जिस के लिये राहुल ने फटा कुर्ता दिखाया आज कोर्ट ने उस बात को सही ठहराया

जिस के लिये राहुल ने फटा कुर्ता दिखाया आज कोर्ट ने उस बात को सही ठहराया छह साल पहले 2016 में 8 नवंबर की ‘दो नंबरियों’ के लिये वो खौफनाक रात थी जब आठ बजे प्रधानमंत्री ने हजार और पांच सौ के नोटों को ‘इल्लीगल’ घोषित कर दिया था। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि रात 12 बजे के बाद ये नोट नहीं चलेंगे। उनकी इस घोषणा से उन लोगों की धड़कनें चलने में अटक आने लगी जिनके पास इफरात दो नंबर का पैसा था। क्योंकि पुराने नोटों को नये नोटों से बदलने का प्रोग्राम रखा गया था। अब जो अपने पुराने नोट बैंक जाकर बदलता या खाते में जमा करता उसे बाद में बताना भी तो पड़ता न कि वो पुराने कहां से आए थे। सब जानते हैं कि देश में ऐसे नगण्य हांेगे जिनके पास पूरा पैसा एक नंबर का होगा। कहीं न कहीं टैक्स पटाने के लिये सारी आबादी कुछ न कुछ पेंच डालकर ही चलती है। क्योंकि टैक्स देना एक सरकारी जुल्म लगता है। और जैसे-जैसे टैक्स ब...
जिस के लिये राहुल ने फटा कुर्ता दिखाया आज कोर्ट ने उस बात को सही ठहराया: वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव
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जिस के लिये राहुल ने फटा कुर्ता दिखाया आज कोर्ट ने उस बात को सही ठहराया: वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव

छह साल पहले 2016 में 8 नवंबर की ‘दो नंबरियों’ के लिये वो खौफनाक रात थी जब आठ बजे प्रधानमंत्री ने हजार और पांच सौ के नोटों को ‘इल्लीगल’ घोषित कर दिया था। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि रात 12 बजे के बाद ये नोट नहीं चलेंगे। उनकी इस घोषणा से उन लोगों की धड़कनें चलने में अटक आने लगी जिनके पास इफरात दो नंबर का पैसा था। क्योंकि पुराने नोटों को नये नोटों से बदलने का प्रोग्राम रखा गया था। अब जो अपने पुराने नोट बैंक जाकर बदलता या खाते में जमा करता उसे बाद में बताना भी तो पड़ता न कि वो पुराने कहां से आए थे। सब जानते हैं कि देश में ऐसे नगण्य हांेगे जिनके पास पूरा पैसा एक नंबर का होगा। कहीं न कहीं टैक्स पटाने के लिये सारी आबादी कुछ न कुछ पेंच डालकर ही चलती है। क्योंकि टैक्स देना एक सरकारी जुल्म लगता है। और जैसे-जैसे टैक्स बचाने के प्रयास होते हैं वैसे-वैसे कालाधन उत्पन्न होता है। ऐसे में कुछ ही दिनों में म...
हैप्पी हो न्यू ईयर मौज के साथ संस्कार भी हांे डीयर: वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव
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हैप्पी हो न्यू ईयर मौज के साथ संस्कार भी हांे डीयर: वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव

मनाईये नया साल जमकर मनाईये। कोई कसर बाकी न रहे। मनाईये अंग्रेजी नया साल मनाईये। एक तो खुशी के मौके तलाशते रहना चाहिये। तनाव से मुक्ति मिलती है और दूसरा बड़ा कारण अंग्रेजी नया साल मनाने का इसलिये भी है कि सारा विश्व एक गांव की तरह देखा जा रहा हैैै। कोई अलग नहीं है। कोई गैर नहीं है। विश्व के नये साल के उत्सव में हमें भी भागीदारी निभानी चाहिये। फुल मौज-मस्ती से मनाईये। लेकिन साथ ही ये भी याद रखिये कि हमारी जड़ें हिन्दु नववर्ष ‘23 मार्च 2023’ में हैं। और ये नववर्ष मौज-मस्ती से अधिक संस्कार और प्रार्थना से सरोबार होता है। विश्व के साथ चलना है इसलिये अंग्रेजी नववर्ष और जड़ों से जु़ड़ना है तो हिन्दु नववर्ष। आजकल तो कई विदेशी भी हिन्दु परम्पराआंे, संस्कारों और प्रार्थनाओं के कायल हो  रहे हैं। बहुत तेजी से हिन्दु संस्कारों को आत्मसात किया जा रहा है। इसलिये अंग्रेजी नववर्ष में अपने बच्चों को नाचने-...
वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की बेबाक कलम सीधे रस्ते की टेढ़ी चाल शराब, होती है खराब आओ पी-पीकर इसे खतम करें
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वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की बेबाक कलम सीधे रस्ते की टेढ़ी चाल शराब, होती है खराब आओ पी-पीकर इसे खतम करें

अंग्रेजी नये साल की शुभकामनाएं। नये साल की शुरूआत में आमतौर पर मौज-मस्ती की जाती है। और मौज-मस्ती का नाम हो और शराब न हो आमतौर पर ऐसा नहीं समझा जाता। लोगबाग मौज मस्ती तभी पूरी होती है जब नाचा जाए और आम धारणा यही है कि नाचने के लिये शराब चाहिये तो मौज करने को आनंद लेने को शराब से अलग रखकर नहीं देखते। तो हम थोड़ी सी बात शराब की करेेंगे। शराब से जुड़ी उपर की लाईनेें पढ़कर मजा आया न। इसका श्रेय मुझे नहीं उस कवि को जाना चाहिये जिसने ये लिखी हैं। कमाल लिखी हैं। लेकिन पीने वाले इसे आधा ही मानते हैं। क्योंकि पीने वालों को ऐतराज है ‘होती है खराब’ में। ‘पी-पीकर’ से परम आनंद की अनुभूति होती है। ‘खत्म करें’ पर फिर ऐतराज है। क्योंकि पीने वालों को पीने का बहाना चाहिये। खुशी का मौका हो तो खुशी में और दुखी हों तो गम के मारे.... पीना अश्वम्भावी है। मेरा एक बड़ा ही कड़ुवा अनुभव ऐसा रहा है कि जिसमें...
वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की बेबाक कलम  सीधे रस्ते की टेढ़ी चाल किसको दूं किसको छोड़ूं एक बड़ा सा गिफ्ट जाने कौन बैठे कुर्सी पे और करेगा शिफ्ट
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वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की बेबाक कलम सीधे रस्ते की टेढ़ी चाल किसको दूं किसको छोड़ूं एक बड़ा सा गिफ्ट जाने कौन बैठे कुर्सी पे और करेगा शिफ्ट

जवाहर नागदेव वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, चिन्तक, विश्लेषक mo. 9522170700 यही तो मौका होता है जब किसी को पटाने के लिये प्रयास किया जाता है। तोहफा लेकर घर पहंुचा जाता है और चरण छोटा हो या बड़ा चरणों पर लोटकर वफा का इजहार किया जाता है। नये वर्ष में नया तोहफा तो बनता है। जितना बड़ा आदमी और जितना बड़ा स्वार्थ उतना बड़ा तोहफा। खासतौर पर अधिकारियों के लिये ये मौके खास होते हैं। ‘आका के लिये है हाथों में कीमती सामान मतलब साधने चेहरे पर बनावटी मुस्कान बनावटी मुस्कान हृदय में भरपूर कुटिलता तभी तो भैया मतलब का माल है मिलता’ बड़ा ही धर्मसंकट होता है अधिकारियों के लिये। खासतौर पर ऐसे वक्त में जब कुछ पता नहीं चल पा रहा कि कौन पाएगा सत्ता और बैठेगा कुर्सी पर। बिचारे बड़े बौखला से रहे हैं। दोनों ही पार्टियों में टसल है। मुकाबला है। उपर से टीएस सिंहदेव  साहब ने और भी ‘कन्फ्यूजन किरिएट’ कर दिया हैै। खुद सी...
कोयले की लूट : इसे कहते हैं क्रोनी कैपिटलिज्म! (आलेख : संजय पराते)
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कोयले की लूट : इसे कहते हैं क्रोनी कैपिटलिज्म! (आलेख : संजय पराते)

  क्रोनी कैपिटलिज्म (परजीवी पूंजीवाद) में कॉरपोरेट किस तरह फल–फूल रहे हैं और प्राकृतिक संसाधनों को लूट रहे हैं, इसका जीता–जागता उदाहरण छत्तीसगढ़ में कोयले की खुदाई है। सरगुजा–कोरबा जिले की सीमा पर हसदेव अरण्य क्षेत्र में परसा केते माइंस स्थित है, जो राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड के जरिए राजस्थान सरकार को आबंटित की गई है। राजस्थान सरकार ने एक एमडीओ के जरिए कोयला खुदाई का कार्य अडानी को सौंप दिया है। अनुबंध का प्रमुख प्रावधान यह है कि राजस्थान सरकार को अपने बिजली संयंत्रों को चलाने के लिए अडानी से 4000 कैलोरी प्रति किलोग्राम से नीचे की गुणवत्ता का कोयला स्वीकार नहीं करेगी और कम गुणवत्ता वाले रिजेक्टेड कोयले को हटाने और निबटाने का काम अडानी करेगी। पूरा गड़बड़ घोटाला इसी अनुबंध में छिपा है, क्योंकि छत्तीसगढ़ और देश के अन्य भागों में सरकारी और निजी बिजली संयंत्रों में इस्तेमाल...
इज्जत के रंग! बेशर्मी के रंग!(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)
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इज्जत के रंग! बेशर्मी के रंग!(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)

भाई बड़ा कन्फ्यूजन है। ये केसरिया रंग की इज्जत बचाने के लिए किस को थैंक यू देना है? मध्य प्रदेश वाले पं. नरोत्तम मिश्र को -- बेचारे को चिकित्सा शिक्षा से लेकर गृह तक, न जाने कितने मंत्रालयों को अनाथ छोडक़र, खासकर फिल्म और टीवी वालों से और हां विज्ञापनों से भी, हिंदुओं की भावनाओं वगैरह की हिफाजत करने के लिए, हर हफ्ते-दो-हफ्ते पर लट्ठ चलाना पड़ता है। पता नहीं मध्य प्रदेश की मामा सरकार कब उनकी असली प्रतिभा पहचानेगी और मिश्रा जी के लिए अलग से हिंदू रक्षा मंत्रालय बनवाएगी? वैसे हिंदू रक्षा मंत्रालय के नाम से किसी के पौरुष पर चोट पहुंचती हो, तो हिंदू रक्षा मंत्रालय के नाम में धर्म या भावना की पूंछ भी जोड़ी जा सकती है। या साध्वी प्रज्ञा जी को थैंक यू देना है? बेचारी ने केसरिया रंग की इज्जत बचाने के लिए, अपनी उस बीमारी तक को भुला दिया, जिसकी वजह से कई साल से भोपाल से मुंंबई तक नहीं जा पायी हैं औ...